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राजनीति

नही बनेंगे मनमोहन ‘नये जुगाड़’ का नया नेता

उगता भारत: एक चिंतन)

देश विकल्पहीनता के कुहासे से बाहर निकल रहा है। बहुत संभावना है कि इस बार चुनाव के उपरांत देश में कोई देवेगौड़ा नही थोपा जाएगा। जनता में पहली बार एक लंबे काल के पश्चात एक नई चेतना सी है, और ManmohanSingh1विशेष खुशी की बात ये है कि देश का युवा वर्ग जाति, संप्रदाय, भाषा, प्रांत और वर्ग आदि की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर ‘मतदानकर रहा है। अब से पूर्व के चुनावों में निरंतर कई बार से हम ‘विकल्पहीनताकी बीमारी से ग्रस्त थे और हमारे सामने तब समस्या होती थी कि वोट किसे किया जाए? सभी एक ही थैली के तो चट्टे-बट्टे हैं। इसलिए सबसे अधिक जिम्मेदार पढ़ा लिखा वर्ग ही वोट वाले दिन घर रहकर टी.वी. देखता था या गपशप मारता था। पर इस चुनाव में कहीं लगभग दो तिहाई तो कहीं कहीं तीन चौथाई या उससे भी ऊपर बाहर निकलकर लोग वोट कर रहे हैं। मोदी अपनी पार्टी से ऊपर अपना स्थान बनाने में ही सफल नही हुए हैं अपितु उन्होंने देश के साधारण से साधारण व्यक्ति के भीतर वही सुरक्षा भाव पैदा किया है जो एक नेता को करना भी चाहिए। कहा जाता है कि नेता ही असफल होते हैं, जनता कभी असफल नही होती। वह अपना नेता खोज ही लेती है। पर हमें यह भी याद रखना  चाहिए कि नेता को भी स्वयं को सिद्घ करने के लिए ‘अग्नि परीक्षासे गुजरना पड़ता है। मोदी उस अग्नि परीक्षा से गुजर रहे हैं। ‘आपनेता अरविंद केजरीवाल को भी दिल्ली की जनता ने अपना नेता (खण्डित जनादेश के साथ) चुना था, पर वह स्वयं को नेता स्थापित करने में असफल रहे, आज वह गलती पर आंसू बहाते हुए फिर जनता की अदालत में हैं पर जनता उनकी ओर ध्यान नही दे रही है। सलमान खुर्शीद, आजम खान, बेनी प्रसाद वर्मा परंपरागत ढंग से अपनी बहकी हुई और फिसली हुई जबान से लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। इनकी ओर से जनता मुंह फेर चुकी है, और चुनाव आयोग ने भाजपा के अमित शाह तथा सपा के आजम खान की ‘जबान जेलकरके उचित ही किया है। साम्प्रदायिक तनाव पैदा करके किसी को भी वोटों की फसल काटने की अनुमति नही मिलनी चाहिए। कांग्रेस ने अपना नीरस चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है और उससे लोगों में उत्साह का तनिक भ्ी संचार नही हुआ है। वही घिसी-पिटी बातें सामने आयीं हैं और आंतरिक सुरक्षा की स्थिति पर पार्टी का स्पष्ट और लोगों में सुरक्षा का भाव पैदा करने वाला कोई चिंतन सामने नही आया है। जबकि भाजपा ने कांग्रेस के मुकाबले अपना अधिक स्पष्टऔर सुरक्षा भाव पैदा करने वाला चुनावी घोषणा पत्र जारी किया है जिसे बुद्घिजीवियों ने उचित और ठोस माना है। चुनाव में अधिकतर पार्टियां अब मान चुकी हैं कि देश में मोदी लहर है, इसलिए अधिकतर छोटी पार्टियां या तो हार मान चुकी हैं, या फिर राजग में शामिल होकर सत्ता सुख भोगने का जुगाड़ तलाशने लगी है। भाजपा के मोदी की लहर तो है पर फिर भी पार्टी किसी ‘फील गुडमें इस बार रहना नही चाहती है, उसे पता है कि यदि दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत ने उसका साथ नही दिया तो सत्ता के निकट होकर भी पार्टी सत्ता से दूर रह जाएगी। अत: उस परिस्थिति के लिए भाजपा भी नये सहयोगी तलाशने की हर संभावना पर विचार करने को तैयार है। इस नई मोर्चेबंदी और राजग की ओर क्षेत्रीय पार्टियों के आकर्षण को तोडऩे के लिए संप्रग की नेता सोनिया के पास कोई उपाय नही है। वह चुपचाप सारा तमाशा देख रही हैं और चुनाव बाद जैसी स्थिति होगी वैसा ही निर्णय लेने की उनकी मानसिकता काम कर रही है। वैसे उन्हें पता है कि पी.एम. मनमोहन सिंह चुनाव परिणाम आने से पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वह किसी नये जुगाड़ का नया नेता बनने को तैयार नही है और राहुल को लेकर सोनिया कोई दांव खेलना नही चाहतीं।

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