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आज का चिंतन-31/05/2014

दिखना चाहिए

इंसान का प्रताप

– डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

 

मनुष्य होना अपने आप में ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है जिसकी वजह से हम करोड़ों प्रजातियों के प्राणियों में अन्यतम एवं खास हैं। इंसान का चौला भगवान ने हमें इसलिए नहीं दिया है कि हम संकीर्ण मनोवृत्ति को अपना कर अपने-अपने दड़बों में घुसे रहें और अपनी ही अपनी बातों में रमे रहें। ऎसा तो सारे प्राणी करते ही हैं, हममें और उनमें फिर अंतर ही क्या रह गया है।

ईश्वर ने हमें मनुष्य का शरीर इसलिए दिया है ताकि हम बल-बुद्धि-विवेक और संस्कारों को अपनाते हुए जीव और जगत का भला कर सकें। ईश्वर की मंशा पर हम कितना खरा उतर पाए हैं अथवा उतर पा रहे हैं यह हमारे सिवा और कोई नहीं जा सकता। हमारी आत्मा ही है जो कभी झूठ नहीं बोल सकती।  फिर भी हम उस पर कभी भरोसा नहीं करते हुए अपनी ही अपनी हाँकते और मनवाते रहने के आदी हो चुके हैं।

इंसान होने का ही सीधा सा अर्थ यही है कि भगवान का भेजा हुआ वह जीव जो औरों की भलाई के लिए ही पैदा हुआ है और उसी में वह माद्दा है कि खुद का भी कल्याण कर सकता है और विश्व का भी। सभी प्रकार की बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओंं के होने के बावजूद हम इंसान की तरह न रहकर कभी भेड़-बकरियों की तरह रेवड़ों में शामिल होकर मिमियाते रहें, शुतुरमुर्गों की तरह घुसे रहें,  मेढ़कों की तरह टर्र-टर्र करते रहें, लोमड़ों और गिद्धों, श्वानों और सूअरों की तरह व्यवहार करें, कबाड़ियों की तरह कबाड़ जमा करते रहें, प्रतिभाओं और प्रभावों को किसी के चरणों या आँचल में गिरवी रखकर खुद जिंदगी भर मायूसी ओढ़ कर नज़रबंदी बने रहें, कभी बिजूकों से हिलते भर रहें, जमूरों की तरह नाचते रहें, गुलाम बनकर जीने में आनंद का अनुभव करने लगें, भिखारियों और लपकों की तरह  हराम का खाने-पीने में मस्त  रहा करें और जिंदगी भर सिद्धान्तों की बलि चढ़ाकर स्वार्थों और समझौतों का सहारा लेते हुए समाज और देश की जड़ों को खोखला करते रहें, रिश्वतखोर और भ्रष्ट बने रहें, तो ऎसे में हमारा इंसान होना बिल्कुल व्यर्थ है।

इस गलती को ईश्वर हमारे अगले जन्म में कभी दोहराता नही। एक सच्चे और अच्छे इंसान के रूप में हम इंसानियत का पालन नहीं कर सकें, निष्काम सेवा और परोपकार से दूर भागकर श्वानों की तरह झूठन चाटने के लिए जीभ लपलपा कर दौड़ते रहें, तो हमारा इंसान होना ही व्यर्थ है।

यह हमारा दुर्भाग्य है कि हममें से काफी कुछ लोग हैं जो इंसान के रूप में जी नहीं पाते और कोरे कागज के रूप में ईश्वर को लजाते हुए वापस लौट पड़ते हैं। इंसान होने का ही अर्थ है उसका वजूद समाज-जीवन, क्षेत्र, परिवेश और देश में दिखना और काम आना चाहिए।

हम वैश्विक चिंतन करते हुए अपने आपको इंसानों की भारी भीड़ का हिस्सा नहीं मानते हुए यह सोचें कि अरबों-खरबों जीवों में हम इंसानों की तादाद ही कितनी है। यह चिंतन सामने होने पर इंसान तथा इंसानियत के महत्त्व और हमारे अपने खास वजूद को समझ पाने में  कोई परेशानी नहीं होगी।

आज प्रातःस्मरणीय महाराणा प्रताप की जयन्ती है। आज का दिन हमें सिर्फ महाराणा प्रताप का स्मरण मात्र कर लेने की याद दिलाने वाला ही नहीं है बल्कि महाराणा प्रताप के अडिग सिद्धांतों, स्वाभिमानी जीवन, मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देने की भावनाओं, उच्चकोटि के त्याग और तपस्या,सामाजिक समरसता और विलक्षण संगठन कौशल, प्रेरक आत्मीयता और समाज तथा देश के लिए जीने-मरने का प्रण लेने की याद दिलाता है।

महाराणा प्रताप जयन्ती को एक दिन मनाकर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री करना नाइंसाफी होगी। हमारी नई पीढ़ी को महाराणा प्रताप के गौरवशाली व्यक्तित्व,गरिमामय कार्यों और संकल्पों के प्रति समर्पण के इतिहास से परिचित कराने के लिए कुछ करना होगा ताकि महाराणा प्रताप का जीवन उनके भीतर प्रतापत्व को जन्म दे सके, शौर्य और प्रतापी जीवन जीने के अंकुरों का पल्लवन कर सके।

महाराणा प्रताप किसी एक वर्ग-समुदाय या क्षेत्र तक सीमित नहीं थे बल्कि वैश्विक यशस्वी छवि वाले वह महापुरुष थे जिनका स्मरण मात्र कर लेने पर आज भी हमारी रगों में आजादी और देश के लिए जीने वाला खून दौड़ उठता है। जिस युगपुरुष का नाम ही इतना तन-मन को झकझोर देने वाला हो, उसका व्यक्तित्व कितना विराट और हृदयस्पर्शी रहा होगा, फिर उनके शौर्य और पराक्रम, त्याग व तपस्या तथा देशभक्ति की गाथाओं का तो कोई पार ही नहीं है।

देशभक्ति की पाठशाला का सर्वाधिक प्रेरक, प्रभावोत्पादक और निर्णायक समाधान देने वाला ऎसा व्यक्तित्व समाज और देश के लिए प्रेरक है लेकिन जरूरी यह है कि महाराणा प्रताप के बारे में वर्तमान पीढ़ी को सर्वांग व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व की जानकारी हो। महाराणा प्रताप की जयन्ती मना लेना और उनके नाम का जयघोष लगाते हुए आसमान गूंजा देना ही काफी नहीं है बल्कि हर व्यक्ति को प्रतापी बनाने का प्रयास किया जाना जरूरी है।

युग परिवर्तन का दौर आ चुका है। अब समय बदलाव का है, जहाँ पग-पग पर बदलाव की भूमिकाएं रची जाने लगी हैं ऎसे में इंसान कहे जाने वाले लोगों को अपनी पूरी जीवनीशक्ति  के साथ आगे आना होगा, जो लोग अधमरे, हताश और निराश हैं, उनमें आशाओं का संचार करना होगा।

जो जगे हैं उनका परम धर्म है कि खुद जगे रहें, सोये हुओं को जगाएं, और जिनके जागने पर जमाने में अंधकार और आतंक का खतरा है, इंसानियत के लिए जो खतरा हैं, उन सभी को आदरपूर्वक सायास सविधि शयन कराने में मददगार साबित हों ताकि समाज और देश में अमन-चैन बना रह सके और महाराणा प्रताप के सपनों का देश बन सके।

प्रातःस्मरणीय महाराणा प्रताप की जयंती पर सभी को हार्दिक बधाई एवं  शुभकामनाएँ ….

आइये हम सब मिलकर महाराणा प्रताप के सोचे हुए कार्यों को आगे बढ़ाएं और मातृभूमि की रक्षा व सेवा में अपनी आहुति दें।

जय राणा प्रताप की।

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