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हिंदू धर्म के दिग्विजय व्याख्याता युगदृष्टा विवेकानंद और उनका हिंदुत्व दर्शन-2

दिनेश चंद्र त्यागी

गतांक से आगे…
विशेष घटना-इस कॉलिज के Principal William  Hastie (प्रा. विलियम हेस्टी) एक दिन (अध्यापक की अनुपस्थिति में) कक्षा में पढ़ाने आ गये। विषय था-Wordsworth’s Excurtion (वर्डसवर्थ का एक्स-कर्शन)। जिसमें वर्णन आया कि प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को देखकर कवि का हृदय अभिभूत हो गया और वह अनंत भावों में निमग्न हो गया। नरेन्द्र को अनंत भावों में निमग्न होने का अर्थ समझ में नही आया तो प्रिंसिपल ने कहा कि इस भाव की अनुभूति करनी है तो केवल एक व्यक्ति करा सकता है और वे है दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के संत रामकृष्ण परमहंस Only person who has an experience of the blessed state of mind एकमात्र व्यक्ति जिन्हें परमानंदावस्था का अनुभव है। यह थी वह घटना जिसने दो महान आत्माओं के मिलन की पृष्ठभूमि निर्मित की।
(संदर्भ-स्वामी विवेकानंद जीवन चरित्र-सत्येन्द्र नाथ मजूमदार)
(शताब्दी ग्रंथ र.चं.म. सम्पादित पृ. 40) प्रा. हेस्टी ने विद्यार्थी नरेन्द्र के लिए कहा था-Naren is really a genius. I have never come across a boy of his talents and possiblities even in German Universities amongst philophical students. He is bound to make a mark in life. Naren not only made a mark in life but he made a landmark in the history of all mankind.
नरेन वास्तव में प्रतिभासंपन्न हैं। मैंने बहुत दूर-दूर तक यात्राएं की हैं, परंतु मैंने कहीं ऐसी बौद्घिक क्षमताओं और संभावनाओं का धनी लड़का नही देखा, जर्मन विश्वविद्यालयों में दर्शन के विद्यार्थियों में भी नही। जीवन में वह अवश्य विशिष्टता प्राप्त करेगा।
नरेन ने जीवन में विशिष्टता प्राप्त ही नही की अपितु उसने मानवजाति के इतिहास में युगांतर कर दिया। प्राय: सभी शिष्य गुरू की खोज करते हैं, किंतु गुरू शिष्य के लिए तड़प रहे हों, ऐसे उदाहरण विरले मिलते हैं। नरेन्द्र सच्चे गुरू की खोज में थे, इस आधुनिक नचिकेता का एक ही प्रश्न था-क्या ईश्वर है, क्या मुझे कोई उसके दर्शन करा सकता है?नरेन्द्र जब प्रथम बार रामकृष्ण देव के आश्रम में पहुंचे तो परमहंस रामकृष्ण उन्हें देखते ही अधीर हो गये-अरे!अब तक तुम कहां थे, मैं कितने दिन से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। हाथ जोड़कर गुरूदेव रामकृष्ण ने नरेन्द्र से कहा-मैं जानता हूं आप प्राचीन ऋषि हैं, नररूप में नारायण हैं, इस धरती के प्राणियों का दुख दूर करने के लिए आप अवतरित हुए हैं।
आश्चर्यचकित नरेन्द्र ने पूछा-क्या आपने ईश्वर को देखा है?
हां, मैं जैसे तुम्हें देख रहा हूं, वैसे ही ईश्वर को देखा है। रामकृष्ण देव ने कहा-ईश्वर से ऐसे ही बात हो सकती है जैसे मैं तुमसे कर रहा हूं। इस प्रथम आध्यात्मिक मिलन में ही ये दो अंतरात्माएं एक दूसरे को समझने में सफल हो चुकी थीं। नरेन्द्र की समग्र जिज्ञासा अपने लिए समग्र गुरू प्राप्त कर चुकी थी।
कुछ दिन पश्चात ही दूसरा मिलन हुआ जिसमें गुरूदेव रामकृष्ण परमहंस ने अपनी आध्यात्मिक निधि और अपनी तपस्या की उपलब्धि का अलौकिक स्थानांतरण नरेन्द्र की काया में करते हुए कहा कि लो मैंने सब कुछ तुम्हें दे दिया अब मैं शून्य हो गया, जाओ वह संदेश सारे विश्व को सुनाओ जिसके लिए तुम इस धरा पर आये हो।
(संदर्भ-विवेकानंद चरित-सत्येन्द्र मजूमदार)
अलौकिक आध्यात्मिक निधियों से संपन्न नरेन्द्र गुरूदेव के पावन चरणों में अपने जीवन के कंटकाकीर्ण पथ का निर्धारण कर चुके थे। गुरूदेव अपना कार्य पूर्ण कर चुके थे और शीघ्र ही वे उस लोक को लौट गये जहां से वे आये थे। नरेन्द्र ने अपने 11 गुरूभाईयों के साथ सन्यास ग्रहण किया और इन 12 तरूण सन्यासियों ने भगवान रामकृष्ण परमहंस के मिशन को अपने जीवन का पांथेय बनाकर उसके लिए सर्वस्व समर्पण का संकल्प लिया।
परिव्राजक विवेकानंद
युवक नरेन्द्र अब परिव्राजक विवेकानंद बन चुके थे। संपूर्ण भारत का भ्रमण कर वे भारत माता के चरणों में कन्या कुमारी पहुंचे जहां समुद्र में उभरी एक शिला पर ध्यानमग्न हो बैठ गये। अतीत वर्तमान और भविष्य के समझने का यह कैसा अदभुत संगम स्थल था जहां तीन समुद्र एक दूसरे में विलीन होते हैं, भारतमाता के चरणों का चिर प्रक्षालन करने हेतु।
अब विवेकानंद पूर्ण बन चुके थे, संपूर्ण कार्य के संपादन हेतु दिव्य प्रेरणा एवं दिव्य अनुभूति लेकर वे मद्रास लौटे जहां शिकागो जाने का कार्यक्रम निरूपित हुआ।
शिकागो विश्व धर्म महा-सम्मेलन
11 सितंबर, 1893 से 27 सितंबर 1893 तक सत्रह दिवसीय  world’s Parliament of Religions का न भूतो न भविष्यति अदभुत आयोजन Art Institute of Chicago के Columbus Hall शिकागो में आर्ट इंस्टीट्यूट कोलंबस के सभागार में चार्ल्स कैरल बोनी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। विश्व के दस प्रमुख धर्मों के विचारक एवं विद्वान आमंत्रित किये गये थे। ये दस धर्म थे।

(1) Theism
(2) Judaism
(3) Mohammedanism
(4) Hindustan
(5) Buddhism
(6) Taoism
(7) Cofucianism
(8) Shintoism
(9) Zoroastrianism &
(10)Catholicism.

(1) ईश्वरवाद (2) यहूदीमत (3) इस्लाम (4) हिंदू धर्म (5) बौद्घधर्म (6) ताओवाद (7) कन्फूशियसवाद (8) शिन्तोवाद (9) जरथ्रुस्त पारसी (10) कैथोलिक ईसाइयत।
कोलंबस हाल में सात हजार से दस हजार प्रबुद्घ श्रोताओं के समक्ष लगीाग 650 विद्वानों के 1000 प्रपत्र पढ़े गये। यहां उपस्थित श्रोताओं को यह जानकर आश्चर्य नही होना चाहिए कि प्रबुद्घ श्रोता प्रात: 10 बजे से रात्रि 10 बजे तक पूरे कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते थे, केवल आधे घंटे का भोजनावकाश होता था। धन्य हैं वे श्रोता धन्य हैं वे आयोजक।
धर्म महासभा में बड़े हाल के पास कई अन्य हाल भी थे जहां विज्ञान विभाग एवं महिला विभाग द्वारा विज्ञान प्रतिनिधियों के विशेष भाषण आयोजित किये जाते थे।
संदर्भ : विवेकानंद शताब्दी ग्रंथ डा. र.च.म. सम्पादित।
(2) विवेकानंद साहित्य भाग-2
इस ऐतिहासिक धर्म सम्मेलन के लिए स्वामी विवेकानंद बिना बुलाए मेहमान अतिथि के रूप में गये थे, उनके पास न कोई परिचय पत्र था न किसी संस्था ने उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा था। नीचे धरती और ऊपर आकाश। बस यही दो थे जो स्वामी जी से परिचित थे।
क्रमश:

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