कामयाबी से दूर रहते हैं लोग
जो गरजते-बरसते हैं

– डॉ. दीपक आचार्य
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आजकल ऐसे लोगों की तादाद खूब बढ़ती जा रही है जो धैर्य और शांति के साथ न रह सकते हैं, न काम कर सकते हैं। ऐसे लोग जीवन में हर कहीं बेवजह उद्वेलन के बीच जीने को विवश होते हैं। इस किस्म के लोग सामान्य से लेकर अभिजात्य वर्ग, छोटे से लेकर बड़े-बड़े पदों-कदों और मदों वाले, $खास, विशिष्ट, अतिविशिष्ट और महा विशिष्ट श्रेणियों के हो सकते हैं।
खूब पढ़े-लिखे हो सकते हैं और बिना पढ़े लिखे भी। बचपन से लेकर पचपन पार तक हो सकते हैं, और वे भी हो सकते हैं जो अंतिम यात्रा के लिए खुद उतावले बने हुए हैं, या इनकी गति-मुक्ति के लिए और लोग मन्नतें लिए बैठे हों। कुल मिलाकर मतलब यही है कि ये वे लोग हैं जो काम कम करते हैं या बिल्कुल नहीं करते हैं।इनमें अधिकांश ऐसे होते हैं जिन्हें काम करना नहीं आता है अथवा अपने काम की बजाय दूसरी-तीसरी बातों या संसाधनों में आत्मीय रुचि है। इस किस्म के लोगों से घर वाले भी परेशान रहते हैं, दुकान-दफ्तर वाले भी, और बाहर वाले भी।
ये लोग काम कुछ नहीं करते हैं सिर्फ धींगामस्ती और शोरगुल के जरिये अपने होने का अहसास हर क्षण कराते रहते हैं। हर क्षेत्र में ऐसे लोगों की आजकल भरमार है जो फालतू के शोर को ही अपने अस्तित्व का सबूत मानते हैं। शोरगुल करने वालों की सबसे बड़ी आदत यही होती है कि वे किसी भी सामान्य से सामान्य काम को भी धैर्य के साथ संपादित नहीं कर पाते हैं और खुद कुछ नहीं करते हुए अपने मातहतों या अधीनस्थों पर अ€सर बरसते रहते हैं।इनमें से कई ऐसे हैं जो अपने कामों को दूसरों के मत्थे मढ़कर खुद सिर्फ औरों पर बरसते रहने का ही काम करते हैं। आदमियों की इस प्रजाति के लोग जहाँ कहीं होते हैं इनके बारे मे यह चर्चा उनके कर्मयोग भरे गलियारों में बनी रहती है कि ये काम-धाम न तो जानते हैं, न करते हैं, सिर्फ सामने वाले लोगों पर बरसते रहना ही इनकी आदत में शुमार है। फिर बरसते भी ऐसे हैं जैसे बिना पानी के बादल गुस्से में फट गए हों। जमकर गरजते हैं, बरसते हैं।
सामने वाले लोगों के प्रति इनकी यही धारणा होती है कि ये लोग उनकी गुलामी के लिए ही पैदा हुए हैं और इन गुलामों से जितना ‘यादा काम ले पाएं, वही उनकी मुख्य काबिलियत है जो अपने आकाओं की न$जरों में नम्बर बढ़ाने और जायज-नाजायज लाभ पाने की भावभूमि का सृजन करती है।आजकल लोगों को अपने नम्बर बढ़ाने की खूब फिक्र हो गई है। इस लक्ष्य को पाने के लिए वे किसी के भी सर पर चढ़ सकते हैं, किसी को कुछ भी कह सकते हैं, और किसी का कुछ भी नुकसान कर सकते हैं। सामंती और शोषक वृत्ति से भरे-पूरे ये लोग आजकल हर इलाकों में बहुतायत में पाए जाने लगे हैं।
औरों पर जब ये बेवजह गरजते और बरसते हैं तब इनकी मुखाकृति और व्यवहार में किसी न किसी पशु के लक्षण साफ तौर पर दिखाई देते हैं। कभी ये रेंकते हैं, हिनहिनाते हैं, कभी भौंकने लगते हैं और कभी गालियों की वर्षा शुरू कर देते हैं।अहंकार में आकंठ डूबे हुए इन लोगों को यह पता ही नहीं होता कि जिन लोगों को ये सुना रहे हैं वे लोग इन्हें आदमी तक नहीं मानते हैं और इसलिए चुपचाप बर्दाश्त किए जाते हैं €योंकि जीवदया और करुणा का मूलमंत्र आम लोग अ’छी तरह जानते और व्यवहार में लाते हैं।
हर इलाके में ऐसे कई बड़े-बड़े लोग होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका व्यवहार श्वानों से भी बदतर है, जो इनके पास जाता है उसे काटने के लिए दौड़ते हुए लगते हैं, साँपों की तरह फुफकारना, बि’छू की तरह डंक मारना और जहर उगलना इनका स्वभाव ही बन गया है, कभी दुलत्ती झाड़ते हैं, कभी सिंग मारते हैं।समझदार लोग ऐसे महान लोगों के बारे में ऐसी-ऐसी टिप्पणियाँ करते रहते हैं जैसे कि इन आम लोगों को सारे जानवरों की हरकतों का अ’छी तरह पता हो। हमारे संपर्क में जब भी इस प्रकार का व्यवहार करने वाले लोग आएं तब इन पर क्रोधित न हों बल्कि उनके चेहरे के भाव पढ़ें तथा इस पहेली को बुझाएं कि आखिर इनमें किस जानवर के भाव आ गए हैं।
उस जानवर को मन ही मन नमन करें और मनोरंजन कराने के लिए आभार व्यक्त करना न भूलें। कामयाबी का पहला लक्षण है धीर-गंभीरता। जो लोग इनका पालन नहीं करते वे जीवन के किसी भी मोर्चे पर कामयाब नहीं हो सकते, पेट भर पाने का काम तो श्वान, भिखारी और अपराधी भी बड़ी ही आसानी से कर लिया करते हैं।

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