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इसलाम और शाकाहार

पैगंबर हजरत इब्राहीम द्वारा की गयी कुरबानी की घटना-2

मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे…….
जब उनका पहला पुत्र जनमा उस समय वे सीरिया और पेलेस्टाइन के फलद्रुप क्षेत्र में थे। इस पुत्र का नाम इस्माइल रखा गया था। इस नाम को सुनकर ही चेहरे पर मुसकराहट आ जाती है। क्योंकि अल्लाह ने इब्राहीम की प्रार्थना को सुन लिया था। इस्माइल का जन्म उनकी नौकरानी हाजरा से हुआ जब 86 साल के थे। इस्माइल का स्वभाव बहुत ही नम्र था, इसलिए उन्हें हलीम कहा जाता था। अपने इस चरित्र और स्वभाव के कारण पिता और पुत्र हमेशा ही ईश्वर के आदेश का पालन करने के लिए तैयार रहते थे।
जब इब्राहीम काम करने योग्य हो गये तब उन्हेांने सपना देखा कि उन्होंने अपने बेटे इस्माइल को न्यौछाबर कर दिया। उन्हें अल्लाह का आदेश स्वप्न के माध्यम से मिला था। यह पिता और पुत्र के समर्पण की परीक्षा थी। इब्राहीम ने अपने पुत्र से पूछा और उन्होंने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। अपने त्याग के लिए वे दृढ़ निश्चय के साथ खड़े हो गये। यह परीक्षा दोनों के लिए जटिल थी, क्योंकि बाप के लिए बेटा और बेटे के लिए बाप दोनों ही एक दूसरे के चहेते और आत्मीय प्रेम से बंधे हुए थे। अंत में यह परीक्षा मीना की घाटी, जो उत्तरी मक्का से छह मील दूरी पर है, वहां देना निश्चित हुआ। इब्राहीम अपने प्यारे पुत्र का बलिदान देना चाहते थे, लेकिन उनका हाथ काम नही कर रहा था। तब उन्होंने अपनी आंखें कपड़े से ढंक लीं, अपने हाथ में चाकू लिया और इस्माइल की कुरबानी देने का प्रयास किया। लेकिन उसी समय ईश्वर ने इस्माइल के स्थान पर एक भेड़ को सुला दिया। इस तरह उनके पुत्र के स्थान पर भेड़ थी। ईश्वर की कृपा से इस्माइल तो बच गये, लेकिन उनके स्थान पर भेड़ हलाल हो गयी। (कुछ विद्वानों का कहना है कि ईश्वर ने भेड़ को भी बचा लिया)।
इस प्रकार ईद (हज यात्रा के समय मनाई जाने वाली ईदुल अजहा) के दिन कुरबानी करने का रिवाज चल पड़ा। दसवीं जिलहज (अरबी महीना) को हज यात्रा के पश्चात अंतिम दिन इस तरह से कुरबानी की परंपरा मक्का के उत्तर में छह मील दूर शुरू हो गयी। इब्राहीम और इस्माइल की याद में यह परंपरा प्रतिवर्ष जारी है, जिसमें हलाल पशु की कुरबानी दी जाती है। संपूर्ण जगत में मुसलमान हजारों और लाखों जानवर काटकर पंरपरा का पालन करते हैं। लेकिन इस कुरबानी के पीछे अल्ला का मुख्य उद्देश्य क्या था? क्या अल्लाह ने इब्राहीम को अपनी सबसे प्रिय वस्तु अथवा भेड़ को न्यौछावर करने का आदेश दिया था? यदि अल्लाह तआला एक भेड़ को मार सकता है तो अल्ला स्वयं यह बात भेड़ से कह सकता था। लेकिन केवल इब्राहीम और इस्माइल की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने यह आदेश दोनों को दिया और इब्राहीम के पुत्र को बचा लिया। उन्होंने इस्माइल के स्थान पर एक भेड़ को रख दिया। अब थोड़ा ध्यानपूर्वक विचार कीजिए।
अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए अपनी प्रियतम वस्तु के स्थान पर एक भेड़ को मार देना कहां तक न्यायिक है?
यह संपूर्ण घटना एक प्रतीक समान है, जैसा कि कुरान में कहा गया है-
न तो उनका मांस और न ही उनका रक्त अल्लाह तक पहुंचता है
केवल तुम्हारी दया उस पहुंचती है।
इसलिए अल्लाह पशुओं का मांस और रक्त नही चाहता। किसी को यह नही सोचना चाहिए कि अल्लाह रक्त और मांस को स्वीकार करता है। यह कहना सबसे बड़ी अधर्म है। अल्लाह हमारे दिल की भावनाओं को चाहता है। वह मांस और रक्त से खुश होने वाला नही है।
हम उसके प्रति समर्पित हो जाए यह उसकी आकांक्षा है। समर्पण का अर्थ उसकी बनाई हुई दुनिया के प्रति संवेदनशील हो जाए। इसका एक ही अर्थ है कि जो चीज हमको बहुत प्यारी है, वह हम छोड़ दें। उक्त घटना इस बात का संकेत है कि इब्राहीम और इस्माइल की तरह हम अपनी इच्छाओं को ईश्वर के सामने समर्पित कर दें। वह जो चाहता है उसे कार्यान्वित करने के लिए हमेशा तैयार रहें। बंदे का आत्मसमर्पण ही ईश्वर के लिए सबसे बड़ी कुरबानी है। दुनिया के मोह से मुक्त होकर हम अध्यात्म में रच पच जाएं और प्रकृति की सुरक्षा और निर्माण में स्वयं को अस्तित्वहीन कर दें। अपने को खोकर जो पाता है वही तो कुदरत ने असली मर्म को समझने वाला जीव है। कुरबानी की व्याख्या भौतिक न होकर आध्यात्मिक है।
क्रमश:

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