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कृषि जगत

ऋण माफ़ी योजनाओं के स्थान पर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की खुशहाली के लिए निवेश की राशि बढ़ाई जाए

प्रहलाद सबनानी

लघु एवं सीमांत किसानों के लिए खेती के साथ-साथ पशुपालन भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। अतः केंद्र सरकार ने देश में डेयरी उत्पादन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। नीली अर्थव्यवस्था (मछली पालन) एवं बाग़वानी पर भी विशेष ज़ोर दिया जा रहा है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा वर्ष 2014 के बाद से ही किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है एवं कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु कई योजनाओं को लागू किया गया है। इसी कड़ी में, अभी हाल ही में भारतीय संसद ने कृषि क्षेत्र से सबंधित तीन क़ानूनों को अपनी मंज़ूरी दी है। यह कृषि क्षेत्र के लिए एक विशाल परिवर्तक के तौर पर सिद्ध होने जा रहा है एवं इसके कारण कृषि क्षेत्र में निजी निवेशक अपने निवेश को बहुत भारी मात्रा में बढ़ा सकेंगे।

कई आर्थिक विशेषज्ञों का स्पष्ट मत है कि नए लागू किए जा रहे कानून किसानों के लिए वरदान सिद्ध होने जा रहे हैं। इससे न केवल कृषि उत्पादों की लागत घटेगी बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। एक देश-एक बाजार पद्धति किसानों के लिए भाग्यविधाता साबित होगी, इससे किसान शोषण मुक्त हो जायेंगे। नए कानूनों से राष्ट्र, उत्पादक और उपभोक्ता तीनों खुशहाल होंगे। जमाखोरी खत्म होगी, लॉबिंग की विदाई हो जाएगी एवं कृषि क्षेत्र का विकेन्द्रीयकरण होगा।

वर्ष 1991 में आर्थिक एवं बैंकिंग सुधार कार्यक्रमों की घोषणा की गई थी, जिसमें मुख्य रूप से देश को लाइसेन्स राज से मुक्ति मिली थी एवं उद्योग एवं बैंकिंग क्षेत्र में एक बहुत बड़ी हद तक व्यापार सम्बंधी नियमों को आसान बना दिया गया था। परंतु कृषि क्षेत्र में उस समय सुधार कार्यक्रमों को लागू नहीं किया गया था। अब केंद्र में मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में विशेष सुधार कार्यक्रमों को लागू करने का फ़ैसला किया है, जिसे एक अत्यधिक साहस भरा फ़ैसला कहा जाना चाहिए। यह सुधार कार्यक्रम वर्ष 1991 में लागू किए गए आर्थिक सुधार कार्यकर्मों से भी अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रहा है।

कृषि क्षेत्र में आज समस्या उत्पादन की नहीं बल्कि विपणन की अधिक है। देश में वर्तमान में प्रचलित नियमों के अनुसार किसान अपने कृषि उत्पाद को केवल कृषि उत्पाद विपणन समिति के माध्यम से ही बेच सकता है। शायद कृषि उत्पाद ही देश में एक एसा उत्पाद है जिसे बेचने की क़ीमत उत्पादक तय नहीं कर पाता बल्कि इस समिति के सदस्य इसकी क़ीमत तय करते हैं। इसके कारण कई बार तो किसान अपने उत्पाद की उत्पादन लागत भी वसूल नहीं कर पाता है। अब इस क़ानून के नियमों को शिथिल बनाया गया है जिसके कारण अब किसान अपनी उपज को सीधे ही प्रसंस्करण इकाइयों को, निर्यातकों को एवं इन वस्तुओं में व्यापार कर रही संस्थाओं को बेच सकेंगे एवं उस उत्पाद की क़ीमत भी किसान एवं ये संस्थान आपस में मिलकर तय करेंगे। नियमों में हो रहे इस बदलाव से कृषि उत्पाद विपणन समिति को अब प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा एवं ये समितियाँ भी अब कृषि उत्पादों की क़ीमतें बाज़ार की क़ीमतों के आधार पर तय करने को बाध्य होंगी क्योंकि इन समितियों का एकाधिकार अब समाप्त हो जायेगा एवं इससे अंततः किसानों को लाभ होगा। लघु एवं सीमांत किसान भी अब आपस में मिलकर किसान उत्पाद संस्थान का निर्माण कर सकते हैं एवं इस किसान उत्पाद संस्थान के माध्यम से अपने कृषि उत्पादों को सीधे ही उक्त वर्णित संस्थाओं को बेच सकते हैं। अतः इनकी निर्भरता अब कृषि उत्पाद विपणन समितियों पर कम होगी। देश में 10,000 किसान उत्पाद संस्थानों का निर्माण, गुजरात में स्थापित की गई अमूल दुग्ध उत्पाद संस्थान की तर्ज़ पर, किया जा सकता है। कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के क्षेत्र में हो रहे उक्त परिवर्तन के कारण किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम अब बाज़ार में मिल सकेगा एवं अब उनका शोषण नहीं किया जा सकेगा।

इसी प्रकार, देश में लागू आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत सरकारों को यह अधिकार है कि वे किसी भी कृषि उत्पाद के भंडारण की सीमा निर्धारित कर सकती हैं। कोई भी व्यापारी इस निर्धारित सीमा से अधिक भंडारण नहीं कर सकता है। इस नियम के कारण कोल्ड स्टोरेज के निर्माण हेतु निजी निवेशक आगे नहीं आ रहे हैं। क्योंकि, पता नहीं कब भंडारण की सीमा सम्बंधी नियमों को लागू कर दिया जाये। दरअसल आवश्यक वस्तु अधिनियम क़ानून की जड़ें वर्ष 1943 तक पीछे चली जाती हैं जब देश में अकाल पड़ता था एवं कृषि उत्पादों का उत्पादन सीमित मात्रा में होता था। तब व्यापारियों पर कृषि उत्पादों के भंडारण हेतु सीमा लागू की जाती थी ताकि व्यापारी जमाख़ोरी नहीं कर सकें। परंतु आज तो परिस्थितियाँ ही भिन्न हैं। देश में अनाज का पर्याप्त भंडार मौजूद है तब आज इस प्रकार के नियमों की आवश्यकता ही क्यों है। अतः अब केंद्र सरकार द्वारा इस आवश्यक वस्तु अधिनियम को हटाया जा रहा है।

अभी तक किसान, सामान्यतः अगले वर्ष किस कृषि उत्पाद की फ़सल पैदा करनी है सम्बंधी निर्णय, इस वर्ष उस उत्पाद की बाज़ारू क़ीमत को आधार मान कर लेता है। उदाहरण के तौर पर यदि इस वर्ष प्याज़ के बाज़ार दाम अधिक थे तो अधिक से अधिक किसान प्याज़ की पैदावार करने का प्रयास करेंगे। अगले वर्ष फ़सल की मात्रा अधिक होने के कारण बाज़ार में प्याज़ के दाम कम हो जाते हैं, जिसके चलते किसानों को भारी मात्रा में नुक़सान झेलना पड़ता है। किसानों की इस परेशानी को दूर करने के उद्देश्य से अब अनुबंध खेती प्रणाली को प्रारम्भ किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत किसान, अपनी सोसायटी के माध्यम से, भविष्य में उसके उत्पाद की क़ीमत आज ही तय कर सकेगा एवं जिस भी संस्थान को उसे अपनी फ़सल बेचना है उससे अगले वर्ष होने वाली फ़सल की क़ीमत आज ही तय कर उस संस्थान से अनुबंध करेगा और उसी उत्पाद की खेती करेगा। हाँ, उस उत्पाद की गुणवत्ता का ध्यान ज़रूर उसे रखना होगा। इस प्रकार के नियम से देश में किसानों को उसकी उपज का उचित बाज़ारू मूल्य प्राप्त होने लगेगा।

इसी प्रकार, देश में किसानों के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम एवं कृषि आधारिक संरचना में जिन सुधार कार्यक्रमों को लागू किए जाने सम्बंधी घोषणा केंद्र सरकार द्वारा अभी हाल ही की गई है, यह दरअसल वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से किसानों की भलाई के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों में एक अगली कड़ी ही है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए जो-जो ज़रूरी है वह सब केंद्र सरकार करने का प्रयास कर रही है।

लघु एवं सीमांत किसानों के लिए खेती के साथ-साथ पशुपालन भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। अतः केंद्र सरकार ने देश में डेयरी उत्पादन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। नीली अर्थव्यवस्था (मछली पालन) एवं बाग़वानी पर भी विशेष ज़ोर दिया जा रहा है। नीति आयोग ने बताया है कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किसानों को अपनी 70 प्रतिशत आय खेती के माध्यम से अर्जित करनी होगी एवं 30 प्रतिशत आय पशुधन के माध्यम से अर्जित करने पर फ़ोकस करना होगा। साथ ही, किसानों को उच्च मूल्य की फ़सलों की ओर भी जाना होगा। फूलों, सब्ज़ियों, फलों, बाग़वानी आदि की खेती को भी किसानों को अपनाना होगा। देश के जिन इलाक़ों में पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है इन इलाक़ों में पानी का बहुभागी उपयोग करना होगा।

अतः केंद्र सरकार ने मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए 20,000 करोड़ रुपए ख़र्च किए जाने का निर्णय लिया है। इसी प्रकार, देश में डेयरी उत्पादन को बढ़ाने के लिए 15,000 करोड़ रुपए, मधु-मक्खी पालन को बढ़ाने के लिए 500 करोड़ रुपए एवं बाग़वानी विकास के लिए भी अलग अलग खंडो के लिए पैसा उपलब्ध कराए जाने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने किसानों के हितों की चिंता करते हुए पहली बार व्यापक स्तर पर कई घोषणाएँ की हैं। देश में 10 लाख हेक्टेयर भूमि पर हर्बल प्लांट की खेती होगी। साथ ही, देश के 50 जिलों में 50 बाग़वानी समूह प्रारम्भ किए जा रहे हैं जिस पर केंद्र सरकार द्वारा 10,000 करोड़ रुपए का ख़र्च निर्धारित किया गया है।
देश में विभिन्न कृषि उत्पादों का 5 से 18 प्रतिशत हिस्सा कटाई के बाद ख़राब हो जाता है। इसे बचाये जाने की सख़्त ज़रूरत है। यदि इस हिस्से को बचाया जा सके तो देश में 10 से 15 प्रतिशत कृषि उत्पादकता बढ़ सकती है। इससे किसानों की अतिरिक्त आय भी होगी। यह एकीकृत भंडारण व्यवस्था के माध्यम से सम्भव हो सकता है। एकीकृत भंडारण व्यवस्था में कटाई के समय ही फ़सल का कूलिंग, ड्राइंग, वॉशिंग एवं ग्रेडिंग किया जाना शामिल है। फ़सल को खेत से कोल्ड स्टोरेज तक भी शीघ्र ले जाने की आवश्यकता होती है ताकि खेत में लम्बे समय तक बनाए रखने के कारण होने वाले नुक़सान को रोका जा सके। भारत में 3.66 करोड़ टन की भंडारण क्षमता उपलब्ध है। इसे और बढ़ाये जाने की आज आवश्यकता है। साथ ही, वर्तमान उपलब्ध क्षमता का भी अच्छे ढंग से उपयोग करने की आवश्यकता है। जितनी भी हमारी भंडारण क्षमता है अधिकतर अभी कुछ विशेष उत्पादों के लिए ही उपयोग होती हैं। जबकि इसे विभिन्न उत्पादों का भंडारण किए जाने लायक़ बनाने की ज़रूरत है। जितने भी शीघ्र नष्ट होने वाले कृषि उत्पाद हैं उन सभी उत्पादों के भंडारण की व्यवस्था देश में होनी चाहिए। इसके लिए बड़े-बड़े कोल्ड स्टोरेज में अलग-अलग चैनल बनाए जा सकते हैं। इन विभिन्न चैनलों में विभिन्न उत्पादों का एक साथ भंडारण किया जा सकता है। इस प्रकार फ़सल की कटाई के बाद होने वाले नुक़सान को कम किया जा सकता है और यह किसानों की अतिरिक्त आय होगी। अक्सर यह कहा भी जाता है कि उत्पाद बचाना भी उत्पाद की पैदावार बढ़ाने के सामान है। उक्त कारणों को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने देश में अतिरिक्त भंडारण क्षमता का विकास करने का निर्णय लिया है एवं कृषि आधारित संरचना के विकास हेतु 100,000 करोड़ रुपए ख़र्च करने का निर्णय लिया है। जिसके अंतर्गत कृषि कोल्ड स्टोरेज एवं वेयर हाउस आदि का निर्माण किया जायेगा।

देश में कृषि क्षेत्र को जब तक खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक किसानों की फ़सल का उचित मूल्य उन्हें नहीं मिल पाएगा। इसलिए अब केंद्र सरकार ने 10,000 करोड़ रुपए आवंटित करते हुए लघु एवं कुटीर उद्योग में 2 लाख खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों को स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। देश में कुल 7 लाख गाँव हैं जिनमें 2 लाख खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना होगी। जब यह योजना धरातल पर उतारी जाएगी तब इसका फ़ायदा स्पष्ट तौर पर किसानों को होता दिखेगा।

देश के विभिन्न भागों की कृषि उत्पादों में अपनी-अपनी विशेषता है। इस विशेषता का लाभ किसानों को मिले इसके लिए उस उत्पाद की ब्रांडिंग करने की योजना भी बनाई गई है। जैसे बिहार से मखाने, उत्तर प्रदेश से आम एवं लीची, आंध्रा प्रदेश से मिर्ची जैसे उत्पादों के लिए इन इलाक़ों से इन विशेष उत्पादों के विदेशों को निर्यात के लिए निर्यात उन्मुख इकाईयाँ स्थापित की जाएँगी। देश में 53 करोड़ दुधारू पशु हैं। इन सभी पशुओं का वृहद स्तर पर टीकाकरण किया जाएगा इसके कारण ये पशु कम बीमार पड़ेंगे एवं इसका फ़ायदा सीधे-सीधे किसानों को मिलेगा।

ऋण माफ़ी योजनाओं के स्थान पर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में यदि निवेश की राशि बढ़ाई जाएगी तो इस निवेश के माध्यम से देश में कृषि सम्पतियों का निर्माण होगा, इससे किसानों की आय एवं उत्पादकता में वृद्धि होगी और अन्य उत्पादों की माँग भी बढ़ेगी जिससे एक नए आर्थिक चक्र का निर्माण होगा जो ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोज़गार के कई नए अवसर निर्मित करेगा।

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