केवल सांसारिक भोगों में ही जीवन का सच्चा सुख नहीं है

*केवल सांसारिक भोगों में ही जीवन का सर्वोच्च सुख नहीं है। वह तो आत्मा परमात्मा को जानने पर ही मिलता है।*

संसार में लाखों योनियाँ हैं, जिनमें से केवल एक ही मनुष्य योनि विशेष सुविधाओं से युक्त है। शेष पशु पक्षी आदि योनियाँ तो प्रायः भोग योनियाँ हैं। उनमें कोई विशेष बुद्धि हाथ पैर कर्म करने की स्वतंत्रता इत्यादि सुविधाएं बहुत कम हैं। *परंतु कुछ ही आत्माओं को, ईश्वर की कृपा और उनके पिछले कर्मों के कारण, यह विशेष मनुष्य योनि प्राप्त हुई है। इस मनुष्य योनि में विशेष बुद्धि, कर्म करने के लिए दो हाथ, बोलने के लिए वाणी, कर्म करने की स्वतंत्रता, अच्छे माता-पिता गुरुजन इत्यादि बहुत सी विशिष्ट सुविधाएं ईश्वर से मिली हैं।*
इस विषय में गहराई से विचार करना चाहिए, कि यदि हमारे पिछले पुण्य कर्मों से हमें ये विशेष सुविधाएं प्राप्त हुई हैं, तो इन सुविधाओं को हमें देने में, ईश्वर का उद्देश्य क्या है? इतनी सुविधाओं को प्राप्त करके हमें इन से क्या लाभ उठाना चाहिए?
तो इस प्रश्न का उत्तर है कि, *हमें वह काम करना चाहिए, जिसे अन्य प्राणी नहीं कर सकते। वह काम है – ईश्वर की आज्ञा पालन करके आनंदित जीवन जीना। जिससे हमारा यह जन्म भी अच्छा हो, अगला जन्म भी अच्छा मिले, और अंत में मोक्ष भी प्राप्त हो जाए।*
तो सार यह हुआ कि सभी आत्माएं उत्तम सुख या आनन्द प्राप्त करना चाहती हैं। अन्य प्राणी तो ऐसा कर नहीं सकते , क्योंकि उनके पास इतने साधन नहीं हैं। मनुष्य के पास इतने साधन होते हुए भी वह सांसारिक क्षणिक सुखों में ही अपना पूरा जीवन नष्ट कर देता है, और ईश्वर भक्ति अर्थात् उसकी आज्ञा पालन करने में, अर्थात् यज्ञ दान ईश्वर की उपासना परोपकार आदि शुभ कर्मों में अपना समय नहीं लगाता। जिसका परिणाम यह होता है कि जीवन के अंतिम समय में वह सिर्फ पश्चाताप ही करता है , कि *मुझे बहुत से अवसर साधन और समय मिला था, फिर भी मैंने ईश्वर भक्ति नहीं की। इन साधनों अवसरों और समय का लाभ नहीं उठाया.*
*जीवन के अंत में पश्चाताप करने से अच्छा है, कि सब लोग अभी से जागें, उत्तम कर्मों को करें तथा अपने जीवन को सफल बनाएं।*
– *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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