साभार – इंडियन एक्सप्रेस
भारत में दिल्ली एवं अन्य राज्यों में हो रहे नागरिकता संशोधक कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर सेकुलरिज्म का नंगा नाच सबने देखा। मोदी विरोधी पार्टियों और कुछ हिन्दुओं ने भी किसी न किसी कारण इन साम्प्रदायिकताओं का खुलकर साथ दिया।
कुछ बिकाऊ मीडिया, जो अपने आपको गंभीर एवं खोजी पत्रकारिता का दावा करने वाले इन धरनों और प्रदर्शनों के पीछे की देश विरोधी गतिविधियों पर आंखें मूंदे रहे। योगी और मोदी के विरुद्ध ओछी भाषा का इस्तेमाल करने के साथ-साथ हिन्दुत्व विरोधी लग रहे नारों पर भी बेशर्म खामोश रहे। आस्तीन के साँपों के लिए लंगर लगा रहे थे, जिसे देखो बिकाऊ लोगों द्वारा दिए जा रहे धरनों को जनहित में बताने वाले अब क्यों खामोश हैं? किसी ने इतनी भी बुद्धि का इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं की कि “विरोध केवल मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ही क्यों हो रहा है? यह कहना हिन्दू भी साथ दे रहे हैं, फिर हिन्दू क्षेत्रों में क्यों नहीं हुआ?
दूसरे, इन अराजक तत्वों ने पुनः 15 अगस्त के बाद से नागरिकता संशोधक कानून धरनों को पुनः प्रारम्भ करने को थे, अब सितम्बर शुरू हो चूका है, लेकिन गीदड़ भबकी लग रही है। ऐसा लगता है कि अब उनको बिकाऊ लोगों का अभाव होगा, क्योकि दंगों में पकडे गए आरोपियों का लगभग एक ही बयान “भारत को इस्लामिक देश बनाने की मंशा” प्रमुखता से निकल कर आ रही है। CAA विरोध मात्र एक बहाना था। जिन्हें गरीब, मजलूम, असहाय और डरा हुआ प्रस्तुत किया जा रहा था, देखिए किस तरह CAA की आड़ में देश का भूगोल बदलने का षड़यंत्र खेला जा रहा था।
दिल्ली दंगों एक आरोपित आसिफ़ इक़बाल तन्हा ने दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के सामने स्वीकार किया था कि वह भारत को इस्लामिक मुल्क में तब्दील करना चाहता था। 2 सितंबर 2020 को दिल्ली की एक अदालत ने आसिफ़ की जमानत खारिज कर दी थी। आसिफ़ जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय का छात्र है और साल 2014 से स्टूडेंट इस्लामिक आर्गेनाईजेशन (SIO) का सदस्य भी है।
आसिफ़ पर फरवरी महीने में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की साज़िश रचने और उनमें शामिल होने का आरोप है। जिसके बाद उसे गैर क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। इस मामले की सुनवाई करते हुए एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने कहा कि प्रत्यक्षदर्शियों के आधार पर इतना स्पष्ट है कि आसिफ़ षड्यंत्र रचने से लेकर चक्का जाम की गतिविधि में शामिल था। इन दो घटनाओं की वजह से उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों की रफ़्तार अनियंत्रित हुई। इस मामले के एक अहम गवाह ने बयान दिया है कि आसिफ़ दंगों की साज़िश रचने वाले मुख्य लोगों में शामिल था।
घटना के संबंध में गवाहों के बयान विस्तृत न होने के चलते न्यायाधीश ने कहा, “वर्तमान हालातों में गवाहों की विश्वसनीयता को यूँ ही नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। गवाहों ने अपने बयान में जिस तरह दिल्ली दंगों में आसिफ़ और अन्य की भूमिका का उल्लेख किया है। उसके आधार पर मुझे यह बात कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि ऐसी तमाम वजहें हैं जिनके आधार पर लगाए गए आरोपों को प्राथमिक रूप से सत्य माना जाएगा।”
इस मामले में अमिताभ रावत ने कहा कि भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन उस स्वतंत्रता का भी एक दायरा है। अदालत ने अपने आदेश में कहा पूरे घटनाक्रम में उल्लेखनीय है कि जिस तरह असहमति जताई गई है। उससे इतना ज़रूर साफ़ होता है कि घटना के पीछे किसी न किसी तरह की साज़िश ज़रूर है। अदालत ने इन आरोपों का ज़िक्र करते हुए कहा ऐसी गतिविधि जिससे देश की एकता पर प्रभाव पड़े। किसी की जान को ख़तरा हो या कोई घायल हो, सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हो या लोगों के मन में दहशत फैले। इस तरह की सभी गतिविधियाँ यूएपीए की धारा 15 और 18 के दायरे में आती हैं। इसलिए आरोपित पर यूएपीए के यह प्रावधान लगाए जा रहे हैं।
अदालत ने यह भी कहा, “क्योंकि मामला दंगों की साज़िश से जुड़ा हुआ है इसलिए बयान और सबूत पूरी तरह पढ़े और समझे जाएँगे। इस तरह दावे भी किए गए थे कि आरोपित किसी भी तरह की हिंसा में खुद शामिल नहीं हुआ था लेकिन ऐसे दावे के आधार पर इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि आसिफ़ समेत कई लोगों ने खुद पूरे दंगों का षड्यंत्र रचा।”
ख़बरों के अनुसार आसिफ़ ने यह बात मानी कि उसने पहले दंगों को बढ़ावा दिया। इसके बाद उसने जामिया मिलिया इस्लामिया के गेट नंबर 7 से निकली 2500-3000 लोगों की भीड़ को दिशा निर्देश दिए। दोनों घटनाएँ 12 दिसंबर की हैं। आसिफ़ ने यह बात भी मानी कि शर्जील इमाम ने 13 दिसंबर को भड़काऊ भाषण दिए। जिससे प्रदर्शन में शामिल हुए लोग चक्काजाम करें।
आसिफ़ ने 15 दिसंबर को गाँधी पीस मार्च का आयोजन कराने की बात भी स्वीकार की। यह मार्च जामिया मेट्रो स्टेशन से शुरू हुई फिर जाकिर नगर और बाटला हाउस होते हुए संसद तक चली। उसने इस मार्च का नाम महात्मा गाँधी इसलिए रखा जिससे मार्च में ज़्यादा भीड़ इकट्ठा हो। दिल्ली पुलिस ने सूर्या होटल के पास बैरीकेडिंग तक लगा दिए थे जिससे प्रदर्शनकारियों को वहीं पर रोका जा सके।
इसके बाद आसिफ़ ने माना कि उसने प्रदर्शनकारियों को बैरीकेडिंग तोड़ने के लिए भी भड़काया और कहा कि पुलिस के पास उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं है। लेकिन वह अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि पुलिस ने भीड़ को अलग करने के लिए लाठी चार्ज कर दिया। इसके बाद जामिया के छात्रों ने पत्थर चलाना शुरू कर दिया, बसों में आग लगाई और दिल्ली की सड़कों पर निर्दोष लोगों से हाथापाई की। जिसकी वजह से पुलिस वाले और प्रदर्शनकारी दोनों ही घायल हुए था।
अंत में आसिफ़ इक़बाल ने यह भी बताया कि उसने देश के कई शहरों में भड़काऊ भाषण दिए। जिसमें कोलकाता, लखनऊ, कोटा, इंदौर, कानपुर, उज्जैन, जयपुर, पटना, सब्ज़ीबाग़ अररिया, समस्तीपुर और अहमदाबाद जैसे शहर शामिल हैं। उसने मुस्लिम समुदाय के लोगों से इस बात का निवेदन किया वह बड़े पैमाने पर विरोध करें और हिंसा की ज़रूरत पड़ने पर हिंसा भी करें। उसने कहा कि सड़क पर चक्का जाम करने की बात जेएनयू के एक्टिविस्ट उमर खालिद ने कही थी।
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