पंडित लेखराम जी के जीवन का एक प्रेरणादाई संस्मरण

* प्रस्तुति : आर्य सागर खारी

*एक युवक ने अमृतसर नगर में दीवार पर एक व्यक्ति को इश्तिहार लागाते हुए देखा व उसे पढ़ा*। *उसके अनुसार उस दिन आर्यसमाज मन्दिर में ऋषिभक्त पंडित लेखराम जी का प्रवचन होना था। वह युवक आर्यसमाज* *मन्दिर, अमृतसर में प्रवचन से काफी समय पहले पहुंच गया। वहां उसने देखा कि इश्तिहार लगाने वाला व्यक्ति ही आर्यसमाज में झाडू लगा रहा है।* *इसके बाद उसने आर्यसमाज में दरियां बिछाई। प्रवचन के आरम्भ का समय होने वाला था अतः लोग वहां आने लगे।* *कुछ ही देर में समाज मन्दिर में हजारों की भीड़ हो गई। यह युवक यह सब कुछ देखता रहा और स्वयं श्रोताओं के बीच बैठ गया।* *आर्यसमाज के मंत्री व प्रधान जी भी वहां आ गये। प्रवचन से पूर्व एक व अधिक भजन प्रस्तुत हुए।*

*मंत्री जी ने उस महामानव जिसके प्रवचन सुनने लोग समाज मन्दिर में आये थे, प्रवचन देने की प्रार्थना की। वह युवक देखता है कि इश्तिहार लगाने वाला, समाज मदिर में झाडू लगाने वाला व दरिया बिछाने वाला व्यक्ति ही प्रवचन कर रहा है। यह देख कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ। यह है पं.* *लेखराम जी के जीवन की महानता। वह आर्यसमाज के महान प्रचारक व विद्वान होकर भी छोटे से छोटा काम अपने हाथो से करने में संकोच नहीं करते थे। इसमें उन्हें किसी प्रकार की लज्जा का अनुभव नहीं होता है। पंडित लेखराम जी को सादर नमन्*।

*जो युवक उनके स्वामी दयानन्द के मिशन को देखकर प्रभावित हुए थे। वह आगे चलकर आर्यसमाज के महान विद्वान् पंडित आत्माराम अमृतसरी के नाम से प्रसिद्द हुए।*

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