सभ्यता और असभ्यता को पहचानो

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अपने व्यवहार को शुद्ध एवं सभ्यतापूर्ण बनाए रखें।
एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से पूछा कि, *क्या आप मुझे 2 मास के लिए 5,000/- रुपये उधार दे सकते हैं?* दूसरे व्यक्ति ने कहा, *मैं आपको कल दोपहर 12:00 बजे तक उत्तर दूंगा।* पूछने वाले ने कहा, *हां या न. जो भी हो, उत्तर अवश्य दीजिएगा।* दूसरे व्यक्ति ने कहा, *ठीक है।*

पूछने वाले व्यक्ति ने, अगले दिन दोपहर 12:00 बजे तक प्रतीक्षा की। सामने वाले व्यक्ति का कोई उत्तर नहीं आया. 2 दिन बीत गए, 5 दिन बीत गए, 1 महीना बीत गया। फिर भी कोई उत्तर नहीं आया।
ऐसी घटनाएं व्यवहार में बहुत होती हैं। आपने भी देखी होंगी। शायद कभी आपके साथ हुई भी हो। ऐसी घटनाओं के होने पर जिसने कहा था, *मैं कल दोपहर 12:00 बजे तक आपको उत्तर दूंगा। हां या न।* वह सोचता है, कि यदि मैंने उसे उत्तर नहीं दिया, तो वह समझ ही जाएगा, कि मेरा उत्तर *न* है। यह सोचकर उसने उत्तर नहीं दिया।
परंतु व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो यह सभ्यता नहीं है। जिसने उत्तर देने का वचन दिया था, तो उत्तर देना उसका कर्तव्य था। *चाहे उत्तर हां में हो, चाहे न में हो, जो भी हो; उसे उत्तर देना ही होगा। तभी वह सभ्य माना जाएगा। ईमानदार, सत्यवादी और कर्तव्यपरायण माना जाएगा, अन्यथा नहीं। उत्तर न देने से संशय भी उत्पन्न होता है कि शायद उत्तर देने वाला कहीं उत्तर देना भूल तो नहीं गया?*
अगर उसे यही मानकर चलना था, कि *यदि मैं उत्तर नहीं दूंगा, तो वह समझ जाएगा, कि मैं रुपये देना नहीं चाहता।* तो वचन देते समय ही उसे यह बात स्पष्ट करनी चाहिए थी, कि *यदि मेरा फोन नहीं आया, तो आप समझ लेना, मेरा उत्तर न है.*
वचन देते समय ऐसा कहने पर तो वह दोषी नहीं माना जाएगा। परंतु यदि वह ऐसा नहीं कहता और यह कहता है कि *मैं कल दोपहर 12:00 बजे तक आपको उत्तर दूंगा, हाँ या न।* ऐसा कहने पर तो अब वह अपने वचन के बंधन में आ गया है। *अब उसे उत्तर देना ही पड़ेगा, चाहे उत्तर हां हो, या न हो, जो भी हो।*
इस बात को अपने व्यवहार में लाएं। इसका नाम सभ्यता है। *ऐसा न सोचें, कि यह तो चलता है.* यह सोचना असभ्यता है। सभ्यता सीखें। *सभ्यता का व्यवहार करने से व्यक्ति स्वयं भी सुखी रहता है और समाज को भी सुख मिलता है। दूसरों को आपके व्यवहार में संशय भी नहीं होता।*
– *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

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