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इस्लाम साहित्य में शाकाहार-2

गतांक से आगे….
किसी भी धार्मिक पुस्तक में उन सभी वस्तुओं का वर्णन होता है, जो ईश्वर ने इस दुनिया में बनाई है। ईश्वरीय पुस्तकें समस्त विश्व के लिए हैं, इसलिए उनका भेद देश और काल के आधार पर नही किया जा सकता है। अनेक स्थानों पर शब्दों में उनका वर्णन किया गया है और असंख्य ऐसी वस्तुएं हैं जो सांकेतिक हैं। खान-पान में आने वाली उन वस्तुओं का विवरण कुरान की किस सूरा (अध्याय) और उस सूरा की किस आयत पंक्ति में दिया गया है, उसमें कुछ को यहां प्रस्तुत किया जा रहा हे-

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पवित्र कुरान में कहा गया है-कुलू वशिरबू वला तुसरिकू जिसका अर्थ होता है-मांस भी खाओ और अन्य चीजें भी खाओ, लेकिन किसी भी वस्तु को खाने में सीमा पार न करो। यानी भोजन में संतुलन अनिवार्य है। ऐसे पशु और पक्षी, जिनके मांस का भक्षण मनुष्य समाज करता है, वे कृषि और वनों के माध्यम से मिलने वाली उपज की तुलना में बहुत कम है। इसलिए यह स्वाभाविक बात है कि स्वयं प्रकृति मनुष्य को शाकाहारी बनने का अप्रत्यक्ष रूप से संदेश देती है। मनुष्य के विवेक पर यह बात निर्भर है कि वह अपने शरीर के लिए अधिकतम उपयोगी वस्तु का उपयोग करे। साथ ही उक्त वस्तु सरलता से मिल सके। तब मनुष्य को घूम फिरकर शाकाहार की ओर ही लौटना पड़ता है। इसलामी साहित्य में पशु पक्षियों के मांस से होने वाले लाभ की चर्चा बहुत ही कम मिलती है, लेकिन कुदरत जिसे धरती पर उगाती है उन वस्तुओं के संबंध में उनके उपयोग और लाभ की चर्चा विस्तृत रूप से की है। खान पान के लिए पहली शर्त उक्त वस्तु का सरलता से मिल जाना है। शाकाहारी भोजन के लिए उपयोग वस्तुएं बड़ी आसानी से मिल जाती हैं लेकिन पशु पक्षी का मांस अथवा पानी में रहने वाले जीव व मछलियों आदि का सरलता से मिल पाना कठिन है। खाना तैयार करते समय कौन सी वस्तुओं में सरलता है यह अपने आप में सिद्घ कर देता है कि मनुष्य शाकाहारी बने, यह स्वयं कुदरत का संदेश है। संत ऋषि मुनि और पैगंबर वे चाहे जिस क्षेऋ के हों, उन्होंने अधिकतम शाकाहार का उपयोग करके ही ईश्वर की उपासना की है। सात्विक भोजन ही अध्यात्म की प्रथम सीढ़ी है। इसलिए पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब और उनके खलीफाओं ने सत्तू (जौ का आटा) पसंद किया है और अपने सदाचारी जीवन में उसी को अपने भोजन का विशेष अंग बनाया है। सात्विकता बनाये रखने के लि ए ही उपवास का अंत नमक, द्राक्ष अथवा खजूर से किया जाता है। दस मोहर्रम को यजीद ने इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद किया था। इसका शोक मनाने के लिए सामान्य मुसलिक 10 तारीख को उपवास रोजा करते हैं। सूर्यास्त के पश्चात उपवास छोड़ते समय भाजी और रोटी खाने में समाधान व्यक्त करते हैं। कृषि प्रधान देशों में रहने वाले मुसलमान त्यौहारों पर मिठाई का उपयोग करते हैं। ईदुल फितर के अवसर पर वे क्षीर खुरमा बनाते हैं। दूध और खजूर के साथ मैदे से बनी सिवइयों का इसमें उपयोग किया जाता है। इसका सीधा और सरल अर्थ यह है कि सात्विकता बनाये रखने के लिए हर धर्म के इनसान को शाकाहारी बनना अनिवार्य हो जाता है। क्रमश:

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