नरेश भारती
दिल्ली में भाजपा के बावजूद आम आदमी पार्टी का कांग्रेस को धराशायी करने में सफ ल भूमिका निभाने के बाद राजनीति में प्रवेश उसके लिए आत्ममुग्धता का अवसर है यह स्वाभविक ही है क्योंकि जनता ने उसे विधानसभा स्तर पर ही सही लेकिन पहले ही प्रयास में एक और विकल्प के रूप में मान्यता दी है अपनी इस नई भूमिका में आम आदमी पार्टी के नेता जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के अपने दावों पर कितना खरे उतरते हैं इस पर निश्चय ही जनता की कड़ी नजरें उस पर बनी रहेंगी बहरहाल ये चुनाव परिणाम अपने आप में यह स्पष्ट निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं कि जनता निश्चित रूप से कांग्रेस से तो बुरी तरह से असंतुष्ट है।
भारतीय लोकतंत्र में पनपी जय पराजय की चुनावी राजनीति में सर्वजन समानता के स्थान पर दुर्भाग्यवश समाज विघटनकारी जातिवाद और अल्पसंख्यकवाद को निर्बाध पनपने दिया गया है ये तत्व सर्वजन हितकारी विकास और सुशासन की सफ ल प्रस्थापना में बाधक और गति.अवरोधक रहे हैं जनसामान्य को वोट बैंकों में विभाजित करके उनके राजनीतिक शोषण की प्रचलित घोर स्वार्थपूर्ण राजनीति ने देश को पूर्ण नागरिक समानता के संवैधानिक अधिकार के अनुरूप विकास लाभ प्राप्त करने से वंचित किया है फ लत: बहुचर्चित सेकुलरवाद की छत्रछाया में पनपने वाली विभेदकारी साम्प्रदायिक राजनीति पर से पर्दा हटा उसके दुष्प्रभावों को भुगतने वाली जनता के समक्ष जब गुजरात और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकारों के द्वारा किए गए विकास कार्यों का खुलासा हुआ तो उनकी आँखें खोल देने वाला साबित हुआ वह असमानता और विभेदकारी कथित वादों की राजनीति से तंग आकर सत्य के साथ साक्षात्कार करने के लिए तत्पर दिखाई देने लगी है भारत निश्चय ही एक परिवर्तनकारी चुनावी दौर में प्रवेश कर चुका है सामान्य मतदाता अब पूर्वापेक्षा अधिक जागरूकता के साथ अपना भला बुरा सोचते हुए किसी पार्टी या व्यक्ति को समर्थन देने का फैसला करने को तत्पर दिखाई देने लगा है।
इस परिप्रेक्ष्य में यदि इन विधानसभा चुनावों को आगामी लोकसभा चुनावों के लिए प्रतिस्पर्धी पार्टियों का पूर्वाभ्यास मान लिया जाए तो देश की जनता को भाजपा के नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राहुल गांधी के बीच हुए प्रखर वाकयुद्ध और उसके स्तर का ध्यान आएगा। एक की विषय.प्रवण वाक्पटुता दूसरे की असहायता उसके सामने आएगीण् सकारात्मक संवाद और प्रतिसंवाद का अभाव रह रह कर उसे बहुत कुछ सोचने पर विवश कर रहा है वर्तमान भारतीय परिवेश में यह महत्वपूर्ण है कि जनता जाने कि देश की सर्वांगीण प्रगति और विकास संबंधी अधिक कारगर कार्य.योजना किसके पास है कौन प्रभावी तरीके से उसे जनता के दरबार में प्रस्तुत करने को सक्षम है किसके पास है सर्वजन हितपरक विचार दृष्टि उपलब्धियों पर आधारित प्रामाणिक क्षमताए देश के अन्दर सुशासन प्रदान करने और शेष विश्व के साथ योग्य सम्बन्ध निभाने के लिए आवश्यक श्रेष्ठ राजनयिकता और नेतृत्व गुण इसलिए भाजपा की और से नरेंद्र मोदी के बने रहते अब कांग्रेस को यह फैसला करना होगा कि उसके पक्ष की और से प्रधानमन्त्री पद के लिए उसका उम्मीदवार कौन होगा अभी भी राहुल या कोई और कांग्रेस पार्टी के अन्दर गहरे आत्ममंथन के संकेत मिल रहे हैंण् सार्वजानिक रूप से सोनिया गाँधी और राहुल के द्वारा पार्टी की पराजय स्वीकार करने के बयानों के अलावा अभी कोई भी बताने की जल्दी में दिखाई नहीं देता असफ लता जनित निराशा के इस वातावरण में प्रकटत पार्टी के अनुशासन का सम्मान करते हुए उसके प्रवक्ता अन्दर चल रही उहापोह की सार्वजानिक चर्चा से बचेंगे लेकिन प्रधानमंत्री श्री मनमोहनसिंह समेत कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ताओं के द्वारा भाजपा के नरेंद्र मोदी को अब एक चुनौती के रूप में स्वीकारने की बात स्पष्ट करती है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में चले चुनाव अभियानों की असफ लता की वे अधिक समय तक उपेक्षा नहीं कर सकते कांग्रेस पार्टी तत्संबंधी समीक्षा और रणनीती परिवर्तन पर विचार करने के लिए के लिए बाध्य हो रही है इस बीच यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाते नरेंद्र मोदी के नाम की पुन: पुष्टि कर दी है पार्टी के शेष नेता भाजपा की सफ लता के उभरते संकेतों के बीच एकजुटता के प्रदर्शन को अब पूर्वापेक्षा अधिक महत्व देते दिखाई पड़ते हैं क्या कांग्रेस भी इस चुनौती का सामना करने के लिए एकल परिवारवाद से मुक्त हो कर मुद्दों की राजनीति में लौटते हुए एक सशक्त विकल्प बने रहने का अवसर बनाए रखने की दूरदर्शिता दिखाएगी सफ ल जनहितपरक लोकतंत्र के लिए एक मज़बूत सत्ताधारी दल और वैसा ही मज़बूत विपक्ष होना अपरिहार्य आवश्यकता है। अभी पांच महीने का समय हैण् अर्धविराम के इस पड़ाव पर बने रहते अनेक तानेबाने बुने जाएंगे गठबन्धनों की राजनीति गत अनेक वर्षों से हावी रही है उसकी निष्पक्ष समीक्षा सहज निष्कर्ष देती है कि इसमें किसी एक मुख्य पार्टी की चुनाव अभियानों में अभिव्यक्त विचारदृष्टि सत्ता की कुर्सियों के हत्थे थामते ही कमज़ोर पडऩे लगती है गठबंधन की राजनीति समझौतों की राजनीति होने के कारण जनता के दरबार में की गईं बड़ी बड़ी घोषणाओं को निगलती चली जाती है मुख्य सत्ताधारी दल से कुछ कहते नहीं बनता और जनता मुंह देखती मन मसोस कर रह जाती है एक पार्टी की सरकार का बनना जनता के लिए भी यह संभव बनाता है कि वह किसी पार्टी के पक्ष में दिए गए अपने जनादेश की अवधि पूरा हो जाने पर सरकार की उपलब्धियों या उसकी असफ लताओं का सम्यक लेखा जोखा करके उसके अगले चुनावों में अपने भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करे पूर्ण बहुमत के साथ बनी सरकार अधिक साहस और बेहतर आत्मविश्वास के साथ सुशासन के लिए जनता की अपेक्षाओं की परीक्षा में पूरा उतरने के लिए प्रयत्नशील रहती हैण् क्या वर्ष 2014 में मिलेगा किसी एक दल को केंद्र में पूर्ण बहुमत मेरी दृष्टि में देश की जनता के करने योग्य यह महत्वपूर्ण फैसला अब एक चुनौती बन कर खड़ा है।
निस्संदेह भारत की जनता इस अर्धविराम की अवस्था में चिन्तन मनन करने के अपने अधिकार और कर्तव्य का उपयोग यह सोचते हुए अधिक मनोयोग के साथ करेगी कि प्रस्तुत परिवर्तन अवश्यम्भावी है जनता निराशा के वातावरण में स्वयंस्फू र्त सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ी है इसमें उदीयमान नई पीढ़ी का बढ़ता योगदान परिणामकारी है क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में देश का युवा मतदाता सूचियों पर अपनी उपस्थिति दर्ज होते देखने की आयु में पहुंचता चला जा रहा है संभावित दिशा परिवर्तन के साथ साथ देश की दशा में सुधार की आवश्यकता पूति के लिए युवाशक्ति की भूमिका नितांत आवश्यक है किसका चयन करेगा युवावर्ग क्या यह भी सुनिश्चित करेगा देश का मतदाता कि अब चर्चा हो तो केवल मुद्दों पर हो जो उसके सीधे सरोकार के हैं।