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कविता

गंगा

गंगा

गंगोत्री से निकली गंगा,
सब माता कार्य किये तुमने।
हरिद्वार, कानपुर ,कर्णप्रयाग,
सब हर्षित खूब किए तुमने।।
भारत के सभी हदय-जन का,
पावन उद्धार किया तुमने।
क्षण आया जब मां सेवा का,
हदय आघात किया हमने।।
धिक्कार है उन संतानों पर,
जिसने मां को आघात किया।
निर्मल अविरल आंचल को,
धावों का बड़ा आघात दिया।।
सरकारें आयीं चली गई,
सेवा का केवल ढोंग किया।
सेवा की मेवा खूब चखी,
न कोई ऐसा काम किया।।
आओ समय आ गया है,
सेवा उनकी निस्वार्थ करें।
प्रदूषण रूपी कोढ घटा कर,
नव जीवन की शुरुआत करें।।
जब आंचल हो निर्मल सा,
तब पीड़ा होगी उनकी कम।
हदय होगा उज्जवल सा,
संताने होंगी उनकी हम।।

नरेन्द्र कुमार शर्मा

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