विदेशियों ने भी गाए हैं भारत की महानता के गीत

 

जो लोग भारत में इतिहास के गलत लेखन के माध्यम से या तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए यह लिखते नहीं थकते कि भारत पर पश्चिम के बहुत एहसान हैं और उन एहसानों के कारण ही भारत आज का भारत बन पाया है ? उन्हें पश्चिम के ही न्याय प्रिय कुछ लेखकों के भी कथनों पर विचार करना चाहिए । जैसे महान फ्रेंच न्याय शास्त्री जैकोलियो अपने मौलिक ग्रंथ ‘भारत में बाइबिल’ में लिखते हैं :- ” भारत संसार का पालना है , वहां से यह सार्वजनिक मातृभूमि अपने बच्चों को आगे भेज रही है और सुदूर पश्चिम भी अपने प्रारंभ की स्पष्ट साक्षी उसकी वसीयत में पाता है । उसकी भाषा , उसके कानून ,उसका नीतिशास्त्र, स्थानीय साहित्य ,उसका धार्मिक विरोध पारस , अरब, मिश्र सब प्रारंभ में उसी की थाती को लिए बैठे हैं । अपनी सूर्यतप्ता जन्मभूमि को छोड़कर बहुत दूर ठंडे मेघाच्छन्न प्रदेश में जाकर वह व्यर्थ ही अपने रवानगी के स्थान को भुला बैठे । उनकी त्वचा भूरी रहे या पश्चिम की बर्फ के संयोग से वह सफेद बन जाए ,उनके द्वारा स्थापित संस्कृति की शानदार सल्तनतें गिरकर चकनाचूर हो जाएं और उनका कोई निशान सिवाय कुछ वास्तुकला के ध्वंसावशेष के न बचा रह जाए । पहलों की धूल पर नए मानव खड़े हो जाएं , पुराने के खंडहरों पर नए शहर चाहे आबाद हो जाएं ,परंतु समय और बर्बादी मिलकर भी अपने प्रारंभ के सदा स्पष्ट चिन्ह को नहीं मिटा सकते। व्यवस्थापक मनु जिनकी प्रमाणिकता संदेह से ऊपर है , ईसाई संवत से 3000 वर्ष पुराने समय के हैं , ब्राह्मण तो उन्हें और भी प्राचीन काल का बताते हैं। पूर्वी तिथि क्रम की पुष्टि के लिए हमारा ज्ञान तथा भौतिक साक्ष्य हमारे तिथि क्रम से कम हास्यास्पद हैं और इस संसार के निर्माण के लिए विज्ञान की तान से अधिक मेल खाता है । हम अभी देखेंगे कि मिस्र , जूडिया , यूनान ,रोम सब अपने-अपने पुरातन को ब्राह्मण समाज के वर्ण , सिद्धांतों , धार्मिक विचारों का उल्टा किए हुए हैं और इसके ब्राह्मणों ,पुजारियों तथा इसकी चरित्रहीनता को लाए हुए हैं। साथ ही भाषा व्यवस्थापन तथा प्राचीन वैदिक भाषा समाज के दर्शन को अंगीकार कर गए हैं ,जिस समाज से उनके पूर्वज प्रारंभिक ज्ञान के महान विचारों को संसार को देने के लिए विदा हुए थे।”

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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