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कविता

ईद मुबारक

 

चाँद उतरता हो जिस आँगन, उसको ईद मनाने दे ।
अपनी किस्मत में बस रोजा, रोजा रोज निभाने दे ।
कब तक देख भरी माँगों को, अपना माथा फोडेंगे –
चाँद अड़ा है अपनी जिद पर, हमको भी अड़ जाने दे ।।

चाँद देखकर ईद मुबारक-
तुम भी बोलो मैं भी बोलूँ।

वर्षों तक उपवास रखा था,
मधुर मिलन की आस रखा था,
अन्तहीन निष्ठुर पतझर में-
कैसे कहो विरह में डोलूँ?
चाँद देखकर………………….।

कुछ के हिस्से पावस आया,
मधु बसन्त कुछ को हरषाया,
ऐसा सिर मुड़वाया मैनें-
ओले में कैसे पट खोलूँ?
चाँद देखकर………………..।

चाँद सभी के छत पर उतरा,
मेरे घर अँधियारा पसरा,
तुम बिनु मेरी ईद अधूरी-
छुपकर तनहाई में रो लूँ ?
चाँद देखकर………………..।

डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’
8787573644

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