झारखंड में सब्जी उत्पादक किसानों की हुई हालत खस्ता , बिचौलिए ले रहे हैं मौज , सरकार सो रही है गहरी नींद

जमशेदपुर । (धनपत महतो ) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के द्वारा कोरोना संकट से निपटने के लिए लॉक डाउन तो लगाया गया परंतु यह कितनी जल्दबाजी में और बिना आगा पीछा सोचे लगा दिया गया इसके कितने ही उदाहरण देखने को मिले हैं । बात यदि झारखंड के किसानों की करें तो यहां पर लोगों को अपनी सब्जी का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है । जो भिंडी और करेला मार्केट में 20 ₹30 किलो तक बिक रहा है उसे किसान किसी भी तरीके से अपने खेत से निकालने के लिए मजबूर हो गया है । उसकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए बिचौलिया ₹5 किलो में उससे सब्जी खरीद रहे हैं । जो कि लागत मूल्य से भी बहुत कम है । ऐसे में किसानों के आंसू भीतर को जा रहे हैं। न शासन को चिंता है ना प्रशासन को चिंता है । ऐसे में बिचौलिया की पौ बारह हो रही है। जिस किसान को लेकर सरकार चिंतित होती दिखाई देती हैं या अपनी बनावटी चिंता प्रकट करती रहती हैं उसके बारे में कोई परवाह किसी प्रकार की नहीं है ।

क्या ही अच्छा होता कि किसानों को उसकी सब्जी का उचित मूल्य देने के लिए टेंपो आदि की सेवा खुली रखी जाती और किसान जिस प्रकार पहले से अपनी सब्जी को ले जाकर मंडी में बेच रहा था उसी प्रकार की सुविधा उसे मिली रहती । परंतु सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया । प्रदेश सरकार से इस विषय में लिखा पढ़ी भी हुई । परंतु कोई ध्यान किसी प्रकार का नहीं दिया गया । जिससे अन्नदाता किसान के लिए पूरे साल के लिए सिवाय आंसू बहाने के और कुछ हाथ नहीं आ पा रहा है।
किसानों की मांग है कि सरकार को कोल्ड स्टोरेज खोल देने चाहिए और वहां पर किसान से उसकी सब्जी लेकर सुरक्षित रख ली जाए । साथ ही किसानों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य भी दे दिया जाए। किसानों की यह भी मांग है कि बिचौलियों को हटाया जाए और उनका माल सीधे सरकार द्वारा खरीद कर रखा जाए। जिससे कि पूरे साल भर उनकी जीविका पर कोई किसी प्रकार का संकट न आने पाए ।
वास्तव में जब बिचौलिया इस प्रकार की मनमर्जी करते हैं और किसान की अंतड़ियों को खींचने का निर्दयता पूर्ण कृत्य करते हैं तो ऐसे में ही किसान आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है । जब किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो सरकारों की नींद खुलती है। परंतु दुर्भाग्य की बात है कि सरकारें झपकी लेकर फिर सो जाती हैं और यह बिचौलिए फिर खड़े होकर हथियार पैनाकर किसान की गर्दन रेतने लगते हैं। पता नहीं इस देश में वास्तविक लोकतंत्र कब बहाल होगा ?

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