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राजनीति

दुई पाटन के बीच में गडकरी गये पिसाय

विसर्जन के फूल का भी सम्मान होता है तो गडकरी एक सम्मानित नेता के तौर पर ही अध्यक्ष पद छोड़ें तो ज्यादा अच्छा होगा। यानी गडकरी को लेकर जो बहस गुजरात चुनाव तक थमनी थी, उसे 40 दिन [ 21 दिसबंर को दूसरा टर्म शुरु होगा ] पहले ही हवा देकर संकेत दे दिये गये कि नीतिन गडकरी की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है। जाहिर है यह बात ना तो भाजपा के भीतर से कोई कहेगा और ना ही संघ इसे कह पायेगा। लेकिन संघ की परंपरा बताती है कि वह भार लेकर साथ चलना नहीं चाहता है।
यह आरएसएस की परंपरा ही है कि संघ ने एक वक्त कुप्प सी सुदर्शन तक को किनारे लगाया। यानी पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन को लेकर संघ परिवार के भीतर ही सवाल उठे और संघ में सरसंघचालक बदल गये। विहिप के प्रवीण तोगडिया और मनमोहन वैघ को नरेन्द्र मोदी के लिये किनारे किया गया। जिन्ना मुद्दे पर आडवाणी के खिलाफ सबसे सक्रिय प्रवीण तोगडिया को मोदी के आड़े आने पर संघ ने ही खामोश किया और मनमोहन वैघ को गुजरात से हटाकर नागपुर लाया गया। गडकरी नगपुर से ही आने वाले संजय जोशी को भाजपा में लाने के लिये भिड़े रहे लेकिन संघ कभी संजय जोशी के मुद्दे पर गडकरी के साथ खड़ा नहीं हुआ। तो परंपरा के लिहाज से संघ के लिये कॉरपोरेट फिलास्फी मायने रखती है, उसके लिये व्यक्ति का महत्व नहीं है। इसी परंपरा को निभाते हुये ही संघ के सामने उसी नीतिन गडकरी का सवाल आया, जिसे नागपुर के रास्ते दिल्ली भेजा। और दिल्ली में भाजपा की राजनीति करने वालो ने माना कि गडकरी भाजपा के नहीं आरएसएस की पंसद है। संघ से पंगा कौन ले। इसलिये गडकरी अध्यक्ष पद पर भी रहे और भाजपा के पारंपरिक राजनीति से अलग भी दिखायी देते रहे। इस अलग दिखाई देने को नीतिन गडकरी ने संघ की परंपरा से खुद को जोडऩे के लिये इस्तेमाल किया।
लेकिन उस दौर को भी याद करें तो सरसंघचालक मोहन भागवत ने बार बार यही कहा कि नितिन गडकरी का नाम लालकृष्ण आडवाणी ने ही सुझाया था। संघ ने सिर्फ इतना ही कहा था कि अब कोई बुजुर्ग अध्यक्ष नहीं चलेगा। और इस कडी में लालकृष्ण आडवाणी ने एक एक कर कई नाम सुझाये। और चौथा नाम गडकरी का था, जिस पर संघ ने मुहर ला दी। तीन बरस पहले की इस गाथा के पन्नो को दोबारा टटोलना इसलिये जरुरी हो गया है क्योंकि एक बार फिर संघ और भाजपा दोनो ही उसी मुहाने पर आ खड़े हुये हुये हैं, जहां तीन बरस पहले खड़े थे। अंतर सिर्फ इतना है कि इस बार अध्यक्ष को 2014 के चुनाव में अगुवाई करने वाले चेहरे के साथ जोड़कर देखना है।

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