कश्मीर और सिंध को लेकर भारत अपने इतिहास और भूगोल दोनों को याद रखें

बी पी मेनन भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के निजी सचिव थे । उन्होंने कहा था कि जो राष्ट्र अपना इतिहास तथा अपना भूगोल भूल जाता है उस राष्ट्र का विनाश अटल है। आज के संदर्भ में भी मेनन के उपरोक्त शब्द अक्षरश: सत्य सिद्ध होते हैं । संसार के किसी भी जीवंत राष्ट्र को अपनी जीवंतता और अस्तित्व को बनाए रखने के लिए यह ध्यान रखना ही चाहिए कि वह अपने इतिहास और भूगोल को सदा याद रखें। हमें अपने इतिहास के साथ-साथ भूगोल की भी जानकारी अवश्य रखनी चाहिए तभी हम अपने राष्ट्र को सही मायने में सुरक्षित रख पाएंगे ।
जब हम आज की परिस्थितियों पर विचार करते हैं तो हमें अपने देश के इतिहास और भूगोल पर विचार करते हुए पाक अधिकृत कश्मीर और सिंध पर भी गहरा मंथन करना चाहिए । इसके साथ ही हमें सिन्ध और बलूचिस्तान की भी बात करनी पड़ेगी ।
सवाल उठता है कि पाकिस्तान में जगह-जगह आजादी की मांग क्यों उठ रही है ? पाकिस्तान के चार प्रांत हैं – पंजाब , खैबर पख्तूनख्वा , सिंध और बलूचिस्तान । पीओके उनका प्रांत नहीं है बल्कि पाकिस्तान उसे अलग देश जैसा मानता है , लेकिन इसके उपरांत भी पाकिस्तान ने उसे अपने अधीन रखा हुआ है । पंजाब को छोड़कर उसके तीन प्रांत खैबर पख्तूनख्वा , सिंध और बलूचिस्तान आजादी की राह पर हैं । पीओके भी आजादी की राह पर है ।
पीओके को पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है । आजाद कश्मीर के लोग अब फिर आजादी की बात क्यों कर रहे हैं ? पाकिस्तान के हुक्मरान को समझना चाहिए कि वे लोग पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तान की सरकार से आजादी चाहते हैं ।

बात साफ है कि यदि पीओके मैप सिर अपनी आजादी की बात या मांग उठ रही है तो या तो पाकिस्तान पीओके के लोगों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है या पाकिस्तान ने जानबूझकर यहां के लोगों के साथ अन्याय किया है।
यह विचारणीय है कि आजाद कश्मीर के लोग तो आजाद हैं और भारत में मिलना चाहते हैं ।पाकिस्तान के हुक्मरान को इस बात को समझने की आवश्यकता है ।
पाकिस्तान ने इन लोगों को बरगला कर इनको आगे करके अपनी सेना के साथ अक्टूबर 1947 में कश्मीर पर आक्रमण करके इनको आजाद कराने का जो नाटक किया था उसका पटाक्षेप अब हो चुका है । पीओके अर्थात आजाद कश्मीर की अवाम इस सारे नाटक को समझ चुकी है और अब वह लोग असल में पाकिस्तान के चंगुल से आजाद होना चाहते हैं ।
वैसे देखा जाए तो पीओके कश्मीर से सन 1947 में अलग कर दिया गया था । भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1 जनवरी 1948 को एकतरफा युद्ध विराम किया था और एक पत्र संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजा था । तब से आज तक जो भूभाग हमसे अलग हुआ था वह आजाद कश्मीर के नाम से है और पाकिस्तान के चंगुल में है ।
ध्यान रहे कि उस समय पंडित नेहरू तदर्थ सरकार के प्रधानमंत्री थे । उनके द्वारा लिए गए निर्णय को मानना या ना मानना यह भारत की जनता के हाथ में है । अब हमारे चुने हुए प्रधानमंत्री चाहे तो एक पत्र संयुक्त राष्ट्र को भेज दें कि हमने जो पत्र पहले दिया था उसको निरस्त माना जाए । क्योंकि वह हमारे किसी चुने हुए प्रधानमंत्री के द्वारा दिया गया पत्र नहीं था अपितु वह तात्कालिक परिस्थितियों में देश की व्यवस्था को संभालने के लिए प्रधानमंत्री का दायित्व निभा रहे पंडित नेहरु के द्वारा दिया गया पत्र था । जिस पर देश की जनता ने तो उस समय सहमत थी और न आज है ।
कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है । इसके बाद इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के द्वारा किया गया शिमला समझौता इस विषय को ‘द्विपक्षीय’ कहता है । जिसका अर्थ है कि पंडित नेहरू द्वारा इसे यूएनओ में ले जाने की बात शिमला समझौते में आए शब्द ‘द्विपक्षीय’ के साथ ही मर गई अब इसका कोई औचित्य नहीं है । यदि कहीं कोई विवाद की बात है तो उसे भी हम द्विपक्षीय आधार पर ही निपटाएंगे न कि किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के द्वारा ।मामले को हम स्वयं सुलझा लेंगे और जिस प्रकार पाकिस्तान ने कबालियो को आगे करके कश्मीर के एक भू-भाग को अलग करवाकर आजाद कश्मीर का नाम देकर उसको अपने अधीन किया उसी प्रकार हम भी बल प्रयोग करके पीओके को वापस अपने साथ मिला लें । वहां की अवाम भी यही चाहती है ।
सिंध को पाकिस्तान ने जबरन अपने साथ रखा हुआ है जबकि वहां के लोग आजादी की मांग कर रहे हैं । वहां के लोग भारत में मिलना चाहते हैं । भारत को भी चाहिए कि उन्हें अपने साथ मिला ले । सिंधु नदी जो हमेशा से भारत की ध्वजा के नीचे से बहती आई है वह फिर से भारत की ध्वजा के नीचे बहने लगेगी और इसका एक बड़ा लाभ होगा कि ‘पंजाब सिंध गुजरात मराठा’- – – नाम की जो पंक्ति हमारे राष्ट्रगान में है वह साकार हो जाएगी ।
एक और खास बात होगी कि हुतात्मा पo नाथूराम गोडसे जी ने अपनी जो वसीयत लिखी है उसके अनुसार उनकी अस्थियों को सिंधु में तब प्रवाहित किया जाए जब वह भारत की ध्वजा के नीचे से बहे, इस प्रकार सिंध के भारत में मिलने से हुतात्मा गोडसे जी की अस्थियों को सिंधु में प्रवाहित किया जा सकेगा । पूना में उनकी अस्थियां आज भी उनके परिवार के लोगों के पास रखी हुई है और इंतजारउ कर रही है कि कब सिंधु भारत की ध्वजा के नीचे से बहे ।
एक बात और है कि पाकिस्तान सिंध को भारत में मिलने से नही रोक पायेगा । इसमें हमारा यह कहना है कि 1947 में धर्म के आधार पर बंटवारा किया गया था , उसमें 23% मुसलमानों को 30% भूमि पाकिस्तान के रूप में दी गई थी , जो मुसलमान भारत में ही रह गए , उनकी आबादी के अनुसार उनकी भूमि पाकिस्तान में चली गई , उस पर हमारा हक बनता है और हम उस भूमि के बदले सिंध को अपने साथ मिला लें यह उचित होगा ।
खैबर पख्तूनख्वा आजादी चाह रहा है हम उसे अपना नैतिक समर्थन दें और देते रहें । जो पाकिस्तान पिछले 73 वर्षों से भारत को विभिन्न तरीकों से परेशान करता रहा है । ऐसे में हमें खैबर पख्तूनख्वा को अलग करने की कार्यवाही में कोई संकोच नहीं करना चाहिए । सिंध के लोग भी यही चाहते हैं।
बलूचिस्तान जो हमेशा से आजाद मुल्क रहा है , उसको पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को सैन्य बल का प्रयोग करके कब्जा कर लिया था और तबसे आज तक बलूचिस्तान के लोग आजादी की मांग कर रहे हैं । हमें उनका नैतिक समर्थन करना है और हम चाहेंगे कि बलूचिस्तान शीघ्र आजाद हो । बलूचिस्तान में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक मां हिंगलाज भवानी का मंदिर है जो कि हमारी आस्था का प्रतीक है । बलूचिस्तान के आजाद होने से हम वहां दर्शन को अवश्य जा सकेंगे ।
बलूचिस्तान और सिन्ध यह दो देश अवश्य बनने चाहिए । आजाद होने चाहिए जिस प्रकार पाकिस्तान हमें परेशान करता रहा है यह दोनों उसको परेशान करने का काम करेंगे । अब समय आ गया है कि हम अपनी भौगोलिक स्थिति में सुधार करने का काम करें ।

धर्म चंद्र पोद्दार
(राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष :वीर सावरकर फाउंडेशन)

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