राजभाषा अधिनियम की अनुपालना

मनीराम शर्मा
मान्यवर को ज्ञात ही है कि राजभाषा अधिनियम,1963 की धारा 3(3) के अनुसार समस्त संकल्प, कार्यालय टिप्पण, साधारण आदेश, नियम, अधिसूचना, प्रशासनिक/ अन्य प्रतिवेदन या प्रेस विज्ञप्ति, संसद के समक्ष रखे जाने वाले प्रशासनिक/अन्य प्रतिवेदन और राजकीय कागज-पत्र अंग्रेजी व हिंदी दोनों भाषाओँ में होने चाहिए। अधिनियम की वास्तविक व भावनात्मक अनुपालना में, समस्त कार्य – वितीय, प्रशासनिक, अर्ध-न्यायिक आदि – हिंदी भाषा में संपन्न किये जाने चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 351 में प्रावधान है कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाये, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। देश में हिंदी भाषी लोग 43त्न हैं जबकि अंग्रेजी भाषी लोग मात्र 0.021 हैं । निसंदेह रूप से हिंदी भाषा ही अन्य देशी भाषाओं की जननी है।
संविधान के अनुच्छेद 344(6) के अनुसार, अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति खंड 5 में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात उस सम्पूर्ण प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश दे सकेगा।
संसदीय राजभाषा समिति की संस्तुति संख्या 44 को स्वीकार करने वाले माननीय राष्ट्रपतिजी के आदेश को प्रसारित करते हुए राजभाषा विभाग के (राजपत्र में प्रकाशित) पत्रांक /20012/07/2005-रा.भा.(नीति-1) दिनांक 02.07.2008 में कहा गया है, जब भी कोई मंत्रालय/विभाग या उसका कोई कार्यालय या उपक्रम अपनी वेबसाइट तैयार करे तो वह अनिवार्य रूप से द्विभाषी तैयार किया जाए। जिस कार्यालय का वेबसाइट केवल अंग्रेजी में है उसे द्विभाषी बनाए जाने की कार्यवाही की जाए।
संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट खंड 5 में की गयी निम्न संस्तुतियों को राष्ट्रपति महोदय द्वारा पर्याप्त समय पहले, राज पत्र में प्रकाशित पत्रांक /20012/4/92- रा.भा.(नीति-1) दिनांक 24.11.1998 से, ही स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। संस्तुति संख्या (12)- उच्चतम न्यायलय के महा-रजिस्ट्रार के कार्यालय को अपने प्रशासनिक कार्यों में संघ सरकार की राजभाषा नीति का अनुपालन करना चाहिए। वहाँ हिंदी में कार्य करने के लिए आधारभूत संरचना स्थापित की जानी चाहिए और इस प्रयोजन के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए। संस्तुति संख्या (13)- उच्चतम न्यायालय में अंग्रेजी के साथ -साथ हिंदी का प्रयोग प्राधिकृत होना चाहिए। प्रत्येक निर्णय दोनों भाषाओं में उपलब्ध हो। उच्चतम न्यायालय द्वारा हिंदी और अंग्रेजी में निर्णय दिया जा सकता है। संस्तुति संख्या (16)-उच्च न्यायालयों के निर्णय, डिक्रियों व आदेशों में राज्य की राज भाषा अथवा हिंदी का प्रयोग किया जाना चाहिए। किन्तु निम्नांकित लोक प्राधिकारियों/जन सूचना अधिकारियों ने अभी तक उक्त कानूनी आदेशों की अनुपालना की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। आपके गौरवशाली कार्यालय के उक्त आदेशों की अवहेलना एक गंभीर विषय है। मेरे मतानुसार यदि इटली में जन्मी-पली और शिक्षित श्रीमती सोनिया गांधी हिंदी भाषा सीखकर देश की जनता को मोहित कर उस पर नियंत्रण -शासन स्थापित कर सकती है तो फिर भारतीय परिवेश में जन्मे-पले और शिक्षित न्यायाधीशों के लिए हिंदी भाषा सीखने में कठिनाई काल्पनिक बहाना मात्र है। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा जनवरी 2009 में जारी भारत सरकार की वेबसाइटों के लिए दिशा निर्देश के अध्याय 5 पैरा 5.7 के अनुसार राष्ट्र की स्वतंत्रता को पर्याप्त लंबा समय व्यतीत हो गया है किन्तु अभी तक प्रगति संतोषजनक नहीं है। अत: आपसे निवेदन है कि कृपया अब भारत सरकार के सभी कार्यालयों को निर्देश प्रदान करें कि 26.01.2013 के बाद वेबसाइट पर अपलोड की जाने वाली यूनिकोड फोंट्स में हिंदी भाषा में अवश्य हो। इस प्रसंग में आप द्वारा की गयी कार्यवाही से अवगत करावें तो मुझे प्रसन्नता होगी।

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