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कोरोना से जूझते भारत ने संकट काल में की दुनिया की मदद

उगता भारत (ब्यूरो)

यह सप्ताह भी कोरोना वायरस से लड़ते हुए बीता। देश ने हालांकि कोरोना वायरस की जाँच को तेजी से आगे बढ़ाने का काम किया है लेकिन कुछ लोगों की ओर से जिस तरह लॉकडाउन के नियमों की अवहेलना की गयी वह दर्शाता है कि यह लोग सरकार को चुनौती देने के मूड में हैं।
इस सप्ताह के राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करें तो देश कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में कदम आगे बढ़ाता हुआ नजर आया। केंद्र और राज्य सरकारें जिस बेहतरीन समन्वय के साथ कोरोना वायरस से निबट रही हैं वह दर्शाता है कि संकट के समय भारत के लोग हर प्रकार के मतभेद भुला कर एक हो जाते हैं। सरकारों ने लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई और कोरोना का असर जिन जगहों पर ज्यादा है उनको हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित कर वहां पूरे इलाके को सील करने की भी कार्रवाई की ताकि इस वायरस को फैलने से रोका जा सके।
केंद्र सरकार के लिए यह सप्ताह राजनीतिक रूप से इसलिए चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि उसे दूसरे देशों को दवा निर्यात के लिए अपने उस फैसले को वापस लेना पड़ा जिसमें उसने कई जीवन रक्षक दवाओं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। इस सप्ताह देश का पूरा राजनीतिक तंत्र जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर विधायक तक शामिल हैं, अपनी तनख्वाह में कटौती करवाता नजर आया। केंद्र सरकार ने सांसद विकास निधि और कई राज्यों ने विधायक विकास निधि को एक साल के लिए बंद कर दिया है जिस पर विवाद भी हुआ।
यही नहीं लॉकडाउन के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार सभी दलों के नेताओं के साथ सीधा संवाद कर उन्हें अपनी सरकार की ओर से उठाये जा रहे कदमों की जानकारी दी और उनके सुझाव भी लिये। राज्यों की राजनीति की बात करें तो महाराष्ट्र में राज्यपाल की ओर से कोरोना वायरस मुद्दे पर अधिकारियों की अलग से बैठक बुलाने पर विवाद हो गया। इसके अलावा तबलीगी जमात के सदस्यों ने केंद्र और राज्यों की सरकारों की नाक में दम किये रखा।

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