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इतिहास के पन्नों से: लंदन में धाँय-धाँय-३

गतांक से आगे…..
शांता कुमार
10 जुलाई को वैस्टमिंटर अदालत में मननलाल का मुकदमा आरंभ हुआ। उसने अपनी जब से पुलिस द्वारा तलाशी में प्राप्त वक्तव्य पढऩे का आग्रह किया। पर पुलिस वक्तव्य मिलने की बात से मुकर गयी। तब मदनलाल ने जबानी ही अदालत में वक्तव्य दिया। उसका वास्तविक वक्तव्य जो बाद में प्रकाशित हुआ था इस प्रकार था-
जो सैकड़ों अमानुषिक फांसी तथा काले पानी की सजाएं हमारे देशभक्तों को हो रही हैं, मैंने उसका ही साधारण बदला उस अंग्रेज के रक्त से लेने का प्रयत्न है। मैंने इस संबंध में अपने विवेक के अतिरिक्त किसी से सलाह नही की। किसी के साथ षडयंत्र नही किया। मैंने तो केवल अपना कत्र्तव्य पूरा करने की चेष्टा की है। एक जाति जिसको विदेशी संगीनों से दबाकर रखा जा रहा हो। समझ लेना चाहिए कि वह बराबर लड़ाई कर रही है एक नि:शस्त्र जाति के लिए खुला युद्घ तो संभव ही नही। मैं एक हिंदू होने की हैसियत से समझता हूं कि यदि हमारी मातृभूमि के विरूद्घ कोई जुल्म करता है तो वह ईश्वर का अपमान करता है। हमारी मातृभूमि का जो हित है वह श्रीराम का हित है। उसकी सेवा श्रीकृष्ण की सेवा है। भारतवासी इस समय केवल इतना ही कर सकते हैं कि वे मरना सीखें और इसके सीखने का एकमात्र उपाय यह है कि वे स्वयं मरें। इसीलिए मैं मरूंगा और मुझे इस बलिदान पर गर्व है…वंदेमातरम।
दूसरे दिन लंदन की दीवारों पर मदनलाल के चित्र सहित बड़े बड़े इश्तहार दिखाई दिये। उन पर मोटे अक्षरों में लिखा थ, आश्चर्यजनक वक्तव्य वह कहता है मेरा बलिदान भारत के लिए है। मैं देशभक्त हूं मेरी मृत्यु का बदला मेरे देशवासी चुकाएंगे। सर कर्जन वाइली की हत्या ने सारे विश्व में बड़ी खलबली मचा दी। सब ओर भारत चर्चा का विषय बन गया। विश्व की स्वतंत्र जनता यह सोचने पर विवश हो गयी कि भारत में कुछ असाधारण परिस्थितियां होंगी, जिनसे विवश हो भारतीयों का रोष लंदन तक भी मार करने लग पड़ा थ। इंग्लेंड के लोगों को अपनी प्रिय क्रिकेट भी इन दिनों भूल सी गई। भारत और मदनलाल ही सबकी बातचीत, समाचार पत्रों के संपादकीयों का एक जवलंत प्रश्न बन गया। विश्व का जनमत भारत की ओर सहानुभूति से देखने लगा। मदनलाल के बलिदान ने इतना बड़ा कार्य कर दिखाया।
मदनलाल अपनी मृत्यु दण्ड की प्रतीक्षा में था। इस हत्या के बदले में उसे फांसी की आज्ञा सुनाई जाएगी, यह कोई भी सोच सकता था, परंतु मृत्यु के मुंह पर खड़े होकर भी किसी प्रकार का भय उसे न था। वह साधारण रूप से खाता पीता और आराम की नींद लेता था। जेल में सावरकर प्राय: उससे मिलने जाते थे।
20 जुलाई को अंतिम बार के लिए मदनलाल को अदालत में लाया गया। उसके दर्शनों के लिए सैकड़ों भारतीय छात्र व कुछ लंदन निवासी उपस्थित थे। अदालत के भीतर किसी को भी नही जाने दिया। उसने जज को संबोधित करके कहा, मैं अपने ऊपर आपका कोई अधिकार स्वीकार नही करता। इसलिए आप जो चाहें, कर सकते हैं। मैंने कोई अपराध नही किया। जो कुछ मैंने किया, अपने देश के लिए किया। जिस प्रकार जर्मनी के लोगों का इंग्लैंड पर राज्य करने का कोई अधिकार नही है, उसी प्रकार अंग्रेजों को भारत पर राज्य करने का भी कोई अधिकार मैं नही मानता। मदनलाल ने अपना बचाव करने के लिए कोई वकील नही चाहा। वह तो ब्रिटिश न्यायालय से कहने लगा, मैं चाहता हूं आप मुझे फांसी का दण्ड दें। उससे भारतीयों की आपके प्रति प्रतिशोध की आग अधिक भड़क सकेगी। उसने फिर जज को संबोधित करके कहा, हजारों का वेतन लेने वाले अंग्रेज अधिकारी हजारों भारतीयों के हत्यारे हैं, क्योंकि उस धन से हजारों भूख से मरने वाले भारतीयों को बचाया जा सकता है। पिछले वर्षों में सब दृष्टियों से मेरे देश को लूटा गया है। मां बहानों का अपमान किया गया है।
यह सब सुनकर जज ने काला टोप सिर पर रखा और मृत्युदंड सुना दिया। फांसी की सजा सुनकर प्रसन्न वदन होकर मदनलाल ने जज को धन्यवाद दिया। फांसी से पूर्व उसने सावरकर को अपनी अंतिम इच्छा बताते हुए कहा था कि मृत्यु के बाद उसके शरी को कोई भी अहिंदू न छुए। हिंदू रीति से उसका अंतिम संस्कार किया जाए। अपनी पुस्तकों व अन्य समान को बेचकर प्राप्त होने वाले धन को किसी राष्ट्रीय कार्य में लगाने को उसने कहा था। जेल के लौह सींखचों के भीतर मदनलाल अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगा।
सावरकर व उसके साथियों की इच्छा थी कि मदनलाल की फांसी के पूर्व ही पुलिस द्वारा दबाए गये उसके वक्तव्य को प्रकाशित करवाया जाए। मदनलाल की तलाशी के समय पुलिस ने वह वक्तव्य प्राप्त करके सरकारी ताले में रख दिया था। परंतु ढींगरा की फांसी से ठीक एक दिन पूर्व 26 अगस्त को उसका वास्तवकि समाचार पत्रों में छप गया। इस अनहोनी घटना को देख साम्राज्यवाद के पांव तले की भूमि खिसक गई। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उनकी जरा भी समझ में न आया कि ताले के भीतर पड़ा हुआ वक्तव्य समाचार पत्रों तक कैसे पहुंचा। उसके वक्तव्य की एक प्रति सावरकर के पास थी। उसकी हजारों प्रतियां छपवाने का प्रबंध सावरकर ने कर लिया। श्री वर्मा ने उन्हें पेरिस से लेकर दूर अमेरिका तक के समाचार पत्रों को भेज दिया। इस वक्तव्य को छापने के लिए कोई लंदन का अंग्रेज समाचार पत्र नही मिल रहा था। दैनिक न्येज पत्र में एक आयरिश व्यक्ति सह संपादक के नाते कार्य करते थे। उनसे संपर्क स्थापित किया। उन्होंने अपनी रात की ड्यूटी के समय वक्तव्य छाप देने का वचन दिया। फिर तो सभी समाचार पत्रों ने उसे छापा। दैनिक मिरर ने तो सावरकर को उसे झूठा प्रमाणित करने के लिए चुनौती भी दे दी। वाइली की हत्या के भांति ही इस वक्तव्य के प्रकाशन ने भी लंदन के जन जीवन को बड़ा प्रभावित किया।
27 अगस्त फांसी के लिए तय था। आकाश की ओर देखकर मदनलाल ने कहा ईश्वर से मेरी केवल यही प्रार्थना है कि मैं फिर उसी माता के गर्भ से पैदा होऊं और फिर उसी पवित्र उद्देश्य के लिए अपने प्राणों को अर्पण कर सकूं। यह तब तक के लिए चाहता हूं, जब तक कि वह विजयी व स्वाधीन न हो जाए, ताकि मानव जाति का कल्याण हो, ईश्वर की महिमा का विस्तार हो सके। एक गहरी नि:श्वास लेकर उसने फिर कहा, मेरी तरह एक हतभाग्य संतान के लिए जो धन व बुद्घि दोनों से हीन है, इसके सिवाय और क्या हो सकता है कि मैं अपनी यज्ञ वेदी पर अपना रक्त अर्पण करूं।
मदनलाल बड़ी शान से अपने कपड़े आदि ठीक पहनकर शीशे में अपना मुंह देखकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़ा। मानो वह अपनी शादी के लिए ही जा रहा हो। भय व चिंता का लेश भी उसके चेहरे पर न था। स्वतंत्रता संग्राम के युद्घस्थल से उसे हटा दिया गया। उसकी लाश लंदन के हिंदुओं को न सौंपी गयी। जेल के भीतर ही हिंदू रीति से वर्मा जी ने अंतिम संस्कार संपन्न करवाया।
माात कामा द्वारा प्रारंभ किये गये पत्र वंदेमातरम में लाला हरदयाल ने उन्हीं दिनों लिखा थ, आने वाले समय में जब अंग्रेज साम्राज्य धूल में मिल जाएगा और भारत स्वतंत्र हो जाएगा तो मदनलाल के स्मारक हमारे नगरों के चौकों पर स्थापित किये जाएंगे। वे स्मारक हमारी अगली पीढ़ी को इस वीर नरश्रेष्ठ का स्मरण कराएंगे जिसने अपने विश्वास व देशप्रेम की रक्षा के लिए इस सुदूर भूमि में आकर अपने प्राण उत्सर्ग किये।
लाला हरदयाल जैसे प्रखर भक्त की यह इच्छा स्वतंत्रता के 15 वर्षों के बाद भी अधूरी है, आगे भी अधूरी रहेगी। क्योंकि आज के शासकों की दृष्टिï में मदनलाल का यह कार्य हिंसा युक्त होने के कारण देशभक्ति की परिधि में शायद नही आता।

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