घर वापसी को रोकने के लिए बनी थी तब लीग

-आर्यवीर

पिछले दो सप्ताह के कुछ समाचारों को क्रमबद्ध रूप से पढ़िए। निजामुद्दीन दिल्ली में तब्लीग जमात के कार्यक्रम में हज़ारों लोगों का देश और विदेश से एकत्र होना। उनमें से कई सौ का कोरोना वायरस से पीड़ित होना। उन पीड़ितों का सारे देश में फैल जाना। उनमें से अनेकों की कोरोना से मौत हो जाना। प्रशासन द्वारा मस्जिदों को खाली करने का आदेश देना। राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार अजित डोबाल द्वारा रात के दो बजे हस्तक्षेप कर निजामुद्दीन में मस्जिद को खाली करवाना। दिल्ली से गए सारे देश में फैले जमात के सदस्यों और उनके संपर्क में आने वालों को खोजने का सरकार द्वारा कार्यक्रम चलाना। निजामुद्दीन से पकड़े गए जमात के लोगों द्वारा बसों से पुलिस वालों पर थूकना। नजरबंद जमात के लोगों द्वारा उनकी सेवा कर रहे डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ के साथ हाथापाई और उन पर थूकना। जमात के लोगों के वीडियो का सामने आना कि अधिक से अधिक मस्जिदों में इकट्ठे हो क्यूंकि क़ुरान पढ़ने, नमाज़ करने और एक ही बर्तन के पानी से वजू करने से कोरोना ठीक हो जाता हैं। अर्बन नक्सली मीडिया का तब्लीग़ के इतिहास के बारे में महिमामंडन करना कि तब्लीग़ एक धार्मिक आंदोलन है। इसकी स्थापना विशुद्ध रूप से इस्लाम की विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए की गई थी। तब्लीग की स्थापना करने वाले मौलाना इल्यास के पूर्वजों ने बाबर के विरुद्ध युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था।

मगर तबलीग़ के बारे में आपको उसकी स्थापना के मूल उद्देश्य, उसका लक्ष्य और उसकी कार्यप्रणाली के विषय में कोई नहीं बताएगा।

1947 में तब्लीग़ के दो टुकड़े गए एक भारत और दूसरा पाकिस्तान बन गया। 1971 के बाद इसके तीसरे टुकड़े का नाम बंगलादेश बन गया। बंगलादेश की जमात का नाम आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए सामने आया था। पाकिस्तान में तब्लीग़ इस्लामिक शरिया को लागु करने की बात करती हैं और अल्पसंख्यक हिन्दू, ईसाईयों को इस्लाम कबूल करने का न्योता देती हैं। सच्चाई यह है कि यह धार्मिक नहीं अपितु मज़हबी आंदोलन है। इसको चलाने वाले धार्मिक गुरु नहीं अपितु मज़हबी मौलाना है। इसकी स्थापना मुसलमानों में प्रचार के लिए नहीं अपितु मुसलमानों को गैर मुसलमानों को इस्लाम की दावत देने के लिए हुई थी। 1929 से पहले रंगीला रसूल प्रकरण में, 1939 में हैदराबाद में निज़ाम के मज़हबी अत्याचार के विरुद्ध आर्यसमाज के आंदोलन में, 1945 में सिंध की मुस्लिम लीगी सरकार का सत्यार्थ प्रकाश के 14 वें समुल्लास के विरुद्ध आंदोलन में ,1947 में पाकिस्तान निर्माण में तब्लीग ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

तबलीग की स्थापना मुगल काल में मुस्लिम बने उन हिन्दुओं को वापस हिन्दु बनने से रोकने के लिये की गई थी। जिन्होंने परतंत्रता काल में आत्मरक्षा के लिये इस्लाम स्वीकार कर लिया था, अपने हिन्दु रीति रिवाज नहीं छोड़े थे और निरन्तर अपने पूर्वजों के धर्म में लौटने के लिए प्रयत्नशील थे। आर्यसमाज के शीर्घ नेता, शुद्धि और हिन्दू संगठन आंदोलन के प्रणेता अमर बलिदानी स्वामी श्रद्धानंद अपनी पुस्तक ‘हिन्दू संगठन’ में लिखते है कि

‘शताब्दियों से आगरा और उसके आसपास के मलकाना राजपूतों में हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा और विश्वास चला आता था और कुछ शिक्षित राजपूत एक चौथाई शताब्दी से भी अधिक समय से यह प्रयत्न कर रहे थे कि उन्हें हिन्दुओं में पुनः सम्मिलित कर लिया जाये।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 65)
1905 से पूर्व कुछ मलकाने राजपूत प्रायश्चित् आदि करके हिन्दुओं में सम्मिलित हो गये थे। 1905 से 1910 तक कुछ उत्साही राजपूतों ने ‘राजपूत शुद्धि सभा’ का गठन करके लगभग 1132 मलकानों की घर वापसी कराई थी। ‘मुसलमान बनाने वाली एजेन्सियों के प्रतिवृत्तों और विवरणों से यह भी प्रकट होता है कि मुस्लिम मलकानों को धर्म परिवर्तन न करने देने के लिए मुसलमानों की ओर से बहुतेरे प्रलोभन दिये गए पर मलकान इसकी उपेक्षा करते रहे और इस बात पर निरन्तर बल देते रहे कि उन्हें पुनः हिन्दुओं में सम्मिलित कर लिया जावे।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 66) अधिकांश हिन्दू राजपूतों की उदासीनता इस कार्य में बाधा भी उपस्थित कर रही थी। आर्यसमाज के लोग हिन्दू राजपूतों को अपने मलकाने भाईयों की भावनाओं के प्रति निरन्तर संवेदनशील होने के लिये प्रेरित कर रहे थे। 31 दिसम्बर 1922 को मेवाड़ में शाहपुराधीश सर नाहरसिंह की अध्यक्षता में आयोजित क्षत्रिय महासभा की मीटिंग में एक ‘नरम’ सा प्रस्ताव पास किया गया जिसकी कहीं चर्चा भी नहीं हुई। जनवरी 1923 के प्रारम्भ में ‘हिन्दू’ साप्ताहिक में एक छोटा सा समाचार प्रकाशित हुआ कि साढे चार लाख मुसलमान राजपूतों ने हिन्दुत्व ग्रहण करने का प्रार्थना पत्र दिया है और क्षत्रिय महासभा ने उस पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। परन्तु हिन्दुओं ने इस पर भी उन मलकान राजपूतों के करुण क्रन्दन पर ध्यान नहीं दिया।

पर इस घटना चक्र से मुसलमान उत्तेजित हो उठे। ‘जहाँ तक मुझे स्मरण है, विरोध प्रकट करने के लिये प्रथम सभा लाहौर जिले के पट्टी गांव में हुई थी। इस सभा में देवबंद के मौलवियों ने भयंकर विद्वेषात्मक भाषण दिये और हिन्दुओं को धमकाते हुए कहा गया कि यदि हिन्दुओं ने इस्लाम में दीक्षित मलकान राजपूतों को शुद्ध करने का प्रयत्न किया तो हिन्दू मुस्लिम एकता चीर चीर करके भंग कर दी जायेगी।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: वही) इस मीटिंग की रिपोर्ट अमृतसर के मुस्लिम दैनिक ‘वकील’ के 17 फरवरी 1923 के अंक में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद दर्जनों मुस्लिम प्रचारक आगरा, मथुरा और भरतपुर के मलकान गांवों में घुस गए। फरवरी के आरम्भ में 50 से भी अधिक मौलवी वहाँ कार्य करने लगे थे और उन सब उलेमाओं ने मिलकर एक सुसंगठित संस्था का निर्माण कर लिया। इनके भयंकर प्रयत्नों और विषैले भाषणों ने सोये हुए हिन्दुओं को धक्का मारकर जगा दिया। आधे दर्जन से अधिक राजपूतों और स्वयंसेवकों ने स्वयं घूम घूम कर इन प्रयत्नों को जांचा और 13 फरवरी 1923 को विभिन्न हिन्दू और राजपूत सभाओं के प्रतिनिधियों का एक अधिवेशन बुलाया गया। स्वामी श्रद्धानन्द सहित, सनातनधर्म, आर्यसमाज, सिख और जैन संस्थाओं को भी आमंत्रित किया गया। इसमें केवल मलकाने ही नहीं मूला जाट और गूजर, नव मुुस्लिम ब्राह्मण और बनिया आदि का भी प्रश्न उठा जो शुद्ध होने को उत्सुक थे।

मुसलमानों का एक जबरदस्त संगठन था जो पूर्ण उत्साह और विद्वेष के साथ काम कर रहा था। ‘जमीयत हिदायत उल इस्लाम’ की ओर से इससे पहले ही (जिसका स्वामी जी को बाद में पता चला) इस कार्य के लिए एक लाख रूपये की अपील निकाली गई। जमीयत उल उलेमा के प्रधान मौलाना किफायतुल्ला ने 9 फरवरी 1923 की बैठक में इस अपील का समर्थन और संपुष्टि की। (दैनिक ‘खिलाफत’ का अंक 37) सैंकड़ों मौलवी और मुस्लिम कार्यकर्ता आगरा तथा निकटस्थ प्रदेशों में जमा होने लगे थे।

‘यदि हमें मलकानों, मूलों तथा अन्य अपने भाईयों की धार्मिक सुरक्षा की तनिक भी चिन्ता करनी थी तो यह नितान्त आवश्यक था कि हम भी एक मजबूत संगठन तैयार करते।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 67) स्वामी श्रद्धानन्द के प्रस्ताव पर इस संगठन का नाम ‘भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा’ रखा गया। एक प्रबंध समिति भी बनाई गई और स्वामी श्रद्धानन्द जी को ही इसका प्रधान निर्वाचित किया गया।

अस्तु, 25 फरवरी को मलकानों का प्रथम जत्था शुद्ध किया गया। ये मलकान ग्रांड ट्रंक रोड़ पर स्थित ‘रैंभा’ गांव के थे, जो आगरा से 13 मील पर है। ‘यह मेरा सौभाग्य था कि अकस्मात् मुझे प्रथम बार उन तथाकथित मुस्लिम राजपूतों के सच्चे हिन्दू घरों को देखने का अवसर मिला और उनके रहन सहन की हिन्दू पद्धति मेरे हृदय पर अंकित हो गई।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 69)

अन्ततः मुगल काल में कई लोगों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था, लेकिन फिर भी वो लोग हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज को ही अपना रहे थे। उन्हें घर वापसी से रोकने और हिन्दू रीति रिवाजों को अपनाने से रोककर कट्टर मुसलमान बनाने के लिये किये जा रहे प्रयत्नों को व्यवस्थित रूप देने के लिए मौलाना इलियास अल-कांधलवी ने 1926-27 में तबलीग का गठन किया था। इसका मूल उद्देश्य मुसलमानों को मूल इस्लाम (कट्टरवाद) से जोड़े रखना और गैर मुसलमानों को इस्लाम की दावत देना (मतान्तरण) है।

‘हिन्दू संगठन’ पुस्तक: स्वामी श्रद्धानन्द (एक जेहादी ने 23 दिसम्बर 1926 को बीमारी की अवस्था में बिस्तर पर लेटे हुए स्वामी जी की धोखे से गोली मार कर हत्या कर दी थी।) यह पुस्तक 1924 में प्रकाशित हुई थी। इसका नवीन संस्करण हिंदी और अंग्रेजी में आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली द्वारा 2016 में प्रकाशित किया गया है और यह इंटरनेट पर भी उपलब्ध है।

आज भी तब्लीग का कार्य उसी स्थापित नीति के अनुसार चल रहा है। वर्ष भर तब्लीग के प्रचारक गांव-गांव ,देहात-देहात, क़स्बा-क़स्बा,शहर-शहर, महानगर-महानगर घूमते हैं। मुसलमानों को संगठित करना, उन्हें कट्टर बनाना, उन्हें मज़हबी चिन्हों को अपनाने और शरिया अनुसार जीवन जीने की प्रेरणा देना, गैर मुसलमानों को इस्लाम की खूबियों को कैसे बताया जाये ऐसा सिखाना, उन्हें साल में कुछ दिन अवैतनिक दीनी प्रचार करने की प्रेरणा देना, इस्लामिक साहित्य का भिन्न भिन्न भाषाओँ में प्रचार करना, सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेश में प्रचार करना। ये जमात के अनावृत कार्य हैं।

परन्तु हिन्दू समाज में स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा चलाये गए शुद्धि (घर वापसी) और हिन्दू संगठन जैसा कार्यक्रम दूर दूर तक देखने को नहीं मिलता। वो या तो जातिवाद के विषवृक्ष की छांव में गहरी नींद में सोया पड़ा है अथवा भोग-विलास के मीठे जहर का पान कर बेसुध पड़ा है। उसके नेता धर्मरक्षा से अधिक अपने आपको चमकाने में सलंग्न हैं। मठाधीशों और डेरे वालों से कोई क्या ही अपेक्षा करेगा। आर्यसमाज जैसी महान संस्था जिसकी आत्मा में स्वामी दयानन्द के भगीरथ तप का ओज है, वही आज निश्चेतन हुई प्रतीत होने लगी हैं। पाठकों ध्यान दो। आपकी भविष्य के लिए क्या तैयारी है? आपकी आने वाली पीढ़ी धर्मरक्षा के लिए कितनी प्रेरित है? आपकी कौम में धर्मरक्षा के लिए आत्म-बलिदान की कितनी भावना है? इस देश की मिट्टी बलिदान मांग रही है। उठो माँ भारती के वीर सपूतों। श्री राम और श्री कृष्ण की संतानों। शिवाजी और प्रताप के वंशजों। मुण्डकोपनिषद के सन्देश का पुन: स्मरण करो- उठो, जागो और तैयार हो जाओ!

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