जब नेताजी सुभाष को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया था गांधी ने और चुन लिया था डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को : लोगों ने की थी डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ धक्का-मुक्की

1938 में हरिपुरा अधिवेशन के वार्षिक अधिवेशन के लिए सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था । हरिपुरा में कांग्रेस अधिवेशन के समय सुभाष बोस ने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय योजना समिति की स्थापना की जिसके सदस्यों में बिङला,लाला श्रीराम, विश्वरैया शामिल थे।

1939 के त्रिपुरी कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस दूसरी बार अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बने।वे गांधी के पसंद के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या को परास्त कर दूसरी बार अध्यक्ष चुन लिये गये। गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को अपनी हार बताया।

चुनाव के बाद अधिवेशन में पारित प्रस्ताव द्वारा अध्यक्ष को गांधी जी की इच्छानुसार कार्य समिति के सदस्य नियुक्त करने को कहा गया, लेकिन गांधी पट्टाभीसीतारामय्या की हार से इतने अधिक दुखी थे कि उन्होंने कोई भी नाम अपनी ओर से कार्य समिति के लिए देने से इनकार कर दिया। यहां तक कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस से उन्होंने और नेहरू ने बोलना भी छोड़ दिया तब सुभाष चंद्र बोस के लिए पार्टी संगठन को चलाना कठिन हो गया।

अन्ततः सुभाषचंद्र बोस ने अप्रैल,1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सुभाष चंद्र बोस की जगह नया कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। 3 मई,1939 को सुभाष चंद्र बोस ने फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की। अगस्त 1939 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तथा बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से सुभाष को हटा दिया गया – साथ ही कांग्रेस के सभी पदों से उन्हें तीन वर्षों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।

जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को इस पद के लिए चुना गया तो उस समय भी कांग्रेस का बहुमत नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ था । परंतु लोकतंत्र की हत्या कर गांधी और नेहरू ने डॉ राजेंद्र प्रसाद को अनैतिक और अवैधानिक रूप से पार्टी का अध्यक्ष बना दिया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वयं नहीं चाहते थे कि उन्हें इस प्रकार अध्यक्ष बनाया जाए परंतु वह गांधी के आदेश को टाल नहीं पाए।

राजेंद्र प्रसाद पर यह भी आरोप लगे कि वो सुभाष चन्द्र बोस के अध्यक्ष चुने जाने पर खुश नहीं हैं। राजेंद्र प्रसाद ने भी माना कि वो सुभाष से बहुत सी बातों पर सहमत नहीं हैं। लेकिन कटुता जैसी कोई बात नहीं थी जैसा कि तब के अखबार दावा कर रहे थे । राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उन्हें खुद पसंद नहीं थी ।उन्होंने गांधीजी से कहा कि मैं अध्यक्ष नहीं बनना चाहता । लेकिन गांधीजी जी ने राजेंद्र प्रसाद पर दबाव डाला कि तुम्हें अध्यक्ष बनना ही पड़ेगा। गांधीजी अपनी ‘ घृणा के केंद्र’ नेताजी सुभाषचंद्र बोस को पार्टी के अध्यक्ष पद पर देखा नहीं चाहते थे यथाशीघ्र उन्हें पार्टी से चलता कर देना की योजना पर काम कर रहे थे ।

अखिल भारतीय कमेटी की पहले दिन की बैठक ख़त्म होने के बाद इस बात पर पांडाल में हंगामा हो गया । गोविन्दवल्लभ पन्त और कृपलानी के साथ दुर्व्यवहार किया गया । मारपीट तक की स्थिति आ गई थी । दूसरे दिन सुभाष चन्द्र बोस राजेंद्र बाबू की के कारण अधिवेशन में नहीं आए और उन्होंने अपना त्यागपत्र भेज दिया । अगले दिन जैसे ही राजेंद्र प्रसाद बोलने के लिए खड़े हुए, सुभाष के समर्थकों ने शोर मचाना आरम्भ कर दिया । क्योंकि जो भी कार्यवाही आरंभ की गई थी वह सब अवैधानिक और अनैतिक थी । उसमें केवल एक ही योजना पर काम हो रहा था कि जैसे भी हो सुभाष चंद्र बोस को पार्टी के अध्यक्ष हटाया जाए और गांधी के चहेते राजेंद्र प्रसाद को इस पद पर बैठा दिया जाए । राजेंद्र प्रसाद चुपचाप खड़े रहे और हंगामे के शान्त होने की प्रतीक्षा करते रहे। हंगामा शान्त होने पर राजेंद्र प्रसाद ने सभा समाप्त कर दी । जब वहां से जाने लगे तो कुछ लोगों ने उनको पकड़ लिया और खींचतान करने लगे । दूसरे लोग उन्हें बचाने के लिए आए. राजेंद्र प्रसाद को चोटें तो नहीं आईं, लेकिन उनके कपड़ों के बटन टूट गए. किसी तरह उन्हें गाड़ी तक पहुंचाया गया । इस बात से राजेंद्र प्रसाद काफी आहत थे कि उन्हें बहुमत के विरोध के बावजूद अध्यक्ष बनाया गया है । गांधी जी के समर्थक थे, इसलिए उनकी बात काट नहीं सके ।

आज जो कांग्रेस हमें लोकतंत्र के पाठ पढ़ाती है यह वही पार्टी है जिसमें लोकतंत्र की इसी प्रकार अनेकों बार हत्या की गई है। पार्टी के किसी परिवार या किसी विशिष्ट व्यक्ति की इच्छा के सामने पार्टी में लोकतंत्र की हत्या करके किसी व्यक्ति को पार्टी का दायित्व दिया गया है ।

यद्यपि राजेंद्र प्रसाद बहुत ही शांत स्वभाव के और सम्मानित नेता थे , परंतु पार्टी का उन्हें उस समय बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं था। पार्टी के लोग क्रांतिकारी सुभाष के साथ थे और चाहते थे कि पार्टी क्रांतिकारी रास्ते को अपनाकर देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी ढंग से कार्य करे । आज के इतिहास में कांग्रेस के भीतर बैठे बहुमत के उन लोगों की आवाज दबा दी गई है। जिसमें उस समय पार्टी का बड़ा वर्ग पार्टी को क्रांतिकारी ढंग से काम करने के लिए उस पर दबाव बना रहा था। यदि सुभाष को सही ढंग से काम करने दिया जाता और गांधी नेहरू उनसे बोलना न छोड़कर कार्यसमिति के लिए उन्हें सदस्य देकर कांग्रेस को आगे बढ़ाते तो भारत का इतिहास कुछ दूसरा ही होता।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक उगता भारत

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