संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए मोदी सरकार की सराहनीय सोच

गाजियाबाद ( ब्यूरो )भारत ही नहीं बल्कि सारे संसार की सभी भाषाओं की जननी के रूप में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करने वाली संस्कृत के दिन शायद अब बहूरहेंगे । केंद्र की मोदी सरकार अब संस्कृत के उत्थान के लिए एक नई योजना पर गंभीरता से विचार कर रही है । यदि यह योजना यथावत लागू होती है तो निश्चय ही संस्कृत के अच्छे दिन आ सकते हैं ।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने सोमवार को राज्यसभा में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक, 2019 पेश किया। यह विधेयक लोकसभा में पिछले साल 11 दिसंबर को पास हुआ था। इस विधेयक का मकसद भारत की तीन डीम्ड यूनिवर्सिटी को केंद्रीय संस्कृत यूनिवर्सिटी में तब्दील करना है। अगर यह बिल राज्यसभा में पास हो जाता है तो, दिल्ली की दो और त्रिपुरा की एक डीम्ड यूनिवर्सिटी, केंद्रीय संस्कृत यूनिवर्सिटी बन जाएंगी। ये तीनों यूनिवर्सिटी- राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (नई दिल्ली), श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (नई दिल्ली ) और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ ( तिरुपति) हैं।

इन संस्कृत विश्वविद्यालयों का काम संस्कृत भाषा के ज्ञान का प्रसार करना और संस्कृत भाषा को और उन्नत बनाना होगा। इन विश्वविद्यालयों में मानविकी, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान के एकीकृत पाठ्यक्रम के लिए विशेष प्रावधान किया जाएगा। इन विश्वविद्यालयों के जरिए संस्कृत भाषा और उससे संबद्ध विषयों के समग्र विकास और संरक्षण के लिए लोगों को भी प्रशिक्षित किया जाएगा।

ज्ञात रहे कि अब से पूर्व संस्कृत को भारत के तथाकथित बुद्धिजीवियों ने ही एक मृत भाषा के रूप में लगभग मान्यता दे दी थी ।जिससे सर्वाधिक निर्मल ज्ञान की प्रतीक संस्कृत की भारत में ही उपेक्षा होती आ रही थी । जबकि संपूर्ण संसार के विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि संस्कृत से ही संसार की सभी भाषाएं जन्मी है । ऐसे में संस्कृत का विकास होना और उसके वैज्ञानिक स्वरूप को लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए थी। परंतु ऐसा नहीं हुआ । अब केंद्र की मोदी सरकार इस दिशा में यदि गंभीरता से सोच रही है तो निश्चय ही सरकार का यह कार्य स्वागतेय है।

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