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झांसी में चला था आठ दिन संग्राम

24 मार्च को सवेरे सबसे पहले झांसी की एक तोप ने, जिसका नाम घनगर्ज था, कंपनी की सेना के ऊपर गोले बरसाने शुरू किये। उसके बाद आठ दिन तक लगातार संग्राम होता रहा।
एक दर्शक, जो उन दिनों झांसी में मौजूद था, लिखता है–
25 तारीख से गहरा संग्राम प्रारंभ हुआ। अंग्रेजों ने सारे दिन और सारी रात गोले बरसाए। रात के समय किले और शहर के ऊपर तोपों के गोले डरावने दिखाई देते थे। पचास या तीस सेर का गोला ऐसा मालुम होता था, जैसे एक छोटी-सी गेंद, किंतु अंगारे की तरह लाल। 26 तारीख की दोपहर को कंपनी की सेना ने नगर के दक्षिणी फाटक पर इस जोर से गोले बरसाए कि उस तरफ की झांसी की तोपें ठंडी हो गयीं। किसी को भी वहां खड़े रहने की हिम्मत नही हो सकी। इस पर पश्चिमी फाटक के तोपची ने अपनी तोप का मुंह उस ओर करके शत्रु के ऊपर गोले बरसाने शुरू किये तीसरे गोले ने अंग्रेजी सेना के सबसे अच्छे तोपची को उड़ा दिया। इस पर अंग्रेजी तोप ठंडी हो गयी। रानी लक्ष्मीबाई ने खुश होकर अपनी ओर के तोपची को, जिसका नाम गुलाम गौस खां था, सोने का कड़ा इनाम दिया पांचवें या छठे दिन चार पांच घंटे तक रानी की तोपों ने चमत्कार कर दिखाया। उस दिन अंग्रेजों की तरफ के अनगिनत आदमी मारे गये और अनेक तोपें ठंडी हो गयीं। फिर अंग्रेजी तोपें अधिक उत्साह से चलने लगीं। झांसी की सेना का दिल टूटने लगा और उनकी तोपें ठंडी होने लगीं। सातवें दिन शाम को शत्रु के गोलों ने नगर के बाईं ओर की दीवार का एक हिस्सा गिरा दिया और उस ओर की तोप ठंडी हो गयी। कोईे वहां पर खड़ा न रह सकता था किंतु रात के समय 11 मिस्त्री कंबल ओढ़े दीवार तक पहुंचे और सुबह तक उस हिस्से की मरम्मत कर दी। झांसी की तोपें सूर्य निकलने से पहले फिर अपना काम करने लगीं। कंपनी को इससे बहुत भारी नुकसान हुआ यहां तक कि उनकी तोपें बहुत देर के लिए निकम्मी हो गयीं। आठवें दिन सवेरे कंपनी की सेना शंकर किले की तरफ बढ़ी। दूरबीनों की सहायता से अंग्रेजों ने किले के अंदर के पानी के चश्मे पर गोले बरसाने शुरू किए। छह सात आदमी पानी लेने के लिए पहुंचे, जिनमें से चार वहीं पर ढेर हो गये, बाकी अपने बर्तन छोड़कर भाग गये। चार घंटे तक किसी को नहाने धोने तक के लिए पानी न मिल सका। इस पर पश्चिमी और दक्षिणी फाटकों के तोपचियों ने कंपनी की सेना के ऊपर लगातार गोला बारी शुरू की और कंपनी की जो तोपें शंकर किले पर हमला कर रही थीं, उनके मुंह फेर दिये।
तब जाकर लोगों को नहाने और पीने के लिए पानी मिल सका। इमली के दरख्तों के नीचे बारूद का एक कारखाना था। एक गोला इस कारखाने पर पड़ा जिससे तीस आदमी और आठ स्त्रियां मर गईं। उसी दिन सबसे अधिक शोर मचा। उस दिन का संग्राम भीषण था। बंदूकों की जगह तुरही और बिगुल की आवाज सुनाई देती थी। आसमान धुएं और गर्द से भरा हुआ था। शहर फसील के ऊपर के कई तोपची और अनेक सिपाही मारे गये। उनकी जगह दूसरे नियुक्त कर दिये गये। रानी लक्ष्मीबाई उस दिन बड़ी फुर्ती के साथ काम करती रही। वह हर एक चीज को खुद देखती थी। आवश्यक आज्ञाएं जारी करती थीं। और दीवार में जहां कमजोरी देखती तुरंत मरम्मत कराती थीं। रानी की उपस्थिति से सिपाहियों की हिम्मत बेहद बढ़ गयी। वेे बराबर लड़ते रहे। (भारत में अंग्रेजी राज खण्ड-2 से)

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