अंग्रेजों को याचिका लिखने हेतु सावरकर से गांधी ने कहा था

कांग्रेसियों की ओर से अक्सर यह कहा जाता रहा है कि सावरकर वीर नहीं कायर थे और उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी इस बारे में आज हम आपको इसका सच बता रहे हैं।इस विषय उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेज और उससे जुड़े संदर्भ ग्रंथ भी सावरकर को एक कट्टर देशभक्त सिद्ध करते हैं। इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ ने सावरकर की आत्मकथा लिखी है । उन्होंने अपनी किताब ‘सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट’ में सावरकर के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया है । इसमें अंग्रेजों को लिखी गई दया याचिका (British congress apology) पर भी विस्तार से चर्चा की गई है । सावरकर को लेकर यह बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जाता है कि उन्होंने दया याचिका दायर कर अंग्रेजों से माफी मांगी थी। सच तो यह है कि ये कोई दया याचिका नहीं थी, ये केवल एक याचिका थी । जिस प्रकार हर राजबंदी को एक वकील करके अपना मुकदमा लड़ने की छूट होती है उसी प्रकार सारे राजबंदियों को याचिका देने की छूट दी गई थी. वे एक वकील थे उन्हें पता था कि जेल से छूटने के लिए कानून का किस प्रकार से प्रयोग कर सकते हैं । उनको 50 वर्ष का आजीवन कारावास सुना दिया गया था, तब वह 28 वर्ष के थे । यदि सावरकर जीवित वहां से लौटते तो 78 वर्ष के हो जाते. इसके बाद क्या होता ? न तो वह परिवार को आगे बढ़ा पाते और न ही देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दे पाते. उनकी इच्छा थी कि किसी प्रकार जेल से छूटकर देश के लिए कुछ किया जाए । 1920 में उनके छोटे भाई नारायण ने महात्मा गांधी से बात की थी और कहा था कि आप पैरवी कीजिए कि कैसे भी ये छूट जाएं । गांधी जी ने स्वयं कहा था कि आप बोलो सावरकर को कि वह एक याचिका भेजें अंग्रेज सरकार को और मैं उसकी सिफारिश करूंगा. गांधी ने लिखा था कि सावरकर मेरे साथ ही शांति के रास्ते पर चलकर काम करेंगे तो इनको आप रिहा कर दीजिए । ऐसे में याचिका की एक लाइन लेकर उसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है।
इस विवरण से पता चलता है कि गांधी ने ही सावरकर जी को याचिका दाखिल करने के लिए प्रेरित किया और अब गांधी के अनुयायी ही इस याचिका को दया याचिका कहकर सावरकर जी को अनाप-शनाप बोलते हैं। सावरकर जी की देशभक्ति को देखकर ही शास्त्री जी ने उन्हें अपने प्रधानमंत्री काल में मानदेय आरंभ देना आरंभ किया था । उससे पहले 1947 में जब देश की पहली सरकार सत्ता संभाल रही थी तो उस समय प्रधानमंत्री नेहरू ने स्वयं सावरकर जी के लिए पत्र लिखकर एक अपना व्यक्ति केंद्रीय मंत्रिमंडल में देने की प्रार्थना की थी । जिस पर सावरकर जी ने कहा था कि इस सरकार से हमारे मौलिक मतभेद हैं तो हम सरकार में कैसे सम्मिलित हो सकते हैं ? तब नेहरू जी ने कहा था कि यह कांग्रेस की सरकार नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय सरकार है जिसमें सभी दलों की उपस्थिति अनिवार्य है। सावरकर जी ने तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम मंत्रिमंडल के लिए दिया था । जिन्हें भारत का पहला उद्योग मंत्री नेहरू जी ने बनाया। यदि सावरकर जी के प्रति नेहरू और शास्त्री जी के मन में किसी भी प्रकार का विद्वेष भाव होता तो ऐसी घटनाएं जन्म नहीं लेती , इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने भी अपने समय में सावरकर जी को सम्मान देने में कमी नहीं छोड़ी थी।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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