हमने भेद व्योम का खोला

  • डॉ राकेश कुमार आर्य

हम ही विज्ञान के नायक थे,
हम वसुधा के उन्नायक थे ।
हम मानवता के साधक थे,
हम ही विधि – विधायक थे।।

हम प्राणी मात्र के चिंतक थे,
संस्कृति – धर्म के रक्षक थे।
हम नीति नियामक नायक थे,
हम ही वसुधा के रक्षक थे।।

हमने नापी सूरज की दूरी ,
हमने ही तारों को नापा ।
बतियाते हम रहे शशि से,
ऐसा अद्भुत ज्ञान हमारा।।

परिचित थे हम उड़नपरी से,
मित्र हमारा उड़न खटोला।
‘ पुष्पक ‘ जैसे विमान हमारे,
हमने भेद व्योम का खोला।।

मंगल का मंगल करने वाले,
थे हमारे पूर्वज अभिमानी।
हमने भाषा दी तारों को,
थे हम ही जगत के विज्ञानी।।

हमने ही मूक बधिर युग को,
संकेत दिए कुछ जीने के।
हमने ही अंधे मानव को,
परिचित करवाया जीने से।।

हमने ही सिकंदर दानव को,
समर बीच था किया क्षमा।
मिटा दिया इतिहास हमारा,
न जाने कहां दिया छुपा।।

सामंत रोम का शासक था,
जब विक्रम भूप यहां पर थे।
चक्रवर्ती सम्राट जगत में,
भारत से अलग कहां पर थे ?

कभी अरब हमारे वेदों का,
गुणगायक था जग में मानी।
करता था नमन वह भारत को,
ऋषि मुनि थे, भारत में ज्ञानी।।

ब्रह्म ज्ञानी ऋषि मुनि यहां,
सत्य की खोज किया करते।
आनंद का अनुभव करते थे,
अमृत को छान पिया करते।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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