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कविता

काम भयंकर विषधर है

काम भयंकर विषधर है,
नहीं बचा दंश से कोई भी।
काम कुचाली भूचाली के,
ना बचा वेग से कोई भी।।

बहुत भयंकर डकैत देह में,
बैठा हुआ है छुप करके।
जागृत करता पापवासना,
विवेक का दीप बुझा करके।।

जितने भर भी पाप जगत में,
होता सबका मुखिया काम।
देह जलाता – गेह जलाता,
अपयश – भागी होता नाम।।

जन के सतर्क बने रहने से,
हमला कर नहीं पाता काम।
मन के जागरूक रहने से,
विध्वंस नहीं कर पाता काम।।

अनुरागी धर्म के बने रहो,
होगा निश्चय ही कल्याण।
संयम के पालन करने से,
होगा भवसागर से त्राण।।

– राकेश कुमार आर्य

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