maharishi dayanand

संसार में कितने लोगों ने अपने को ईश्वर का संदेशहर कहकर अपने नाम से पंथ चलाये और आज उनके लाखों-करोड़ों अनुयायी दृष्टिगोचर होते हैं। कितनों ने गुरु बनकर अपने चेले-चेलियों की बुद्धि की आंखों पर पट्टी बांधी और उनका तन, मन और धन हड़प लिया। कोई-कोई तो इतने बढ़े कि स्वयं परमेश्वर बन बैठे और लाखों मनुष्यों को अज्ञान के घोर अंधकार में धकेल दिया। एक ओर ये लोग हैं और एक ओर दयानन्द है, लोग उसे गुरु बनाना चाहते हैं और वह इन्कार करता है और इन्हीं के समान धर्म का साधारण सेवक कहलाने में ही संतुष्टि लाभ करता है। हम देखते हैं कि योग की अति साधारण क्रियाओं के द्वारा कई लोग गुरु बने बैठे हैं और शिष्य-मंडली के हृदय और मस्तिष्क के स्वामी बने हुए हैं, परन्तु एक दयानन्द है जो पूर्ण योगी, पूर्ण विद्वान होता हुआ भी गुरु बनने से भागता है। निःस्पृहता, निरभिमानता की पराकाष्ठा है। यह है दयानन्द का वास्तविक स्वरूप। दयानन्द जो कुछ था वह औरों के लिए अपने लिए कुछ नहीं। फिर हम श्रद्धा-भक्ति से नमस्कार क्यों न करें ? क्यों उसके चरण-रज को मस्तक पर लगा कर अपने को गौरवान्वित न समझें ?

स्रोत – महर्षि दयानन्द चरित।
लेखक – बाबू श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय।
प्रस्तुति – आर्य रमेश चन्द्र बावा।

1 thought on “दयानन्द का वास्तविक स्वरूप

  1. भारत की धरती पर समय-समय पर धर्म और देश को बचाने के लिए युग पुरुष आते हैं वह भगवान का ही रूप होते हैंl

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