स्वामी दयानन्द का मुंबई में आर्यसमाज की स्थापना के समय दिया गया सन्देश

maharishi dayanand

“आप यदि समाज से पुरुषार्थ कर परोपकार कर सकते हो, तो समाज कर लो. इस में मेरी कोई मनाई नहीं. परन्तु इस में यथोचित व्यवस्था न रखोगे तो आगे गड़बड़ाध्याय हो जायेगा. मैं तो मात्र जैसा अन्य को उपदेश करता हूँ वैसा ही आप को भी करूँगा और इतना लक्ष में रखना कि कोई स्वतन्त्र मेरा मत नहीं है और मैं सर्वज्ञ भी नहीं हूँ. इस से यदि कोई मेरी भी गलती पाई जाए, युक्तिपूर्वक परीक्षा करके इसको भी सुधार लेना. यदि ऐसा न करोगे तो आगे यह भी एक मत हो जायेगा और इसी प्रकार से ‘बाबावाक्यं प्रमाणम्’ करके भारत में नानाप्रकार के मतमतान्तर प्रचलित होके, भीतर-भीतर दुराग्रह करके धर्मान्ध होके, लड़के नाना प्रकार की सद्विद्या का नाश करके यह भारत दुर्दशा को प्राप्त हुआ है.”

-स्वामी दयानन्द

Comment: