निर्मल हृदय में उगें , प्रभु-प्रेरित सद्‌भाव।

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‘ विशेष ‘ निर्मल और अधम हृद‌य की पहचान :-

निर्मल हृदय में उगें ,
प्रभु-प्रेरित सद्‌भाव।
अधम हृदय में जन्मते,
कल्मष कुटिल दुराव॥2718॥

तत्त्वार्थ- भाव यह है कि जनका हृदय निर्मल होता है। वे प्रभु-कृपा के पात्र होते है। प्रभु प्रेरणा से उनके हृदय में हमेशा ऐसी उर्मियाँ उठती हैं,जो उन्हें सत् चर्चा सत्कर्म और स‌त् चिन्तन में उन्हें सदैव व्यस्त रखती हैं किन्तु जिनका हृदय नीचता अथवा पाप से भरा होता है, वे सर्वदा दूसरे को नीचा दिखाने का घिनौना कोई षडयंत्र रचते हैं, वाणी भी तीर की तरह चुभती हुई बोलते हैं, यहाँ तक कि उनके हृदय में ऋजुता नहीं अपितु ‘नागफनी’ के कांटों जैसी कुटिलता भरी होती है, अहंकार और जड़ता भरी होती है,विषघर की तरह रोम-रोम में शत्रुता भरी होती है और जघन्य पाप करके पश्चाताप नहीं अपितु अट्टाहास करते हैं। ध्यान रहे, ऐसे लोग अपनी आत्मा की हत्या करते है और परमपिता परमात्मा से भी दूर रहते हैं।
क्रमशः

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