शिवाजी के पत्र का जयसिंह पर नही पड़ा कोई प्रभाव हमने पिछले आलेख में शिवाजी के उस पत्र को उल्लेखित किया था, जो उन्होंने जयपुर के राजा जयसिंह के लिए लिखा था। उस पत्र के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि शिवाजी मराठाभक्त नहीं हिंदू और हिंदूस्थान के भक्त थे। पर दुर्भाग्य की बात […]
Category: संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा
भारत के राष्ट्रनायकों और इतिहास पुरूषों के साथ जो अन्याय हमारे इतिहासकारों और आज तक के दुर्बल नेतृत्व ने किया है, संभवत: उसी के विषय किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है- ”धरती की सुलगती छाती के बेचैन शरारे पूछते हैं, जो लोग तुम्हें दिखला न सके, वो खून के धारे पूछते हैं अंबर की […]
देशद्रोही राजा चंद्रराव और शिवाजी शिवाजी राजा चंद्रराव की दूषित और राष्ट्रद्रोही मानसिकता से क्षुब्ध रहने लगे। षडय़ंत्रों और छल कपट से भरी उस समय की राजनीति में कुछ भी संभव था, इसलिए शिवाजी राजा चंद्रराव की राष्ट्रद्रोही मानसिकता के प्रति मौन तो थे पर असावधान किंचित भी नही थे। वह जानते थे कि राष्ट्रद्रोही […]
वेदों में नारी का सम्मान वेद ने नारी को अप्रतिम और अतुलित सम्मान दिया है। इसका कारण यही है कि नारी जगन्नियंता ईश्वर की विधाता और सर्जनायुक्त शक्ति का नाम है। ऋग्वेद (1/113/12) में कहा गया है- यावयद्द्वेषा ऋतपा ऋतेजा: सुम्नावरी सूनृता ईरयंती। सुमंगलीर्विभूति देवती तिमिहाद्योष: श्रेष्ठतया व्युच्छ।। अर्थात-”हे श्रेष्ठतम ऊषा! तू अपनी छटा को […]
शिवाजी नाम की महिमा जब कभी भी भारतवर्ष के निष्पक्ष स्वातंत्र्य समर का इतिहास लिखा जाएगा तब भारत के महान सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज को उस समर के महानायकों में अवश्य ही स्थान मिलेगा। छत्रपति शिवाजी भारत के इतिहास के उस महान नक्षत्र का नाम है, जिससे औरंगजेब सबसे अधिक भय खाता था। उसे रात […]
‘मेरा भारत महान’ का रहस्य ‘मेरा भारत महान’ का नारा हम और आप अक्सर पढ़ते रहते हैं, और अपनी देशभक्ति के प्रदर्शन के लिए या कभी-कभी मंचों से तालियां बजवाने के लिए तो कभी अन्य लोगों का अनुकरण करने के दृष्टिकोण से भी हम भी इसे बोल देते हैं। पर ना तो बोलने से पूर्व […]
आमेर, उदयपुर और जोधपुर की एकता बादशाह औरंगजेब मर गया तो उसके दुर्बल उत्तराधिकारियों में परस्पर उत्तराधिकार का युद्घ हुआ, जिससे मुगल बादशाहत दुर्बल हुई। इस दुर्बलता का लाभ उठाने के लिए लड़खड़ाते मुगल साम्राज्य में दो लात मारकर उसे नष्ट करने के लिए ‘हिंदू शक्ति’ के संगठन को सुदृढ़ता देने के लिए आमेर, उदयपुर […]
वीरता को अपने आधीन करके उसे अपनी चेरी बनाकर रखना हर शासक के लिए आवश्यक माना जाता है, विशेषत: तब जबकि वीरता या साहस किसी विपरीत पक्ष वाले व्यक्ति के पास हों। तब हर शासक यह मानता है कि यदि इस व्यक्ति का पूर्णत: दमन करके नही रखा गया तो यह भविष्य में तेरे लिए […]
पकड़ी दक्षिण की राह मेवाड़ के महाराणा की शिथिलता से राष्ट्रीय आंदोलन की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ा। मेवाड़ से और वहां के महाराणा से मिलने वाली निराशा की क्षतिपूर्ति के लिए लोगों ने दक्षिण की ओर देखना आरंभ किया। फलस्वरूप शाहजादा अकबर और दुर्गादास राठौर शिवाजी के पुत्र शम्भाजी के राज्य के लिए चल […]
जीवित रहने के लिए हम ही सबसे योग्य थे वीर सावरकर ने एक लेख में लिखा था-”हिंदुओं! अपना राष्ट्र गत दो हजार ऐतिहासिक वर्षों तक जो जीवित रह सका, ऐसा जो कहते हैं वे मूर्ख तथा लुच्चे हैं। हम जीवित रहे क्योंकि जीवित रहने के लिए हम ही सबसे योग्य थे। उन परिस्थितियों से जूझने […]