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अन्य कविता

प्रकृति की पीड़ा

तेरे हृदय की ज्वाला, रही धधक गोली और गोलों में।अपनी मृत्यु आप बंद की, परमाणु के शोलों में। बढ़ रही बारूदी लपटें, निकट अब विनाश है।मौत का समान ये, कहता जिसे विकास है। यदि यही है विकास तो, पतन बताओ क्या होगा?यदि यही है सृजन तो, विध्वंस बताओ क्या होगा? सैनिक व्यय बढ़ रहा विश्व […]

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प्रमुख समाचार/संपादकीय

इंसान वही जो दूसरे की पीड़ा समझे

 इंसान और पशु में यही फर्क है कि इंसान को सामाजिक प्राणी कहा जाता है और पशुओं को जंगली और पालतू दो वर्गों में बांट दिया गया है। संवेदनशीलता के लिहाज से सभी बराबर होते हैं, अभिव्यक्ति का अपना तरीका अलग-अलग हो सकता है। मनुष्य का शरीर धारण कर लेना अलग बात है। यह किसी […]

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