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मेरे हृदय के उद्गार, भाग-17

महाशक्तियों की कूटनीतिमानव के मुखौटे में दान को, इस तरह से ये ढालते हैं।बंशी की धुन पर मस्त मृग, ज्यों आखेटक नही पहचानते हैं। क्या कभी सोचकर देखा है, इस छल प्रपंच का क्या होगा?यदि नमाजी नही मस्जिद में, ऐसी मस्जिद का क्या होगा? मानव ही मानव बन न सका, बहुमुखी विकास का क्या होगा?क्या […]

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