हमेशा याद रखो, मन से भी अधिक सूक्ष्म, भाव अथवा संस्कार होते हैं, हमारे मानस-पटल पर ऐसे रहते हैं, जैसे जल के ऊपर तरंगे रहती हैं। इसीलिए हमारे ऋषियों ने कर्म की प्रधानता के साथ-साथ ‘भाव की पवित्रता’ पर विशेष बल दिया है। ये भाव ही हमारे स्वभाव का निर्माण करते हैं, जिनका प्रभाव जन्म-जन्मान्तरों तक कारण शरीर (अतिसूक्ष्म शरीर जिसमें जीव का मूल स्वभाव बसता है) पर रहता है। अत: वेद का यह कर्मराशि-स्वरूप मनुष्य को कर्म प्रधान होने के साथ-साथ सत्कर्म और सद्भाव से जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।

काश! हम ऋषियों की धरोहर ‘ज्ञान चक्षु-वेद’ की महिमा को समझें, वेदानुकूल जीवन जीयें, सत्याचरण करें और मानवीय जीवन की उत्कर्षता को प्राप्त करें।

सही सलाह देने वाले दुर्लभ मिलते हैं:- 

दुनिया में दुर्लभ मिलें,
नेकी के सलाहकार।
बुरी सलाह के कारणै,
नैया डूबै मंझधार ।। 1163 ।।
व्याख्या :-इस संसार में हमें हमारी खामियों (त्रुटियों अथवा गलतियों) का आइना दिखाने वाला और गलतियों के कारण सम्भावित खतरे से बचाने वाला तथा विषमताओं के भंवर से निकालने वाला, सही सलाह देने वाला व्यक्ति कोई बिरला ही मिलता है-ऐसा व्यक्ति आपके माता-पिता, आचार्य (गुरू) पति अथवा पत्नी, भाई-बहन, सखा संबंधी अथवा अन्य कोई सुहृदय भी हो सकता है। नेक सलाह से जीवन उच्चतम बनता है, उत्कर्षता को प्राप्त होता है जबकि घटिया और निकृष्ट सलाह से जीवन पतन के गह्वर में चला जाता है। जैसे मंथरा की घटिया और निकृष्ट सलाह ने रंग में भंग कर दिया-रानी कैकेयी को गुमराह करके, भगवान राम के राज्याभिषेक के सुअवसर को चौदह वर्ष के वनवास में बदल दिया।
इसके अतिरिक्त महाभारत में देखिये, जहां दुर्योधन का निकटतम सलाहकार उसका मामा शकुनि था, जिसकी घटिया, क्रूर और निकृष्ट सलाह ने कौरवों के कुनबा तथा उनके हिमाथियों को मौत की नींद सुला दिया, पतन के गह्वर में पहुंचा दिया जबकि भगवान कृष्ण अर्जुन के सलाहकार थे जिनकी उत्कृष्ट सलाह ने अर्जुन के मस्तक पर महाभारत के युद्घ में ‘विजय का सेहरा’ बंधवा दिया, समय-समय पर पाण्डवों को घोर संकट से बचाकर उत्कर्षता के शिखर पर पहुंचा दिया। मेरा कहने का अभिप्राय यह है कि नेक सलाह देने वाला व्यक्ति इस संसार में बड़ी मुश्किल से मिलता है। यदि ऐसा व्यक्ति नाराज भी हो जाए तो उसकी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को कभी तिरस्कृत मत करो, उसे संवारकर रखो क्योंकि सच्चे अर्थों में वही आपका हितैषी है।

सत्पुरूष पृथ्वी पर चलते फिरते झरने हैं :-
झरना निर्मल नीर दे,
ज्वालामुखी दे आग।
सतोगुणी तो हंस हैं,
तमोगुणी हैं नागर ।। 1164 ।।
व्याख्या :-प्राय: पर्वतों की उपत्यका (गोदी) में झरने देखने को मिलते हैं। इन्हें प्रपात भी कहते हैं, जैसे-कनाडा का ‘न्याग्रा प्रपात’ विश्वविख्यात है। झरना छोटा हो या बड़ा, इनका जल शीतल और स्वादिष्ट होता है। ये प्राणियों की प्यास तो बुझाते ही हैं किंतु पृथ्वी पर हरियाली लाने में भी सहायक होते हैं, सबके लिए कल्याणकारी होते हैं। ठीक इसी प्रकार सत्पुरूष पृथ्वी पर चलते-फिरते ज्ञान और सत्कर्म के झरने हैं। वे जहां भी जाते हैं अपने सम्यक लोकव्यवहार शील स्वभाव और ज्ञान की फुहारों से उन लोगों के हृदय में नया उत्साह और उमंग भरते हैं, जो संसार की समस्याओं से हार बैठे हैं। उनकी सुख-समृद्घि और खुशहाली का कारण बनते हैं। वास्तव में, सत्पुरूष निराशा के मरूस्थल में आशा के झरने होते हैं, जो सुरम्य मरूद्यान की सृष्टि करते हैं। इनके मानस में सत्वगुण की प्रधानता होने के कारण ये ‘सरोवर के हंस’ कहलाते हैं। जैसे सरोवर की शोभा हंस होता है, ठीक इसी सत्पुरूष अपने कुल, परिवार समाज अथवा राष्ट्र की शोभा होते हैं।
क्रमश:

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