बहुत ही सावधानी बरती गई है भारत को शस्य श्यामला बनाने में

प्रस्तुति – श्रीनिवास आर्य

भारत गांवों का देश था और आज भी है। यहां सम्पन्नता, खुशहाली और समृद्धि की पूजा होती रही है। फसलों के पकने पर आनन्दित होकर उत्सवों का आयोजन करना हमारी परम्परा रही है। अत्यन्त आधुनिक यंत्रों और पद्धतियों से कृषि कर के भरपूर फसलें ली जाती रही हैं।
सम्पन्न भारत को अकाल का सामना शायद ही करना पड़ा हो। अंग्रेजों के भारत आने के 12 वर्षों के अन्दर सन् 1769 में ब्रिटिश शासन के समय मानवनिर्मित अकाल पड़ा जिसमें बंगाल एवं बिहार की एक तिहाई आबादी काल के गाल में समा गई। संवेदनहीन अंग्रेज सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वे भारत की कृषि बरबाद करते रहे और लोगों पर जुर्म ढाते रहे। यहां के किसानों को नील जैसी फसलों को बोने के लिए जबरदस्ती की जाती थी। कुल उत्पादन का 80त्न हिस्सा राजस्व के रूप में अंग्रेज सरकार किसानों से वसूल कर लेता था। कई बार तो पूरी फसल देने के बाद भी कर पूरा नहीं हो पाता था। अत: अत्यन्त उपजाऊ भूमि सिंचाई की समस्त सुविधाओं के बाद भी बिना फसल के छोड़ दी जाती थी। राजस्व प्राप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों को उत्पीडि़त किया जाता था। सन् 1804 में मद्रास प्रेसीडेन्सी के गवर्नर लार्ड बेंटिक ने कहा था ”मेरी राय सामान्यत: यह है कि हमने इस देश के साथ अत्यन्त कठोरतापूर्ण व्यवहार किया है जिसके कारण देश भीषण एवं दयनीय स्थिति में पहुंच गया है।ÓÓ यहां पर अंग्रेजों के शासन का वर्णन केवल इसलिए अनिवार्य लगा क्योंकि जिन्हें भारत का अपना इतिहास नहीं पता उन्हें कहते सुना जा सकता है कि अगर अंग्रेेज भारत नहीं आता तो भारत समृद्ध नहीं होता, तकनीकी युक्त नहीं होता। इतिहास कहता हैं कि भारत पहले ही समृद्ध था और आधुनिक तकनीकी से युक्त था।
भारत में हमेशा से दुनिया भर से अधिक उपजाऊ एवं सिंचाई युक्त जमीन रही है। 1998 के आंकड़ों के अनुसार विश्व में कुल 2714 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित क्षेत्र माना गया है। जिसमें भारत 590, चीन 526, संयुक्त राज्य अमरीका 214 तथा यूरोप में 171 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित क्षेत्र है। भारत पहले भी विश्व का सर्वाधिक सिंचित भूक्षेत्र था और आज भी है। यहां इतनी मात्रा में जल एवं अन्य प्राकृतिक साधन हैं कि हम चाहें तो अपने आज के सिंचित क्षेत्र को और बढ़़ा सकते हैं।
भारत में प्राचीन काल से भूमि की सिचाई का समुचित प्रबन्ध किया जाता रहा है। प्रकृति से भारत को अथाह जलराशि प्राप्ति होती है। प्राचीन समय से यहां के राजाओं ने कुओं, तालाब, वापियों, नालों, नहरों आदि का समुचित प्रबन्ध तथा संरक्षण किया है। कृषि को भगवान भरोसे छोडऩे की प्रथा यहां कभी नहीं रही। रामायण में भरत जब श्री राम से मिलने चित्रकूट पहुंचते हैं तो श्री राम कोशल देश की कुशलता के विषय में अनेक प्रश्न करते हुए भरत से पूछते हैं कि उसने पानी के समुचित प्रबंध कर लिए है न, कोशल की भूमि ”देव मातृकÓÓ तो नहीं रह गई। इसी प्रकार महाभारत के सभापर्व में नारद मुनि इन्द्रप्रस्थ आने पर यूधिष्ठिर से पूछते हैं कि तुम्हारे राज्य के सब भागों में खेतों की सिंचाई के लिए विशाल तड़ाग तो बना दिए गए हैं न? कृषि कहीं मात्र वर्षा के जल पर तो निर्भर नहीं है ? खेती को कही देव भरोसे तो नहीं छोड़ दिया गया है।
हमारे प्राचीन उदाहरण भी प्राचीन भारत की समुचित सिंचाई व्यवस्था की ओर इशारा करती है। देश में कोई भूखा न रहे यह हमारी परम्परा रही है। जहां वर्षा नहीं होने के कारण सिंचाई की व्यवस्था नहीं भी हो पाती थी वहां कम पानी या बिना पानी के होनी वाली फसलों पर ध्यान दिया जाता था। सावां, कोदौ बाजरा जैसी अनेक फसले ली जाती थी। और लोगों को भरपेट भोजन मिल जाता था। इसलिए कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत की कृषि व्यवस्था आज की हमारी कृषि नीति और अधकचरी योजनाओं के लिए  एक सबक है।

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