*जीवंत हो गया उपनिषद काल* *वैदिक यज्ञ , उपनिषद चर्चा के माध्यम से सुसंपन्न हुई महाशय राजेंद्र आर्य जी की पुण्यतिथि की 33वीं वर्षगांठ*!
ग्रेटर नोएडा ( आर्य सागर खारी) आर्य बंधु परिवार महावड़ रूपी बगिया के माली अर्थात प्रोफेसर बिजेंदर आर्य, सूबेदार मेजर वीर सिंह आर्य ,एडवोकेट देवेंद्र आर्य ,डॉक्टर राकेश कुमार आर्य की के पूज्य पिताजी स्वर्गीय महाशय राजेंद्र आर्य जी की 33वीं पुण्यतिथि की वर्षगांठ अर्थात 13 सितम्बर के अवसर पर वैदिक यज्ञ, विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम स्थल महाशय जी के छोटे सुपुत्र वरिष्ठ इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य का आवास अंसल हाउसिंग सोसायटी नियर तिलपता चौक सत्यराज भवन रहा। सर्वप्रथम हम आर्य बंधुओं का उनके मोक्षगामी पिताजी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद करते हैं। आर्य बंधु ” पुत्र पिता का अनुव्रती बने, वेद के इस आदेश के पालन व उपनिषदों के इस वचन का कि – ” पुत्र पिता का पुण्य कर्मों का प्रतिनिधि होता है ” इस सन्देश का संरक्षण संवर्धन कर रहे है । प्रत्येक वर्ष यह परिवार पूज्य पिताजी व अपनी पूज्य माता जी की स्मृति में भव्य वैदिक अनुष्ठान आयोजित अपने घर पर करता है। जिसमें अनेक विद्या प्रेमियों, सन्यासियों ,संस्थाओं, गुरुकुल आदि को यह परिवार दिल खोलकर आर्थिक सहयोग करता है। वैदिक मूल्य व संस्कृति के संरक्षण कार्य से यह परिवार नहीं चूकता।
इस परिवार में किसी बच्चे का जन्म दिवस हो चाहे विवाह की वर्षगांठ हो, कोई अवसर ऐसा नहीं जाता जहां विशेष यज्ञ न हो और वैदिक विद्वानों अथवा आर्य जनों का सम्मान सत्कार ना होता हो। 13 सितंबर को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 4:30 बजे विशेष यज्ञ आयोजित किया गया। यज्ञ श्रद्धेय वानप्रस्थी देव मुनि जी ने संपन्न कराया।
यज्ञ के उपरांत वैदिक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के संचालक आर्य सागर खारी ने उपस्थित आर्यजनों के मार्गदर्शन के लिए बौद्धिक आध्यात्मिक लाभ के लिए भारतीय अध्यात्म परंपरा के ग्रंथ उपनिषदों में से एक ऐतरेय उपनिषद का एक प्रसंग छेड़ दिया जो इस प्रकार है-----!
सोsस्यायमात्मा पुण्येभ्य: कर्मभ्य: प्रतीधीयतेsथास्याsयमितर आत्मा ४
यह ऐतरेय उपनिषद का वचन है । दूसरे अध्याय का चौथे श्लोक का। जिसके अनुसार- कुमार रूप में पिता ही जन्म लेता है अर्थात पुत्र पिता के पुण्य कर्मों का प्रतिनिधि होता है।
इस विषय पर सर्वप्रथम एडवोकेट मुकेश नागर जी ने अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि पुत्र पिता का प्रतिनिधि ही नहीं होता अपितु हमने ऐसा सुना है कि पिता का ही दूसरा पुनर्जन्म पुत्र के रूप में होता है। नागर जी ने आर्य बंधु परिवार जिस प्रकार दशकों से अपने माता पिता की पुण्यतिथि पर वैदिक अनुष्ठान करता है, दान आदि देकर विद्वानों का सत्कार आदि कर्म करता है, इस कार्य की भूरि भूरि प्रशंसा की और कहा कि हम सभी को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
नागर जी के पश्चात यशवीर आर्य जी का बहुत ही प्रेरक उद्बोधन हुआ। उन्होंने ईश्वर भक्ति का बहुत ही भाव विभोर करने वाला भजन सुनाया। यशवीर आर्य जी के पश्चात महेंद्र आर्य जी निजामपुर ने भी माता-पिता को लेकर अपना एक भजन सुनाया। जिसमें बताया कि माता-पिता किस प्रकार कष्ट और प्रतिकूलताओं को सहकर हमारा पालन पोषण करते हैं। हमें कभी भी उनके उपकारों को नहीं भूलना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश बैरागी जी ने कहा कि मैं जब भी आर्य बंधु परिवार के कार्यक्रम में आता हूं तो इस परिवार के घर की दीवारें भी मुझे प्रेरणा देती हैं। यह परिवार तो वैचारिक तौर पर समृद्ध परिवार है ही हमारा सौभाग्य है कि हम इस परिवार में आकर कुछ ना कुछ सीख कर जाते हैं।
राजेश बैरागी जी के पश्चात भाई वीरेश आर्य जी ने आर्य बंधु परिवार के कार्यों की भूरि भूरि प्रशंसा सराहना की। उन्होंने कहा कि मेरा पूरा वैचारिक लगाव इस परिवार के साथ है। जहां-जहां हमारी आवश्यकता आर्य बंधु परिवार को होगी , हम पूरी तरह समर्पित रहेंगे । वीरेश आर्य जी के पश्चात विजेंद्र आर्य जी ने बहुत ही वैचारिक जीवन के यथार्थ को समेटे हुए अपना उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा हम किसी भी पेशे में हों, चाहे अधिवक्ता हों, चाहे किराना व्यापारी हों, हमें ईमानदारी से अपने कार्यों को करना चाहिए।हम जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगते हैं। जिस दिन हम यह स्वीकार कर लेंगे उस दिन समझिए हम सुधार की ओर उन्मुख हैं।
बिजेंदर आर्य जी के पश्चात वानप्रस्थी देव मुनि जी ने भी अपना आशीर्वचन प्रदान किया । देव मुनि जी ने कहा कि ईश्वर माताओं की माता व पिताओं का पिता है। हमें उसे नहीं भूलना चाहिए। देव मुनि जी के वक्तव्य से वैदिक गोष्ठी अध्यात्म रस से सरोबार हो गई।
देव मुनि जी के पश्चात आर्य बंधु परिवार की तेजस्विनी बेटी श्रेया आर्या जो वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की पढ़ाई कर रही है। पॉलिटिकल साइंस में उन्होंने फर्स्ट क्लास बीए ऑनर्स किया है। आप डॉक्टर राकेश कुमार आर्य जी की तीन सुपुत्रियों में तीसरे नम्बर की सुपुत्री हैं। आपने अपने परिवार का संस्मरण गोष्ठी में साझा किया। आपने कहा कि मेरे दादाजी के देहांत के पश्चात लगभग 10- 11 वर्ष पश्चात मेरा जन्म हुआ। मैंने दादा जी को नहीं देखा। उनकी भौतिक काया आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी यश काया सदैव जीवित रहेगी। दादा जी ने जो संस्कार हमारे परिवार को दिए, उन संस्कारों का मैंने पूरा लाभ उठाया। मेरे ताऊजी देवेंद्र आर्य जी हमें बचपन से ही वैदिक संस्कृति सिद्धांतों से लाभान्वित करते रहे हैं। हमारा भी यही संकल्प है कि हम परिवार की परंपरा को कायम रखें। राष्ट्र व समाज को देने का भाव हमारा सदैव बना रहे। हमें अंधविश्वास ढोंग आडंबर के विरुद्ध अभियान चलाना चाहिए।
अंत में अंतिम वक्ता के रूप में आज के विशेष यज्ञ के यजमान एडवोकेट देवेंद्र आर्य जी का गोष्टी के प्रारंभ के बिंदु पिता पुत्र का प्रतिनिधि होता है, इस विषय को आगे बढ़ते हुए उनका बहुत ही सारगर्भित सरल उद्बोधन हुआ । अपने उद्बोधन से पूर्व उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का हृदय से सत्कार किया। मैं नहीं समझता, वहां कोई सज्जन ऐसा रहा हो जिसका धन्यवाद आर्य जी ने ज्ञापित न किया हो। अतिथियों के यथोचित सत्कार के पश्चात देवेंद्र आर्य जी ने कहा कि – प्रथम जन्म आत्मा का पिता के शरीर में होता है। फिर माता के शरीर में और पुत्र पिता के कर्मों का प्रतिनिधि होता है । वह पिता की विरासत को संभालता है। भारतीय उपनिषद परंपरा में आत्मा परमात्मा तत्व विवेचन ही नहीं है , वैदिक पारिवारिक मूल्यों का भी दर्शन हमें मिलता है। यद्यपि उपनिषद इतिहास के ग्रंथ नहीं है लेकिन उपनिषद की शिक्षाओं के आधार पर हम आदर्श परिवार समाज राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। देवेंद्र आर्य जी ने कहा कि ईश्वर जीव का कोई स्वाभाविक पिता पुत्र राजा प्रजा का संबंध नहीं है। सारे संबंध नैमित्तिक हैं।
उन्होंने कहा कि मैं इस विषय पर बहुत कुछ ऋषियो के आधार पर बता सकता हूं, लेकिन समय मुझे इसकी इजाजत नहीं दे रहा।
मैं देवेंद्र आर्य जी के इस व्याख्यान के विषय में कहना चाहूंगा कि ईश्वर वह जीव का स्वाभाविक संबंध नहीं है। यह बहुत अच्छा दार्शनिक विषय है। इस विषय में मैंने पूज्य स्वामी विवेकानंद परिव्राजक जी से एक बार शंका समाधान किया था कि स्वामी जी ईश्वर जीव का स्वाभाविक संबंध क्यों नहीं है ? स्वामी जी ने समाधान करते हुए कहा था कि ईश्वर ,जीव ,प्रकृति का इन तीनों का आपस में कोई स्वाभाविक संबंध नहीं है। यह सारे संबंध निमित्त से उत्पन्न हो जाते हैं। जीव जब अविद्या से बंधन में आते हैं तो ईश्वर को प्रकृति कार्य रूप संसार की रचना करनी होती है। ऐसे में वह प्रकृति का अधिष्ठाता बन जाता है। प्रकृति जीव के भोग व अपवर्ग का माध्यम बनती है । जीव और प्रकृति का फिर भोग और भोक्ता संबंध बन जाता है । जब जीव बंधन में आ जाता है तो शरीर के निर्माण के कारण ईश्वर उसका पिता कहलाता है। ईश्वर विविध प्रकार से ज्ञान से औषधी वनस्पती बनाकर जीव के शरीर की रक्षा करता है तो सारे संबंध जुड़ जाते हैं। चाहे गुरु शिष्य का हो, चाहे व्याप्य व्यापक हो, यह सारे संबंध जीव के अविद्या के निमित्त के कारण उत्पन्न होते हैं। यदि जीव में अविद्या ना हो तो ईश्वर जीव प्रकृति का परस्पर अपेक्षा से कोई संबंध नहीं रहेगा। यह तीनों एक दूसरे के प्रति उदासीन रहते हैं। यह बहुत दार्शनिक गंभीर रोचक विषय है।
इस गोष्ठी में एक विषय और निकल कर आया और यह भारतीय संस्कृति की विशेषता भी रही है कि यहां जब-जब ब्रह्म जिज्ञासु किसी विषय पर शुद्ध अंतःकरण से चर्चा करते हैं तो वहां कोई ना कोई रोचक और गहन विषय निकल ही आता है। आज यह विषय निकल कर आया कि माता-पिता में प्रथम पूजनीय कौन होता है ? इस विषय में भारतीय शास्त्र परंपरा ऋषि परंपरा क्या मार्गदर्शन करती है ?
इस विषय को इस आर्य बंधु परिवार में अक्टूबर 2024 में 23 से लेकर 27 अक्टूबर तक आयोजित पांच दिवसीय अनुष्ठान में युक्तियुक्त चर्चा की जाएगी कि माता-पिता दोनों समक्ष हों तो प्रथम किसका सत्कार अभिवादन करना चाहिए ? ऐसे बहुत से दार्शनिक जीवन के विविध पक्ष को छूते हुए विषय पर चर्चा की जाएगी । इस कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय तेजस्वी संन्यासी पूज्य स्वामी सच्चिदानंद जी अनेक दिवस उपस्थित रहेंगे। यह हम सभी का सौभाग्य है । आप सभी उस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं सपरिवार ।
सार निष्कर्ष यह निकलता है कि आज का कार्यक्रम भी आर्य बंधु परिवार में आयोजित अनेक कार्यक्रमों की श्रृंखला में एक उत्कृष्ट सार्थक प्रेरणादायक कार्यक्रम रहा। कार्यक्रम के उपरांत आर्य बंधु परिवार ने गुरुकुल मुर्शदपुर के लिए भोजन निर्माण पात्र आदि का दान किया। साथ ही साथ कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों के लिए सात्विक भोजन की व्यवस्था की गई। इस अवसर पर समाजसेवी सतीश नंबरदार, कमल आर्य, जयप्रकाश आर्य, रईस राम भाटी जी ,इंजीनियर श्यामवीर भाटी, चाहतराम बाबूजी ,डॉक्टर राजेंद्र जी , ज्ञानेंद्र सिंह एडवोकेट, परमानंद कुशवाहा, सी एस पुण्डीर जी , ग्रीन मैन विनोद सोलंकी सहित दर्जनों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।