सुषमा स्वराज : स्वराज्य की साधिका

यक्ष युधिष्ठिर संवाद में यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा कि किमाश्चर्यम ?- अर्थात आश्चर्य क्या है ?

यक्ष के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए तब धर्मराज युधिष्ठिर ने बड़े संतुलित , सटीक और तार्किक ढंग से कहा कि — ” महाराज ! हम प्रतिदिन अपनी इन नग्न आंखों से देखते हैं कि हजारों लोग काल कवलित होते जा रहे हैं , परंतु हमें इसकी रंचमात्र भी अनुभूति नहीं होती कि हमारी अंतिम नियति भी यही है । इससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा ? अर्थात मृत्यु ही सबसे बड़ा आश्चर्य है।”

मृत्यु के इस रहस्य को जितना अधिक स्पष्टता से हमारे ऋषि – मनीषियों ने समझा उतना किसी अन्य देश के दार्शनिकों ने समझने का प्रयत्न नहीं किया । यही कारण है कि हमने जीवन की उपयोगिता को समझते हुए उसके एक-एक पल को कीमती समझ कर उनका सदुपयोग करने का प्रयास किया । जैसे ही जीवन के संदर्भ में हमारे विद्यार्थी को यह बोध हो जाता है कि जीवन क्षणभंगुर है तो वह जीवन की क्षणभंगुरता के दृष्टिगत जीवन को महान , उन्नत और दूसरों के लिए प्रेरक बनाने के लिए सत्कार्यों में संलिप्त हो जाता है।

इस संसार में आकर उसी का जीवन महान कहलाता है जो जीवन की क्षणभंगुरता के दृष्टिगत इसे महान बनाने के उद्योग में लगा रहता है ।

यदि हम अपने देश की पूर्व विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज जी के जीवन पर विचार करें तो उन्होंने जीवन को महानता के साथ किया । 1977 में पहली बार सुषमा जी हरियाणा विधानसभा का चुनाव लड़ीं और उसे जीतकर विधायक बनीं । उन्हें 25 वर्ष की अवस्था में चौधरी देवीलाल सरकार में हरियाणा की श्रम मंत्री बनाकर ताऊ देवीलाल ने उनकी योग्यता का सम्मान किया था । उस समय वह सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने के गौरव से भी सम्मानित हुई थीं । 1980 के दशक में सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी में सम्मिलित हो गई थीं । तब से लेकर अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक वह इसी पार्टी में रहीं । उन्होंने एक से एक बढ़कर ऊंचाइयों को छूने का काम किया । वह 1990 में राज्यसभा की सदस्य बनीं ।1996 में दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा का चुनाव जीतकर सुषमा स्वराज अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गई थीं ।

सुषमा स्वराज जिस मंत्रालय में भी रहीं या जिस पद पर भी रहीं उन्होंने उसमें अपनी पूर्ण योग्यता की स्पष्ट छाप छोड़ी । वे भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में भी यदि बोलने के लिए गईं तो वहां पर भी उन्होंने भारत के सम्मान को बढ़ाने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। वह 2014 में विदिशा से जीतकर नरेंद्र मोदी सरकार में भारत की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री बनीं ।

उन्होंने इस विभाग को संभाला तो वहां पर भी अपनी मानवीय संवेदनाओं का पूर्ण परिचय दिया । साथ ही भारत के सम्मान को बढ़ाने के लिए विश्व मंच पर भी किसी अवसर को उन्होंने अपने हाथ से जाने नहीं दिया । जब वह बोलती थीं तब देश गर्व और गौरव की अनुभूति से भर उठता था । उनकी आवाज में जो ओज व तेज होता था , उसे लगता था कि जैसे सारा भारत कहीं गरज रहा है । सारा विश्व उनकी आवाज को शांत होकर सुनता था।

जब भारत की यह शेरनी विश्व मंचों पर दहाड़ती थी तो पाकिस्तान कान दबा कर बैठ जाता था । उनके बोलने के पल निश्चित ही भारत के लिए खुशी के पल होते थे। आज उनकी आवाज शांत हुई है तो सचमुच एक युग का अंत होता हुआ दिखाई दिया है । वे रिश्तों की आत्मीयता को समझती थीं और लोगों की पीड़ा को भी बड़ी गहराई से समझ कर उनके निवारण के लिए दिल से काम करने का प्रयास करती थीं । उन्होंने पाकिस्तान की जेल में 6 साल व्यतीत करने वाले हामिद अंसारी को भारत लाने में सक्रिय भूमिका निभाई । पाकिस्तान से आई गीता को भी उन्होंने बहुत मदद की थी । उन्होंने सदा पीड़ित परिवारों के आंसू पोंछने का प्रयास किया । जिससे स्पष्ट होता था कि उनके व्यक्तित्व में मानवीय संवेदनाएं और संस्कार कूट-कूट कर भरे थे।

हमारे यहां पर नारी को नारी इसलिए कहा जाता है कि वह न अरि है , अर्थात उसका कोई शत्रु नहीं है । वह अपनी मातृत्व शक्ति के कारण निर्माता होती है और निर्माता होने के कारण माता होती है । सुषमा जी के भीतर नारी होने का यह गुण भी था कि वह किसी से शत्रु भाव नहीं रखती थीं और यही कारण था कि विरोधी लोग भी उनका सम्मान करते थे ।

परिवार से लेकर राष्ट्र तक वह जिस शालीन और मर्यादित वेशभूषा का चयन करती थीं उससे उनके भारतीय नारी सुलभ सहज गुणों की और लज्जाशीलता की अभिव्यक्ति होती थी । उन्होंने भारतीय नारी के सम्मान को बढ़ाने की दिशा में भी अद्वीतीय और अनुपम कार्य किया । आज उनके जाने से बहुत कुछ सूना दिखाई दे रहा है । मोदी जी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से कहा था , जिस पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक अपने स्वास्थ्य के दृष्टिगत इंकार कर दिया था । जिस समय नरेंद्र मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई तो शपथ ग्रहण समारोह के दिन भी ये चर्चाएं थी कि वह दोबारा विदेश मंत्री बनने जा रही हैं । उनके अनेकों प्रशंसकों को तब निराशा हाथ लगी थी , जब देखा गया कि वह मंत्री नहीं बनीं । उनके मंत्री न बनने का कारण भी उनका स्वास्थ्य ही था । सारा देश प्रतीक्षा में था कि सुषमा जी स्वस्थ होंगी और फिर सक्रिय राजनीति में कहीं ना कहीं दिखाई देंगी , लेकिन काल को कुछ और ही स्वीकार था जिसके समक्ष हम सभी नतमस्तक हैं ।आज उनकी यादें शेष हैं । परंतु उनका विशाल व्यक्तित्व जिन मूल्यों और आदर्शों को लेकर संघर्षरत रहा , उसे हम इतिहास में कभी विस्मृत नहीं कर पाएंगे । उन्होंने समकालीन इतिहास में एक महत्वपूर्ण पृष्ठ जोड़ा है , जो सदा ही आने वाली पीढ़ियों को गर्व और गौरव का पथ प्रशस्त करता रहेगा । अपनी इस महान नेता को हम सबकी भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

अन्त में बस इतना ही कहूंगा : —

‘ स्वराज्य ‘ की थी साधिका आराधिका थी राष्ट्र की ,

धर्म की थी प्रशंसिका और विरोधी थी धृतराष्ट्र की । सम्मान पथ प्रशस्त करने हेतु वह जन्मी थी यहां ,

वह गौरव मातृत्व की और नायिका थी राष्ट्र की ।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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