स्वस्थ भारत की जननी है आंगनबाड़ी केंद्र

बेबी कंवर
लूणकरणसर, बीकानेर
राजस्थान

एक अप्रैल से राजस्थान की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहयोगिनियों और सहायिकाओं के मानदेय में 10 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई है. इससे आंगनबाड़ी से जुड़े सदस्यों को काफी लाभ पहुंचेगा. इस वक़्त पूरे राज्य में 62,020 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किये जा रहे हैं. जिसके माध्यम से लाखों बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कुपोषण मुक्त बनाया जा रहा है. इन आंगनबाड़ी केंद्रों का सफलतापूर्वक संचालन इन्हीं कार्यकर्ताओं, सहयोगिनियों और सहायिकाओं के माधयम से मुमकिन होता है. कई बार कम वेतन और विषम परिस्थितियों के बावजूद इन कार्यकर्ताओं, सहयोगिनियों और सहायिकाओं ने देश के नौनिहालों के शारीरिक और मानसिक विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है. अक्सर समाचारपत्रों में कई महीनों तक इनके वेतन रुके होने की ख़बरें आती रहती हैं. जिससे इनकी आर्थिक परेशानियों को समझा जा सकता है. इसके बावजूद यह समर्पण और सेवा भाव से बच्चों के विकास के लिए तत्पर नज़र आती हैं.

दरअसल सभी आंगनबाड़ी केंद्र भारत सरकार की आईसीडीएस योजना के तहत संचालित होती है. यह दुनिया का सबसे बड़ा समुदाय आधारित कार्यक्रम है. जिसके माध्यम से लक्षित समुदाय के स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा में सुधार लाना है. 02 अक्टूबर 1975 को शुरू की गई इस योजना ने अब तक देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लाखों बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कुपोषण से मुक्त बनाया है. यही कारण है कि केंद्र से लेकर सभी राज्यों की सरकारों ने समय समय पर न केवल इस योजना को प्रोत्साहित किया है बल्कि अन्य कई योजनाओं को इससे जोड़ा भी है. जिसका परिणाम है कि ज़मीनी स्तर पर इसके सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिलते रहे हैं. हालांकि कई बार इन्हें बच्चों के पंजीकरण और उनकी उपस्थिति से जुड़ी समस्याओं का इन्हें सामना भी करनी पड़ती है.

इसका एक उदाहरण राज्य के बीकानेर स्थित कालू गांव है. जिला मुख्यालय से 92 किमी और लूणकरणसर ब्लॉक से 20 किमी की दूरी पर स्थित इस गांव में पिछले कई वर्षों से संचालित 6 आंगनबाड़ी केंद्रों पर सुचारु रूप से लक्ष्यों को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है. पंचायत से उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस गांव की जनसंख्या करीब 10334 है. इतनी बड़ी आबादी वाला यह गाँव 9 वार्डों में विभाजित है. यहां अनुसूचित जाति की संख्या लगभग 14.5 प्रतिशत है. इन सभी 6 आंगनबाड़ी केंद्रों में 0 से 6 साल की उम्र के लगभग 400 बच्चे पंजीकृत हैं. जिन्हें पूरक आहार के तहत प्रतिदिन दलिया और खिचड़ी दी जाती है ताकि बच्चों को कुपोषण मुक्त बना कर उनका सर्वांगीण विकास किया जा सके. लेकिन अक्सर इन पंजीकृत बच्चों और उनकी नियमित उपस्थिति से संबंधित कमियां रह जाती हैं. कई बार पंजीकरण से काफी कम बच्चे केंद्र पर आते हैं.

इस संबंध में आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 6 की कार्यकर्ता पार्वती देवी का कहना है कि “यहां कुल 55 बच्चों का पंजीकरण है. जिसमें 0 से 3 साल के 29 बच्चे और 3 से 6 साल के 26 बच्चे पंजीकृत हैं. लेकिन केंद्र पर नियमित रूप से केवल 6 बच्चे ही आते हैं.” पंजीकरण के बावजूद बच्चों की कम संख्या के सवाल पर पार्वती देवी बताती हैं कि ‘दरअसल इस गाँव का अधिकतर परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमजोर है. ज्यादातर माता पिता दैनिक मजदूरी करने शहर जाते हैं. जहां से उन्हें लौटने में अक्सर शाम और कभी कभी देर रात हो जाती है. इतनी देर तक आंगनबाड़ी केंद्र खुला नहीं रह सकता है. इसलिए वह अपने बच्चों को आंगनबाड़ी में छोड़ने की जगह अपने साथ कार्य स्थल पर ले जाते हैं. हालांकि जो बच्चे केंद्र पर आते हैं उन्हें हम खुद घर से लाते और फिर वापस छोड़ कर आते हैं. केंद्र पर बच्चों की सेहत को ध्यान में रखते हुए उन्हें पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जाता है. यहां पर बच्चों के सर्वांगीण विकास से जुड़ी सभी सुविधाएं उपलब्ध है. उनके लिए पीने के साफ पानी और शौचालय की अच्छी व्यवस्था उपलब्ध है. लेकिन कम बच्चों की उपस्थिति सभी के लिए चिंता का विषय है.”

वहीं आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 3 की कार्यकर्ता सुशीला देवी कहती हैं कि “इस केंद्र में कुल 87 बच्चों का पंजीकरण हुआ है. जिसमें 0 से 3 साल के 60 बच्चे और 3 से 6 साल के 27 बच्चे पंजीकृत हैं. लेकिन नियमित रूप से केवल 13 बच्चे ही केंद्र पर आते हैं. इसका कारण भी केंद्र संख्या 6 की तरह है.” वह बताती हैं कि केंद्र में बच्चों को पूरक पोषित आहार के रूप में 540 ग्राम दलिया, 480 ग्राम खिचड़ी और 540 ग्राम सादा दलिया दिया जाता है. इसके अतिरिक्त यहां पर बच्चों के पढ़ने के लिए किताबें भी दी जाती हैं. वहीं छोटे बच्चों के लिए खिलौने उपलब्ध कराये जाते हैं ताकि बच्चे खेल खेल में शिक्षा प्राप्त कर सकें.” वह बताती हैं कि केंद्र की सहायिका और सेविका प्रतिदिन बच्चों को उनके घर से लेकर आती हैं और फिर वापस छोड़ कर भी आती हैं. सुशीला देवी कहती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्र किसी सौगात से कम नहीं है. अक्सर कमज़ोर आर्थिक स्थिति के कारण माता-पिता अपने बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं करा पाते हैं. जिससे बच्चों में कुपोषण के लक्षण नज़र आने लगते हैं. लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र के माधयम से न केवल लाखों गरीब बच्चे बल्कि गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताएं भी कुपोषण से मुक्त हुई हैं.

आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 5 की सहायिका किरण देवी कहती हैं कि समय समय पर विभिन्न योजनाओं को आईसीडीएस से जोड़कर आंगनबाड़ी केंद्र का दायरा बढ़ाया गया है. अब केंद्र के माध्यम से महिलाओं और किशोरियों को सेनेटरी पैड भी उपलब्ध कराये जाते हैं. इसके अतिरिक्त यहां पर हर बुधवार को किशोरियों के बीच आयरन और कैल्शियम की टेबलेट वितरित की जाती है. किशोरियों के साथ माहवारी के दौरान साफ सफाई और स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता के लिए उनके साथ प्रति माह मीटिंग भी की जाती है. इस प्रकार से देखा जाए तो अब आंगनबाड़ी केंद्र में केवल बच्चों का ही नहीं बल्कि महिलाओं और किशोरियों की सेहत को भी बेहतर बनाने के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्य किये जा रहे हैं. हालांकि कई बार केंद्र में सुविधाओं की कमी के कारण बच्चों के साथ साथ कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

एक ही गांव में 6 आंगनवाड़ी केंद्र होने के बावजूद कुछ ग्रामीण इनमें उपलब्ध सुविधाओं की कमी का जिक्र करते हैं. गांव की एक 28 वर्षीय महिला सरस्वती देवी कहती हैं कि “आंगनबाड़ी केंद्र संख्या 6 में मेरी 5 साल की बेटी जाती है. मैं खुद अपनी बेटी को आंगनबाड़ी केंद्र छोड़ने और लेने जाती हूं. यहां पढ़ाई भी बहुत कम करवाई जाती है और बच्चों का पोषण आहार भी कम दिया जाता है. इसके अतिरिक्त समय पर हमें पैड भी उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं. हमें दो महीने से सेनेटरी पैड भी नहीं मिले हैं. वहीं 17 वर्षीय किशोरी अनीता कहती है कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर नियमित रूप से पैड और आयरन की गोलियां नहीं मिलती हैं. जिससे हमें काफी परेशानी होती है. बहरहाल कुछ कमियों के बावजूद यह कहना गलत नहीं होगा कि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आंगनबाड़ी केंद्र स्थापित किए गए थे कालू गाँव में वह पूरा होता हुआ नजर आ रहा है. इसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहयोगिनियों और सहायिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को नाकारा नहीं जा सकता है. (चरखा फीचर)

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