विपक्ष के चूहों की भागदौड़ और प्रधानमंत्री मोदी

अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा की 10 सीटों पर भाजपा ने निर्विरोध चुनाव जीतकर यह स्पष्ट कर दिया है कि पूर्वोत्तर भारत में उसका कोई विकल्प नहीं है । इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी कराकर भाजपा पर चुनाव जीतने का आरोप लगाने वाले विपक्ष को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि आखिर उसने अरुणाचल प्रदेश में 10 सीटों पर भाजपा को निर्विरोध क्यों जीतने दिया? यह ठीक है कि देश में इस समय भी ऐसे अनेक लोग हैं जो अभी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी जूझ रहे हैं और केंद्र सरकार अभी प्रत्येक व्यक्ति को उसकी मूलभूत आवश्यकताओं के दायरे से बाहर सोचने के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवा पाई है, पर इस सबके उपरांत भी देश का जागरूक मतदाता अपनी दैनिक आवश्यकताओं पर कहीं ना कहीं समझौता करके देश के लिए भी सोच रहा है। यही कारण है कि उसे इस समय बहुत कुछ अच्छा लग रहा है।
बात यदि केजरीवाल की गिरफ्तारी की करें तो केजरीवाल पर पूरा देश बहुत अधिक आंदोलित नहीं हुआ है। जो थोड़ी बहुत क्षति हो रही थी वह ‘आप’ के नेता संजय सिंह के जेल से बाहर आने के बाद पूरी हो गई है। भाजपा के लिए यह बहुत ही अच्छा रहा कि संजय सिंह को इस समय जेल से जमानत मिल गई, इससे केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर आम आदमी पार्टी के जितने कार्यकर्ता कहीं आहत दिखाई दे रहे थे , वे सब संजय सिंह ने अपने बड़बोलेपन से आकर संभाल लिए हैं। इससे जन सामान्य प्रभावित होने से बच गया है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने सारा चुनाव इस समय भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लाकर केंद्रित कर दिया है । केजरीवाल की गिरफ्तारी ने चुनाव का विमर्श परिवर्तित कर दिया है। भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे को लेकर विपक्ष का ‘इंडी’ गठबंधन आगे बढ़ा था, उसी मुद्दे को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लिए ‘कैश’ कर लिया है। पीएम श्री मोदी की यह अनोखी राजनीतिक कार्य प्रणाली है कि वह दूसरे के मुद्दों को अपने लिए भुनाने में हद दर्जे की क्षमता रखते हैं। जिस आक्रामक ढंग से पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को धार दी है, उससे विपक्ष घबराकर इस समय बचाव की मुद्रा में आ गया है। प्रधानमंत्री का बार-बार यह कहना कि इंडी गठबंधन के नेता भ्रष्टाचारी लोगों को संरक्षण दे रहे हैं, लोगों के गले उतर रहा है। इस गठबंधन के नेता जब अपने अगल-बगल खड़े नेताओं की ओर देखते हैं तो उन्हें एक दूसरे में से भ्रष्टाचार की दुर्गंध आने लगती है। जिससे उनके स्वर अपने आप ढीले पड़ जाते हैं। यह पहली बार हुआ है जब दिल्ली सरकार के किसी मंत्री ने यह कहकर इस्तीफा दे दिया है कि उनकी आम आदमी पार्टी जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर राजनीति में आई थी, आज वह उसी में डूब चुकी है और मेरा इन परिस्थितियों में यहां रहना अब असंभव हो गया है। मंत्री राजकुमार आनन्द के द्वारा लगाये गये इस प्रकार के आरोप से आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल की मुश्किलें और बढ़ती दिखाई दे रही हैं । हम देख रहे हैं कि मंत्री के इस्तीफा के बाद विपक्ष के नेताओं के स्वर केजरीवाल को लेकर और भी अधिक मद्धम पड़ गए हैं। विपक्ष के नेताओं को लग रहा है कि ऐसी परिस्थितियों में वह जितना ही अधिक केजरीवाल का बचाव करेंगे, उतना ही उनके लिए घातक होगा।
दूसरी बात जो इस समय भाजपा की जीत को बहुत अधिक सुनिश्चित करती दिखाई दे रही है, वह यह है कि देखने के लिए तो इंडी गठबंधन अस्तित्व में आ गया है, पर विपक्ष के नेताओं की अपनी अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण यह गठबंधन अभी से लंबी सांसें लेने लगा है । जिससे पता चलता है कि चुनाव के बाद तो इसे निश्चित रूप से मर जाना है। यद्यपि देश के लोगों ने इसे अभी से मरा हुआ समझ लिया है। केरल में कम्युनिस्ट दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के लिए अभी चुनौती खड़ी कर रहे हैं। कांग्रेस के राहुल गांधी के लिए इस समय पूरे देश में अपने लिए सुरक्षित सीट ढूंढना कठिन हो गया है। जबकि उनकी मां सोनिया गांधी पहले ही अपने आप को सुरक्षित रखते हुए राज्यसभा में पहुंच गई हैं। इससे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में एक नकारात्मक संकेत गया है । पार्टी ने जिस प्रकार अपने आप को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टी के हाथों मरने दिया है, उससे कांग्रेस का राष्ट्रीय स्वरूप प्रभावित हुआ है। माना जा सकता है कि यह सब कांग्रेस ‘बड़ा दिल’ दिखाते हुए भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए कर रही है, पर सच यह है कि इसका दायरा सिमटता जा रहा है। तेजी से उसके कार्यकर्ताओं की संख्या कम हो रही है। हम अपने दौर में एक ‘बड़े वृक्ष’ को गिरते हुए देख रहे हैं। इतिहास के लिए कौतूहल का विषय है कि यह ‘बड़ा वृक्ष’ गिरते हुए धरती पर थोड़ा सा भी कंपन लाने की क्षमता खो चुका है।
जिस समय कांग्रेस का साम्राज्य सिमट रहा है उसी समय एक नई घटना भी घटित हो रही है कि कांग्रेस के मित्र ही उससे मित्रता बनाकर उसकी हत्या करने की तैयारी कर रहे हैं। जिसे कांग्रेस समझकर भी नहीं समझ रही है। उदाहरण के लिए समाजवादी पार्टी कभी नहीं चाहेगी कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस संभले और कभी सत्ता में लौटे। इसी प्रकार दिल्ली के लिए केजरीवाल कभी नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस कभी सत्ता में लौटे। इसी प्रकार उनकी सोच पंजाब के लिए भी हो सकती है । ऐसे ही अन्य प्रदेशों के लिए भी हमें सोचना चाहिए। इसी प्रकार की परिस्थितियों के चलते बंगाल को कांग्रेस पूरी तरह खो चुकी है।
इस समय विपक्ष किसी भी ऐसे मुद्दे को प्रभावी रूप से नहीं उठा पा रहा है जिससे भाजपा को सत्ता में आने से रोक सके।
विपक्ष के सभी नेताओं को अपने-अपने कपड़ों में लगी आग को बुझाने की चिंता है। इनमें से कई ऐसे नेता हैं ,जिनकी ओर आग बढ़ती जा रही है और वह उससे बचकर भागते हुए इधर-उधर छुपते हुए दिखाई दे रहे हैं। चूहों की इस भागदौड़ को देश की जनता बहुत ही कौतूहल और उपहास भरे अंदाज से देख रही है।
सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की ओर एक बार फिर चलते हैं। इस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र को जिस प्रकार से तैयार किया है, उसमें नरेंद्र मोदी का डर सर्वत्र व्यापता हुआ नजर आता है। जितना ही इस घोषणा पत्र का अध्ययन किया जाएगा, उतना ही इसका मुस्लिम तुष्टिकरण का स्वरूप प्रकट होता चला जाएगा। इससे स्पष्ट होता है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने अपने इतिहास के उस भूत को आज भी जिंदा रहने दिया है, जिसे तुष्टीकरण के नाम से उसने आजादी से पहले और आजादी के बाद आज तक निरंतर जीवित बनाए का काम किया है। मुस्लिम तुष्टिकरण की कांग्रेस की इसी नीति को कांग्रेस से अलग के सेकुलर राजनीतिक दलों ने भी अपनाया है। मुस्लिम तुष्टिकरण का दूसरा अर्थ होता है हिंदू विरोध। हिंदू विरोध का अर्थ होता है इस देश की मौलिक चेतना के साथ विद्रोह करना। मौलिक चेतना के साथ विद्रोह का अर्थ है भारतीयता को नीलाम करना। बस, यही वह चीजें हैं जो कांग्रेस को वर्तमान परिस्थितियों में एक निरंतर सतत जागरूक प्रक्रिया और विचारधारा की पार्टी नहीं बनने दे रही हैं। जितना ही कांग्रेस अपनी परंपरागत तुष्टिकरण की राजनीति को धार देने का काम करेगी, उतना ही मोदी की गारंटी अपना रंग दिखाएगी। जितना ही कांग्रेस अपने आप को भ्रष्टाचारी केजरीवाल जैसे नेताओं के साथ खड़ा करके दिखाएगी , उतना ही भाजपा का कमल खिलेगा। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस और उसके राजनीतिक सहयोगी दल स्वयं ही भाजपा के प्रचार में सहायक हो रहे हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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