भारत रत्न और लालकृष्ण आडवाणी

आज भाजपा जिस ऊंचाई पर है उसे यहां तक पहुंचाने में पार्टी के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी जी का विशेष योगदान है। लालकृष्ण आडवाणी जी ने विभाजन की उस विभीषिका को देखा है जिसमें लाखों की संख्या में हिंदुओं को मारा काटा गया था। करोड़ों लोगों को घर से बेघर होते हुए देखने की पीड़ा के वह साक्षी रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कभी धर्मनिरपेक्षता जैसे पाखंडी राजनीतिक विचार से सहमति व्यक्त नहीं की। धर्मनिरपेक्षता सहित उन सभी छद्म पाखंडी राजनीतिक विचारों से उन्होंने कभी संवाद स्थापित नहीं किया जो देश की एकता और अखंडता के लिए या सामाजिक सद्भाव को वास्तविक अर्थों में स्थापित करने में बाधक हो सकते हैं।
अब केंद्र की भाजपा सरकार ने श्री आडवाणी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। वास्तव में इस निर्णय को प्रधानमंत्री मोदी को अबसे पूर्व में ही ले लेना चाहिए था। 1984 को बीते अभी अधिक समय नहीं हुआ है। हममें से अनेक लोग जानते हैं कि उस समय भाजपा के संसद में केवल 2 सदस्य हुआ करते थे। 2 से चलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंची भाजपा आडवाणी जी के सहयोग और आशीर्वाद की सदा ऋणी रहेगी। उन्होंने राम मंदिर को एक विमर्श के रूप में स्थापित किया। जिस राम मंदिर के वाद को कांग्रेस की सरकारें उपेक्षित कर आगे बढ़ती जा रही थीं उसे आडवाणी जी के प्रयासों से सार्वजनिक किया गया। पूरे देश को आंदोलित करते हुए उन्होंने देश के जनसाधारण को इस बात का संदेश दिया कि राम मंदिर के बारे में चल रहे केस में कांग्रेस की सरकार पूरी तरह उदासीन है और वह नहीं चाहती कि राम मंदिर का निर्माण हो। आडवाणी जी के इन प्रयासों से पाखंडी धर्मनिरपेक्षतावादियों को पसीना आ गया था। वोटों के सौदागर बने राजनीतिक लोग आडवाणी जी के नाम और काम को देख या सुनकर रात को नींद में भी उछलते थे।
आडवाणी जी के प्रयासों से देश के जनमानस को पहली बार पता चला कि सरकार किस प्रकार उनके साथ छल कर रही है ? यहीं से देश में एक ऐसा बुद्धिजीवी आंदोलन आरंभ हुआ, जिसने कांग्रेस के शासनकाल में हिंदू प्रतीकों, ऐतिहासिक स्थलों धार्मिक स्थलों आदि के सच को उजागर करने पर काम करना आरंभ किया। कांग्रेस के शासनकाल में जिस प्रकार इतिहास का विलुप्तिकरण किया गया था, उसकी ओर भी विद्वानों और चिंतकों का ध्यान गया। उन्होंने देश के जनमानस को अपनी राम रथ यात्रा के माध्यम से मथ डाला था। उस समय राजनीति के घुप्प अंधेरे में जो कुछ चल रहा था उसे आडवाणी जी के द्वारा जब लोगों के सामने लाकर पटका गया तो लोग बहुत कुछ सोचने पर विवश हो गए थे। जिस प्रकार एक दिशा में हम अंधे होकर भागे जा रहे थे उस दिशा में घोर अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा था, परंतु हम कांग्रेस के पाखंडवाद के फेर में पड़कर अंधेरी सुरंग की ओर भागते चले जाने के लिए मानो अभिशप्त हो गए थे। हिंदू ठगा हुआ सा किमकर्तव्यविमूढ़ की अवस्था में चौराहे पर खड़ा हुआ इधर-उधर देख रहा था। तब आडवाणी जी की रामरथ यात्रा ने उसे एक संबल दिया। उसे एक दिशा दी और राजनीतिक रूप से उसके भीतर चेतना का संचार किया। उसके बाद के संभले हुए हिंदू समाज ने अपने चारों ओर हिंदू विनाश की रची जा रही विभिन्न प्रकार की संरचनाओं को समझने का प्रयास करना आरंभ किया। इस प्रकार सामाजिक चेतना और राजनीतिक जागृति के प्रतीक बनकर आडवाणी जी ने राष्ट्र की अनुपम सेवा की। उन्होंने विभाजन के जिस दर्द को गहराई से झेला था वह नहीं चाहते थे कि इसकी पुनरावृति हो। इसलिए उन्होंने हिंदुत्व के विचार को और भी अधिक प्रगाढ़ता के साथ हिंदू जनमानस में बैठाने का प्रशंसनीय प्रयास किया। उनके इस पवित्र कार्य में उनके अनेक समकालीन साथियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उन्होंने इस बात को गंभीरता से अनुभव किया था कि जब तक उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण प्रांत में स्पष्ट बहुमत वाली और निर्णय लेने में मजबूत सरकार का गठन नहीं होगा और केंद्र में भी इच्छा शक्ति संपन्न हिंदुत्ववादी भाजपा की सरकार नहीं आएगी, तब तक राम मंदिर का निर्माण असंभव है। इन्होने ही पाञ्चजन्य-आर्गेनाइजर की संयुक्त सम्पादकीय मीट में कहा था कि “जब तक केंद्र और उत्तर प्रदेश में बहुमत में भाजपा नहीं आती अयोध्या में श्रीराम मंदिर शायद स्वप्न ही रहेगा। क्योकि तथ्यों को छुपाने और सच्चाई सार्वजनिक होने से रोकने वाला कोई नहीं होगा।” 
समय ने सिद्ध कर दिया कि उनका चिंतन वैज्ञानिक था। राजनीतिक दूरदर्शिता से भरपूर इस चिंतन ने जब सही स्वरूप और आकर लिया तो हमने देखा कि अयोध्या में श्री राम जी का भव्य और दिव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया। भविष्य में यह मंदिर उत्तर प्रदेश को पर्यटन के माध्यम से बहुत कुछ आर्थिक लाभ देने वाला है। इतना ही नहीं पूर्वांचल के लोगों को भी इस मंदिर के माध्यम से आर्थिक समृद्धि देखने को मिलेगी । उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी ने जिस प्रकार विश्व स्तर पर अपना नाम स्थापित किया है उसमें आडवाणी जी का विशेष योगदान है।
आडवाणी जी की मेहनत और प्रयास का ही परिणाम था कि राम मंदिर के केस की सुनवाई के प्रति न्यायालय ने गंभीरता दिखानी आरंभ की। कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल इस केस की सुनवाई में विभिन्न प्रकार की बाधाएं डाल रहे थे पर धीरे-धीरे बादल छंटने लगे और आसमान पूर्णतया साफ हो गया। तब दूर क्षितिज पर सारे राष्ट्र को राम मंदिर का निर्माण होता हुआ स्पष्ट दिखाई देने लगा। राजनीति के क्षितिज पर हिरण्यगर्भ के रूप में दिखाई देने वाले उस राम मंदिर को जिन-जिन लोगों ने भी अनुभव किया, उनका हृदय जानता है कि इसमें आडवाणी जी भी कहीं ना कहीं स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल नेटवर्किंग साइट एक्स पर श्री आडवाणी जी को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा करते हुए उन्हें बधाई दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है। सचमुच प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के द्वारा आडवाणी जी को भारत रत्न दिया जाना हम सबके लिए प्रसन्नता का विषय है। पीएम ने एक्स पर लालकृष्ण आडवाणी के साथ अपनी दो तस्वीरों को सांझा करते हुए लिखा है कि मुझे यह बताते हुए बहुत अधिक प्रसन्नता हो रही है कि श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। मैंने उनसे बात की और इस सम्मान से सम्मानित किए जाने के लिए उन्हें बधाई दी। वह हमारे समय के सबसे बड़े और सम्मानित राजनेताओं में से एक हैं। उन्होंने गृह मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनके संसदीय कार्य हमेशा अनुकरणीय रहे हैं और समृद्ध अंतर्दृष्टि से भरे रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अगले ट्वीट संदेश में लिखा है कि पारदर्शिता, अखंडता और राजनीतिक नैतिकता के मामले में आडवाणी जी ने कई अनुकरणीय मानक स्थापित किए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को आगे बढ़ाने की दिशा में अद्वितीय प्रयास किए हैं। उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाना मेरे लिए बहुत भावुक क्षण है।
जिस प्रकार कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न देने से भारत रत्न का सम्मान बढ़ा है, उसी प्रकार आडवाणी जी को भी यह सम्मान देने से इसका स्वयं का भी सम्मान बढ़ा है। हम सभी आडवाणी जी के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करते हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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