गुरूकुल से हिजेडे ही निकलते हैं ?/ बनियों के दान पर मौजमस्ती* *गुरूकुलों, मंदिरों, कथावाचकों को दान का अर्थ सनातन संहार है*

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आचार्य विष्णु हरि

मुझे एक सनातनी बनिये का फोेन आया पूछने लगे कि कोई अच्छा गुरूकुल का नाम बताइये, जहां पर मैं अपनी संपत्ति और पैसों का दान कर सकूं। मुझे गुस्सा बहुत आया। मैंने कहा कि मुझे नहीं मालूम है कि देश में कोई गुरूकुल है या नही? आप अपनी संपत्ति और पैसे गुरूकुल को दान क्यों करना चाहते हैं? मेरी समझ है कि गुरूकुल हिजडे और सेक्युलर पैदा करने के कारखाने हैं। गुरूकुल, मंदिर और कथावाचक घोर जातिवादी, सेक्युलरवादी और पेट-परिवार पालने वालों का हथकंडा हैं। अगर आप हिजडे और सेक्युलर पैदा कर सनातन धर्म का सर्वनाश और संहार करना चाहते हैं तो फिर गुरूकुल में अपनी संपत्ति और पैसे जरूर दान कीजिये। मेरा समय बर्बाद मत कीजिये।
उसने मेरा उत्तर सुनकर फोन काट दिया। फिर दूसरे दिन उसका कॉल आया। उसने कहा कि मुझे पूरी जानकारी चाहिए, आप कृपा कर मेरा मार्ग दर्शन करें। फिर मैंने कहा कि राष्टीय स्वयं सेवक संघ ने गुरूकुल के रूप में सरस्वती शिशु विद्यालय की स्थापना की थी। आज देश भर में हजारों सरस्वती शिशु विद्यालय हैं, इन हजारों शिशु विद्यालयों, एकल विद्यालयों से अब तक करोड़ों विधार्थी निकले होंगे, ये सनातन के लिए कौन का काम करते हैं? गुरूकुलों में हिजडा बनने, चरणवंदना करने का पाठ पढाया जाता है, जीवों की हत्या पाप के रूप में पढाया जाता है, सभी धर्मो का पालन करने की सीख दी जाती है।
अगर जीवों की हत्या पाप है तो फिर भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के धनुष और सुदर्शन चक्र की वीरता क्या थी? इसका दुष्परिणाम यह होता है कि युद्ध और संघर्ष के समय में गुरूकुल से निकले हिजडे कुतों की मौत मरते हैं। बंाग्लादेश में एक इस्कॉन का संत रोजा खोलवाता था और सर्वधर्म की शिक्षा देता था। एक दिन रोजा वाले आये और उस संत की हत्या कर चलते बने। पालधर में तीन साधुओं की निर्मम हत्या कर दी गयी, इन साधुओं को भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के धनुष और सुदर्शन चक्र का ज्ञान नहीं था, ज्ञान होता तो दो-चार लोगों को मार कर पालधर के साधू मरते। मंदिरों पर जितने भी हमले होते हैं उन सभी में पुजारी और श्रद्धालु बेमौत मरते हैं, क्योंकि उनमें अपनी रक्षा करने की सीख होती नहीं, वे सिर्फ दुकानदारी करते हैं।
गुरूकुल चलाने वाले एक नंबर के जातिवादी और सेक्युलर वादी कीडे होते हैं, अपने पेट और परिवार पालने वाले लोग होते हैं। गुरूकुल इनकी दुकानदारी होती है। खासकर बनियो के पैसे से राज करने वाले और फिर बनियों को छोल-छोल कर गाली देने वाले होते हैं। मूर्ख बनिये गुरूकुल ही नहीं बल्कि मंदिरों और कथावाचकों को धन देकर सनातन धर्म का सर्वनाश और संहार करते हैं।
इतिहास देख लीजिये। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी श्रद्धानंद, कमलेश तिवारी, चंदन गुप्ता से लेकर हाल के वर्षो में विधर्मियों के हाथों में मारे गये सैकड़ो हिन्दू वीर गुरूकुलों या किसी सरकारी हिन्दू संगठन से उत्पन्न नहीं थे। सभी के सभी स्वयं की जागरूकता से हिन्दू एक्टिविस्ट बनें थे और सनातन की सुरक्षा में लगे थे। जब चंद मुसलमान आक्रमणकारियों ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर हमला किया तो फिर हजारों पुजारी देखते रह गये और कुते की मौत मर गये। आजादी के बाद सरदार पटेल ने नेहरू की आपत्ति के बावजूद सोमनाथ मंदिर का जीर्णोधार कराया था।
मेरे इन तथ्यों को सुनकर उस बनिये ने अपनी संपत्ति और पैसे गुरूकुलों, मंदिरों और कथावाचकों को दान करने का विचार छोड़ दिया। मुझे खुशी हुई कि उस बनिये में समझदारी विकसित हो गयी। बनिये सनातन की रक्षा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ बलिदान करते हैं पर उसका लाभ जातिवादी, सेक्युलवादी और चरणवंदना वादी वाले ही उठाते हैं। रिलायंस और अडानी ने कौन सा समाजिक कार्य करते हैं पर विडला घराने से लेकर छोटे-छोटे बनिया भी सनातन की रक्षा और विकास के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान करते हैं।
मैंने उस बनिये को एक सीख भी दी। सीख यह भी दी कि आप जहां रहते हैं उस आस-पास में सनातन की रक्ष के लिए लडने वाले हिन्दू एक्टिविस्टों की मदद करें। मैंने अपनी जिम्मेदारी अपनी समझ के अनुसार निभायी है। क्या आप भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह मेरे तरह ही करेंगे?

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आचार्य विष्णु हरि
नई दिल्ली
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