नये इसरायली संकट के निहित अर्थ और भारत

इसरायल और फिलिस्तीनियों के बीच दुश्मनी की आग दशकों पुरानी है। इसराइल के अस्तित्व को मिटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर षड़यंत्र चलते रहते हैं । जिनके चलते यह आग भीतर ही भीतर सुलगती ही रहती है। अनुकूल अवसर आते ही यह आग भड़क उठती है। अब भी ऐसा ही हुआ है। इस बार पूर्व नियोजित तैयारी के अंतर्गत फिलिस्तीन मिलिटेंट ग्रुप हमास ने गाजा इलाके से इजरायल पर रॉकेटों से धुआंधार हमला करते हुए सारी दुनिया को यह संदेश दे दिया कि आतंकवाद अपने घृणित स्वरूप में जिंदा है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि दुनिया को इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि आतंकवाद को शांति सम्मेलनों और उपदेशों से समाप्त किया जा सकता है। इसके समूल विनाश के लिए दुनिया को एकजुट होना पड़ेगा। उधर इसराइल ने भी अपने स्वभाव के अनुसार मजबूती से डटे रहकर आतंकवाद का जवाब देना आरंभ कर दिया है। अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इजरायल के साथ है।
इधर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी स्पष्ट कह दिया है कि वह इस हमले के समय अपने मित्र इजरायल के साथ मजबूती से खड़ा है। यद्यपि अबसे पूर्व ऐसे अवसर भी आए जब भारत ने फिलीस्तीन के साथ खड़े रहने में अपनी भलाई देखी थी, पर अब परिस्थितियां बदल गई हैं और भारत की विदेश नीति में भी व्यापक परिवर्तन हुआ है। समय की आवश्यकता को देखते हुए भारत ने इस समय इजराइल का साथ देना उचित माना है।
भारत की वर्तमान विदेश नीति इस बात पर अडिग है कि जो भी देश कहीं पर आतंकवाद की घटना को अंजाम देगा या उसका समर्थन करेगा या इसका प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करेगा, भारत उसका विरोध करेगा। संपूर्ण मानवता के हित में भारत की यह विदेश नीति पूर्णतः न्यायसंगत और समय के अनुकूल है। यदि इसी प्रकार की मानवतावादी विदेश नीति को सभी देश अपना लें तो निश्चित रूप से संसार से आतंकवाद जैसे भयानक शत्रु को मिटाया जा सकता है। कुछ लोग आतंकवाद का संप्रदाय के आधार पर समर्थन करते हैं, कुछ किसी आतंकवादी देश से अपने मित्रतापूर्ण संबंधों के चलते हुए ऐसा करते हैं तो कुछ आतंकवाद से पीड़ित किसी देश से अपना कोई पुराना वैर साधने के लिए आतंकवाद का समर्थन करते हैं। भारत ने अपने स्टैंड से यह स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल और केवल आतंकवाद के विरुद्ध है और इसके लिए वह कुछ भी नहीं
देखेगा।
भारत ने अपने इस स्टैंड से यह भी स्पष्ट किया है कि वह इस बात की केवल घोषणा ही नहीं करता है कि वह किसी भी किस्म के आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा बल्कि वह इस पर चलकर भी दिखाना चाहता है। सारे संसार के देशों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि एक आतंकवादी संगठन हमास किस प्रकार ताकत प्राप्त करता है और इस स्थिति में आ जाता है कि संसार भर के देशों की तमाम कोशिशों के उपरांत भी वह एक देश पर आतंकवादी हमला कर देता है। बात स्पष्ट है कि या तो संसार के देशों की ये घोषणाएं खोखली थीं कि वह आतंकवाद का डटकर एकजुटता के साथ सामना करेंगे या फिर अंदर ही अंदर इस आतंकवादी संगठन को वही देश दूध पिलाने का काम करते रहे जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद की आलोचना करते रहे हैं ? इन दोगली चालों के कारण ही अंतरराष्ट्रीय शांति की स्थिति बन नहीं पाती है। आज भारत की नीतियों को अपनाकर चलने का समय आ गया है। जब हर देश को अपनी घोषणाओं के अनुसार अपनी योजनाओं को भी बनाने के लिए सोचना पड़ेगा। अबकी बार जिस प्रकार से इसराइल पर आक्रमण किया गया है वह अपने आप में एक अप्रत्याशित घटना है। यदि इस प्रकार की कार्यवाही को किसी भी प्रकार से वैधानिक या उचित ठहराने का प्रयास किया जाता है तो यह कतई गलत होगा। यही कारण है कि भारत इस प्रकार की घटनाओं के विरोध में इसराइल के साथ खड़ा है।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अभी कुछ समय पहले ही दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन हुआ था। उसमें इंडिया मिडल ईस्ट इकोनामिक कॉरिडोर बनाने की घोषणा भी की गई थी। उस घोषणा में इसराइल भी सम्मिलित है। भारत इजरायल विरोधी शक्तियां उस घोषणा से तिलमिला गई हैं। अतः इसराइल पर किया गया इस प्रकार का हमला भारत के लिए भी एक संकेत हो सकता है। इसराइल ने अपनी मजबूती दिखाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वह प्रतिशोध लेगा और प्रतिक्रियास्वरूप किसी भी स्थिति तक जाने के लिए तैयार है, अपनी घोषणा के अनुसार इजरायल ने ऐसा ही करना भी आरंभ कर दिया है। इससे स्पष्ट है कि गाजा पट्टी की यह घटना भविष्य में कहां तक जाएगी और क्या स्वरूप लेगी ? – इस संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
यह एक भयंकर महाविनाश की चिंगारी भी हो सकती है। यह सब इजरायल के धैर्य और महाशक्तियों की कूटनीतिक चालों पर लगने वाले विराम या संभावित रूप से उनमें आने वाली तेजी पर निर्भर करता है कि हम भयंकर विनाश की ओर जा रहे हैं या कुछ समय बाद इन परिस्थितियों में ठहराव आ जाएगा। वर्तमान परिस्थितियों में इतना स्पष्ट हो रहा है कि मिडिल ईस्ट एक गंभीर संकट में फंस चुका है।
इस ताजा घटनाक्रम के संदर्भ में हमें यह भी समझना चाहिए कि कुछ समय पहले तक यह संभावना व्यक्त की जा रही थी कि इसराइल और सऊदी अरब के बीच नए सिरे से नए संबंधों की परिभाषा को गढ़ा जा सकता है। अमेरिका का वर्तमान नेतृत्व इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा था। इसराइल पर किए गए इस आतंकी हमले के पीछे इसराइल और सऊदी अरब के बीच बन रहे नए संबंधों को झटका देने का उद्देश्य भी हो सकता है।
जो लोग जो देश शांतिपूर्वक अपने काम पर नजर रखते हैं और शांति को ही वैश्विक विकास की एकमात्र गारंटी मानते हैं , उनके लिए वर्तमान स्थिति बड़ी परेशानकुन है, पर वे कुछ कर नहीं सकते। उन्हें अपने क्षेत्र में स्थिरता की आवश्यकता है , क्योंकि किसी भी प्रकार की अस्थिरता व्यापार और लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती है।
वैश्विक राजनीति और कूटनीति का यह तकाजा होता है कि शत्रु हमेशा आप पर उस समय वार करता है जब आप सर्वाधिक असावधान होते हैं। तो क्या यह माना जा सकता है कि इजरायल जो कि अपने चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ है, वह वर्तमान में असावधान हो गया था? जिस इजराइल से बड़े देश भय खाते हैं , बड़े बड़े देश हथियार खरीदते देखे जाते हैं और जो अपने पौरुष और पराक्रम के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है उसका इस प्रकार असावधान होना जंचता नहीं, पर लगता यही है कि वह असावधान था। उसका इंटेलिजेंस बुरी तरह निष्फल सिद्ध हो गया। इतने बड़े हमले को आतंकवादी अंजाम देते हैं और इजरायल की पूरी इंटेलिजेंस उस पर कुछ नहीं कर पाती या उसकी सूचना उसके पास पहले से उपलब्ध नहीं होती , इसका कोई ना कोई तो कारण है। आज नहीं तो कल यह सवाल इजराइल में अवश्य पूछा जाएगा कि वहां की सुरक्षा एजेंसियां आखिर इतने बड़े हमले के प्रति असावधान क्यों रहीं ?
इस प्रकार के सवालों से वर्तमान इजरायली नेतृत्व भी अछूता नहीं रहेगा। समय आने पर उसे भी जवाब देना होगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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