भाजपा : नौटंकी अब बंद होनी चाहिए

भाजपा एक उम्मीद के साथ भारतीय राजनीतिक गगन मंडल पर उभरी। स्वतंत्रता के बाद से कांग्रेस के खिलाफ किसी भी सक्षम विपक्ष की जो कमी अनुभव  की जा रही थी उसे भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर दूर किया। समकालीन इतिहास में भाजपा की यह सबसे बड़ी उपलब्धि थी। भाजपा ने एक ऐसे सर्व स्वीकृत चेहरे को अपना नेता बनाया जो विद्वान, कुशल वक्ता और नेतृत्व क्षमता से भरा हुआ था। वह चेहरा उदार था और लोग उस चेहरे की कद्र करते थे। निश्चित रूप से वह अटल बिहारी बाजपेयी ही थे। अटल जी के साथ भाजपा की डोली को सत्ता सोपान तक लाने में बराबर की भूमिका निभाई लालकृष्ण आडवाणी ने। रामरथ यात्रा निकालकर लगता था कि लोकप्रियता में आडवाणी अटल जी से कहीं आगे निकल गये हैं, लेकिन श्रीराम का जप करते करते वह इतने राममय हो गये कि अपने राम अटल जी के विरूद्घ खड़ा होने की बात उनके दिमाग में भी नहीं आयी। वह भरत की भूमिका में खड़े रहे। लोगों को लगा कि देश वास्तव में ही रामायण कालीन सदपरंपराओं की ओर चल पड़ा है। राजनीति की शुचिता और राजनीतिक मूल्यों की पुन: प्रतिष्ठा की उम्मीद लोगों के दिल में जगी। लेकिन इस खुशफहमी को बने अधिक समय नहीं हुआ। भाजपा को प्रवीण महाजन जैसी नई पीढ़ी के लोगों नेनया पाठ पढ़ाना शुरू किया। वह भाजपा को यथार्थवादी पार्टी के सम्मानजनक स्तर से नारेबाजी और लफ्फाजी की दुनिया में ले उड़े। नारा गढ़ा फील गुड का, इण्डिया शाइनिंग का। राम का नाम लेने वालों के नारे भी जब जनसाधारण ने विदेशी भाषण में सुने तो लोगों को शीघ्र ही मालूम हो गया कि उनका पाला राम भक्तों से नहीं अपितु मैकाले भक्तों से पड़ गया है। भाजपा का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद इन नारों से औंधे मुंह गिर गया। पहली बार लोगों को भाजपा से जबरदस्त निराशा उस समय हुई जब भाजपा शासन के विदेश मंत्री ने खूंखार आतंकी को ससम्मान ले जाकर हवाई जहाज से अफगानिस्तान छोडा। यह देख कर स्वाभिमानी राष्ट्र की आत्मा कराह उठी। भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी का राम के प्रति प्रेम भी सत्ता मद में कहीं दूर हो गया। उन्होंने कह दिया कि राममंदिर निर्माण हमारे एजेण्डा में नहीं है। धारा 370 को हटाने और समान नागरिक संहिता को लागू कराके हिंदू राष्ट्र बनाने के संकल्प को लेकर चलने वाले जनसंघ की विरासत को संभालने वाली भाजपा मुस्लिम तुष्टिकरण में आकण्ठ डूब गयी। वह इस क्षेत्र में कांग्रेस को भी मात देने की स्थिति में आ गयी। परिणाम स्वरूप लोगों ने समझ लिया कि भाजपा में तो कदम-कदम पर छलावा है, दिखावा है, बहकावा है। इसलिए लोग भाजपा से दूर हो गये। भाजपा ने इस दौरान कई चिंतन बैठकें की हैं। पर दीवार पर लिखे सच की उपेक्षा करके वह छत की कडिय़ों की ओर देखते देखते परीक्षा भवन में गुम सुम बैठकर समय व्यतीत करती रही और सच का सामना करने का साहस खो बैठी। इस दौरान अटल जी राजनीति से विदा हो गये, महाजन संसार से चले गये, आडवाणी जिन्ना को सबसे बड़ा धर्म निरपेक्ष कहकर विवादों में फंसे और अपनी उजली चादर को दागदार होती देख उसे कभी साबुन से तो कभी नींबू से धोते नजर आये, जबकि पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह भी अपने जिन्ना प्रेम के कारण निंदा के पात्र बने। मुरली मनोहर जोशी इस दौरान अधिक सक्रिय तो नहीं रहे पर उनकी निष्क्रियता शेषभी समझ में आने लायक थी। भाजपा के एक नेता भैंरो सिंह शेखावत उपराष्ट्रपति पद से हटकर भाजपा के लिए किसी काम के नहीं रहे। तब नेतृत्व की तलाश आरंभ हुई। भाजपा की चतुर चौकड़ी ने गडकरी जैसे तीसरी पंक्ति के नेता को पार्टी का अध्यक्ष बनाया। इसके पीछे कुछ बड़ों की चाल थी कि समय आने पर उन्हें आराम से हटाया जा सकेगा। लेकिन वह हटे नहीं क्योंकि बड़ों के अहंकार ने किसी बड़े को प्रथम माना ही नहीं। उधर तीसरी पंक्ति का नेता जो संयोगावशात पहला आदमी (अध्यक्ष) बन गया था कभी पहला आदमी होने का आभास नहीं दे पाया। वह बड़ो के अहंकार का शमन नहीं कर पाया और लाचार बना सब देखता रहा। इन्ही सब बातों के चलते नरेन्द्र मोदी का निर्माण होता रहा। उनका गुजरात ये बताता रहा कि इतिहास शोर मचाने से नहीं बनता है। इतिहास काम करने से बनता है और नरेन्द्र मोदी अपने काम के कारण लोगों की नजरों में चढ़ते चले गये। उधर यूपीए से लोग गुस्सा हो गये, पर आडवाणी से भी खुश नहीं हो पा रहे, गडकरी उन्हें कतई पसंद नहीं। तब लोगों का ध्यान बार बार नरेन्द्र मोदी की ओर जाता है। भाजपा के पास जनाधार है, एक नेता है (मोदी) एक सपना है, पर अब त्याग नहीं है, भरत की भूमिका में रहे आडवाणी भी आज कुर्सी से चिपक रहे हैं, अब उन्हें लगता है कि पहली बार ही त्याग नहीं करना चाहिए था। अब भाजपा में जूतों में दाल बंट रही है और सब उस दाल को दूसरे पर फेंक फेंककर खा रहे हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उपासकों का ये खेल सारा देश देखा रहा है कि इनकी अपसंस्कृति क्या है? केन्द्र में मनमोहन शासन कर रहे हैं तो इसमें सोनिया गांधी से अधिक योगदान भाजपा का है, क्योंकि भाजपा कोई सक्षम विकल्प देने में असफल रही है। अन्ना हजारे देश में चमक रहे हैं तो यह भी भाजपा के कारण ही है, क्योंकि भाजपा भ्रष्टाचार में डूबी यूपीए को संसद में कारगर ढंग से नहीं घेर पायी। बाबा रामदेव को अपनी योग की दुनिया से अलग हटकर भोग की दुनिया की चिंता करनी पड़ रही है तो यह भी भाजपा के कारण। क्योंकि भाजपा अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अंतर्गत राजनीति का आध्यात्मीकरण करने में असफल रही। ये सारे लोग भाजपा से ही खुराक लेरहे हैं और भाजपा समझ नहीं पा रही कि उसे क्या करना चाहिए? क्या भाजपा मानसिक रूप से दिवालिया हो गयी है? नहीं, उसके पीछे आर.एस.एस. जैसा चिंतनशील और प्रखर राष्ट्रवाद संगठन है जो उसे खुराक देता है। भाजपा को यह मानसिक रूप से दीवालिया तो नहीं होने देगा, पर भाजपा के नेता अहंकारी होकर सवालिया जरूर हो गये हैं। उनमें अपने अपने दम्भ के कारण विचार धारा से भटकाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। वह जिस अवस्था में खड़े हैं वह उनकी गलत तस्वीर पेश कर रही है।जब देश नरेन्द्र मोदी को अपना नेता मानने को तैयार है और मनमोहन से छुट्टी को बेकरार है तो भाजपा को किसका इंतजार है? उसके पास नरेन्द्र मोदी है तो आडवाणी को पुन: पितामह भीष्म की भूमिका निभानी चाहिए। वह हस्तिनापुर की गद्दी को सुरक्षित हाथों में सौंपने का संकल्प लें और इतिहास में अपनी महानता दर्ज करायें। उनके लिए इससे बढिय़ा कोई भूमिकाअब हो ही नही सकती। आर.एस.एस. को अब भाजपा के नंगे नाच को बंद कराने में देर नहीं करनी चाहिए। बहुत समय बीत चुका है। कुण्ठा संगठनों में विस्फोट पैदा करा देती है। समय पर ना बोलना भी आपराधिक तटस्थता कही जाती है। समय बीत रहा है और देर होती जा रही है। नौटंकी अब बंद होनी चाहिए। भाजपा के लिए आज किसी कृष्ण की आवश्यकता है। कूटनीति और राजनीति के मर्मज्ञ की आवश्यकता है। इसकी राजनीति इसलिए असफल है कि मनमोहन सिंह जैसा कमजोर प्रधानमंत्री आराम से शासन कर रहा है और कूटनीति इसलिए असफल है कि इसके मुद्दों पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव होमवर्क कर रहे हैं और जनता से वाह-वाही लूट रहे हैं। नरेन्द्र मोदी को यदि देश की जनता चाह रही है तो भाजपा को इसे स्वीकार करना चाहिए। उसे समझना चाहिए कि:-

उद्यम: साहसं धैर्य बुद्घि: शक्ति: पराक्रम:।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र देव सहायकृत:।।
अर्थात उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्घि (सामथ्र्य) और पराक्रम ये जहां विद्यमान हों, वहां देव भी सहायक बन जाता है। पर भाजपा को उद्यम आदि सभी गंवा बैठी लगती है। उसकी स्थिति तो कुछ ऐसी हो गयी है:-
पासवां जब चोर हो तो कौन रखवाली करे। उस चमन का हाल क्या माली जब पामाली करे।

— राकेश कुमार आर्य

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