खजुराओ की नग्न मूर्तियाँ भारतीय संस्कृति नहीं है !*

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डॉ विवेक आर्य

कुछ लोगों द्वारा व्यभिचार, उन्मुक्त सम्बन्ध ,समलैंगिकता, नग्नता, अश्लीलता आदि के समर्थन में खजुराओ की नग्न मूर्तियाँ अथवा वात्सायन का कामसूत्र को भारतीय संस्कृति और परम्परा का नाम दिया जा रहा हैं।

सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति का मूल सन्देश वेदों में वर्णित सदाचार और संयम पर आधारित शुद्ध आस्तिक विचारधारा है।

भौतिकवाद अर्थ और काम पर ज्यादा बल देता है जबकि अध्यात्म धर्म और मुक्ति पर ज्यादा बल देता है। वैदिक जीवन में दोनों का समन्वय है। एक ओर वेदों में पवित्र धनार्जन करने का उपदेश है दूसरी ओर उसे श्रेष्ठ कार्यों में दान देने का उपदेश है। एक ओर वेद में भोग केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए है दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवित्र बनाये रखने की कामना है । एक ओर वेद में बुद्धि की शांति के लिए धर्म की और दूसरी ओर आत्मा की शांति के लिए मोक्ष (मुक्ति) की कामना है। धर्म का मूल सदाचार है। अत: कहाँ गया है कि आचार परमो धर्म: अर्थात सदाचार परम धर्म है। आचारहीन न पुनन्ति वेदा: अर्थात दुराचारी व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रह्मचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया है जैसे-

यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरूप प्रभु मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।
ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।
यजुर्वेद ३/४५- ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया है उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते है।
यजुर्वेद २०/१५-१६- दिन, रात्रि, जागृत और स्वप्न में हमारे अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।
ऋग्वेद १०/५/६- ऋषियों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं। उनमें से जो एक को भी प्राप्त होता है, वह पापी है। चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।
अथर्ववेद ६/४५/१- हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटो। मैं तुझे नहीं चाहता।
अथर्ववेद ११/५/१०- ब्रह्मचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता हैं।
अथर्ववेद११/५/१९- देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रह्मचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया हैं।
ऋग्वेद ७/२१/५- दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

खजुराओ आदि की व्यभिचार को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियाँ एक समय में भारत वर्ष में प्रचलित हुए वाम मार्ग का परिणाम हैं। जिसके अनुसार मांसाहार, मदिरा एवं व्यभिचार से ईश्वर प्राप्ति संभव है। कालांतर में वेदों का फिर से प्रचार होने से यह मत समाप्त हो गया पर अभी भी भोगवाद के रूप में हमारे सामने आता रहता है !

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