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भारतीय संस्कृति

जीवन में ‘उदय’ का अर्थ

सूर्योदय होते ही रात का अंधकार किसी अंधेरे कोने में जाकर छुप जाता है। दसों दिशाओं में क्षितिज अंत तक प्रकाश का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। प्रकाश के साम्राज्य में सभी मानव, पक्षी जीव जंतु अपने परिवार व आश्रितों का पालन पोषण करने के लिए खाद्यान्न, उपयोग के लिए सामान व ज्ञान विज्ञान अर्जन के उपकरणों के प्रबंध के लिए आवश्यक धन प्राप्त करने के लिए श्रम करने के लिए निकल पड़ते हैं।
उनमें से कुछ हंस कर व कुछ थक कर अपने शरण स्थल पर पहुंचने की जल्दी में रहते हैं। कुछ घर पहुंच कर परिवार के साथ हंसी खुशी विश्राम करते हैं, और कुछ मार्ग में फंस कर निराश करते हैं। लेकिन प्रकृति ने तो सभी को आगे बढऩे व उद्यम उद्योग करने का बराबर समय प्रदान किया था लेकिन किसी ने समय का सदुपयोग किया और किसी ने आलस्य व लापरवाही के वशीभूत होकर इधर उधर घूम कर समय बर्बाद किया, लेकिन प्रकृति हमें आगे बढऩे का बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्रदान करके हर किसी को अपनी मनोहारी छटा बिखेर खुश रखने में पूर्ण योगदान देती है।
यह सारभौमिक सत्य है, सूर्य न कभी अस्त होता है, और न कभी उदय होता है वह सदैव समान रूप से प्रकाश मान रहता है। प्रकाश व अंधकार का परिवर्तन हमारे धरातल की गति के कारण होता है। प्रकृति ने हम सभी को समान सभी साधन उपलब्ध कराये हैं, फिर भी आप समय का सदुपयोग न करें या श्रम, उद्यम न करें इसके लिए आप ही जिम्मेदार हैं। यह स्थिति आपके मन परिवर्तन के कारण होती है, जबकि आपके अंदर सूर्य के प्रकाश की भांति शक्तियां विद्यमान हैं। आप भी दूसरों की भांति कठिन से कठिन कार्य करने में सक्षम हैं, बस जरूरत है, मनोबल, दृढ़ इच्छा शक्ति, आत्म विश्वास व उद्योग में दक्षता प्राप्त करने वाले यत्नों के सहयोग से लक्ष्य की ओर तीव्र गति से अग्रसर होने की। समय के साथ चलने पर लक्ष्य दूर नही रहता है।
विद्यालय के अंदर अध्यापक महोदय सभी विद्यार्थियों को ज्ञान दक्षता का पाठ समान रूप से पढ़ाते हैं लेकिन कुछ बहुत खराब अंकों के साथ अनुत्तीर्ण हो जाते हैं क्यों?
चआप स्वयं ही विचार मंथन कीजिए।
आप क्या हैं?
चक्या आप अपनी वर्तमान दशा से संतुष्ट हैं।
चआपकी अभिलाषाएं क्यों हैं?
चआपका लक्ष्य क्या है?
चआपको लक्ष्य प्राप्त क्यों नही हो रहा है?
चआप जिस परिवेश में रह रहे हैं कार्य कर रहे हैं, आपका वातावरण व पर्यावरण क्या आपके अनुकूल है?
चक्या आप दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जो आपको अपने लिए पसंद है?
चक्या आप अपने कार्य को समय पर पूरा करते हैं।
जब आप अपने अंर्तमन में इन प्रश्नों का हल ढूंढ़ेंगे तो स्पष्ट हो जाएगा कि अभी आपको बहुत कुछ करना है। जब तक आप आगे नही बढेंग़े उद्योग श्रम में दक्षता प्राप्त नही करेंगे श्रम व दक्षता प्राप्त करने के लिए यत्न नही करेंगे, तब तक कुछ भी प्राप्त नही कर सकते हैं। आपके सामने अनगिनत समस्याएं व अनेकों जिम्मेदारियां हैं बिना उद्यम, यत्न, दक्षता के कुछ भी प्राप्त नही होने वाला है।
प्रत्येक व्यक्ति की आज यही दशा है कोई भी व्यक्ति इसका अपवाद नही है या नही हो सकता है। संसार में प्रत्येक व्यक्ति का कत्र्तव्य है कि वह अपने उत्तरदायित्वों को पूर्ण कत्र्तव्य निष्ठा के साथ अनुशासन व मर्यादाओं का लगन से पालन करते हुए अपनत्व व प्रतिस्पर्धा की भावना से ओत प्रोत होकर समय के साथ साथ कदम मिलाकर अपने श्रम, उद्यम कत्र्तव्यों को पूरा करें। संसार की कोई भी ताकत नही जो आपको सफल होने से आपके मार्ग में बाधा बनकर रोक सके, दूसरे शब्दों में उद्योग दक्षता यत्न के द्वारा आपको शत प्रतिशत सफलता अवश्य मिलेगी।
यह आपके मनोबल, व्यवहार व इच्छा पर निर्भर करता है, कि वह कितनी सफलता अर्जित करता है। किस तरह का सम्प्रेषण मार्ग निर्धारित करता है। वह कब तक अनुशासन में रहकर समय व श्रम, उद्यम का सदुपयोग करता है।
शिखर तक पहुंचना आपकी दृढ़ इच्छा शक्ति मनोबल व आत्मविश्वास को दर्शाता है, लेकिन वहां पर अडिग रहना मुश्किल है। क्योंकि ऊपर खुला नील गगन है, और आप शिखर से नील गगन में पर्दापण नही कर सकते, क्योंकि वहां पर धरातल नही है जिस शिखर पर आप खड़े हैं वहां अडिग रहने के लिए आपको आवश्यकता है कि आप समय के साथ साथ ही निरंतर निर्वाध रूप से चलते रहें। थोड़ी सी भूल होने पर आप खाई में गिर सकते हैं। खाई में खड़ा व्यक्ति शिखर पर पहुंच जाएगा। लेकिन शिखर से गिरा व्यक्ति खाई से नही निकल सकता है, क्योंकि वहां दल दल ही दल-दल है। आसमान में उड़ा जा सकता है दलदल से बाहर निकला जा सकता है लेकिन आवश्यकता है ‘उद्योग दक्षता यत्न की जी हां इस संसार में बिना उद्यम श्रम उद्योग, दक्षता ज्ञान यत्न यानी साधन यंत्र के कुछ भी नही हो सकता। आपको अपना काम स्वयं आगे बढ़कर करना होगा। कोई बाहर का या दूसरा व्यक्ति आपका काम श्रम करने नही आएगा। सारा उत्तर दायित्व आपका है। जब भी आप आगे बढऩे की सोचते हैं, तब आपको श्रम व समय को नष्ट होने से बचाना चाहिए। मनोबल को दृढ़ बनाना चाहिए जब तक आपका मन तन्मयता के साथ क्रियाशील नही होगा, आप कुछ भी कार्य बिना मन की सहभागिता के पूर्ण नही कर सकते हैं। मन से जब किंकत्र्तव्यविमूढ़ की मानसिक स्थिति समाप्त हो जाएगा, तब आगे बढऩे की इच्छा शक्ति जाग्रत हो जाएगी। सबसे पहले आपको अपने मन को लक्ष्य, क्रियान्वयन प्रस्तुतीकरण के अनुकूल बनाना होगा। ऐसा संभव होने पर कोई भी आपको शिखर पर पहुंचने से नही रोक सकता है।
आपका संसार वैसा ही बन जाएगा, जैसा आप चाहते हैं, बस आवश्यकता है एक ठोस टिकाऊ योजना की, जिसके सहारे आपकी चरणवद्घ तरीके से लक्ष्य की तरफ बढने का उत्साह मिलेगा व एक दिन आप अपना लक्ष्य अवश्य प्राप्त कर लेंगे।
जब मनुष्य का मन उन्नति की ओर लग जाता है तो वह अपनी व्यक्तित्व व्यथा को भूलकर इसके मन में केवल उन्नति की लालसा व लक्ष्य की तरफ आगे बढऩे की अंर्तमन में भावना रहती है। इसी भावना के फलस्वरूप वह सब कुछ भूल जाता है एक आंखों देखी घटना है। क्रमश:

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