गुलामी का खामियाजा वन्यजीवों ने भी चुकाया*____

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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

भारत की गणना जैव विविधता (Biodiversty)अर्थात जीव-जंतुओं पक्षियों की विविधता, संख्या, उपलब्धता के मामले मैं धनी देशों (Megadiverse)में रही है….|

जैव विविधता के मामले में भारत महादीपो के बीच टक्कर लेता है.. |लेकिन 700 वर्ष के गुलामी के कालखंड में भारत के आर्थिक संसाधनों को ही नहीं लूटा गया, उसकी जैव विविधता को भी नष्ट किया गया निर्ममता से…| अंग्रेजों ने राजस्व बढ़ाने के लिए जंगलों को काटा लकड़ी को बेचा खेतों का विस्तार किया… इस कार्य में वन्यजीव शेर हाथी गैंडा बाघ भेड़िया सबसे बड़ी बाधा थे| अंग्रेजो ने इन वन्यजीवों के कटे मस्तक पर इनाम घोषित कर दिया… 1757 प्लासी की लड़ाई के पश्चात 1875 से 1925 के बीच अंग्रेजों ने 80000 से ज्यादा बाघ 1.5लाख से ज्यादा शेर 2 लाख से अधिक भेड़ियों का शिकार किया गया..| यह तो वह आंकड़ा है जिस पर इनाम वितरित किया गया |मूर्ख देशी रियासतों के राजाओं ने भी अंग्रेजों का साथ दिया बीकानेर के महाराजा सार्दुल सिंह ने अपने जीवन मैं 50000 जानवर 46 000पक्षियों का शिकार किया ऐसा उनकी निजी डायरी में उल्लेख मिलता है… सरगुजा के महाराज ने 1000 बाघ 2000 तेंदुए का शिकार किया उदयपुर ग्वालियर रीवा राज घराने भी पीछे नहीं रहे.. 1936 में जब लॉर्ड वायसराय लिथलिंगो भारत आया तो उसने भरतपुर के केवलादेव पक्षी विहार में एक ही दिन में 1415 पक्षियों का शिकार किया गया 1938 में दोबारा उसके आगमन पर 4270 पक्षियों का शिकार 1 दिन में हुआ.. ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज पंचम ने भारत से लेकर नेपाल हिमालय की तराई तक 3 दिन में 128 बाघ 50 हाथी का शिकार किया… Jorge chule नामक अंग्रेज ने मध्यप्रदेश में 140 बाघों का शिकार किया माउंट गेरार्ड ने 227 बाघ कैप्टन नाइटेंगल अंग्रेज ने 128 शेरों का शिकार किया.. विडंबना तो देखिए अंग्रेज शिकारियों के नाम पर आज भी भारत के आधा दर्जन से अधिक वन्य जीव अभ्यारण का नामकरण इन्हीं क्रूर अंग्रेजों के नाम पर किया गया है | जिम कार्बेट ऐसा ही एक क्रूर शिकारी था जिसके नाम पर उत्तराखंड में नेशनल पार्क है |

क्रूरता के मामले में मुगल अंग्रेजों से भी ऊपर निकले बाबरनामा, अकबरनामा में उल्लेख मिलता है मुगलों ने अपनी वीरता सिद्ध करने के लिए गेंडो चीतों काले हिरण का जमकर शिकार किया.. जहांगीर ने अपनी 12 वर्ष से लेकर 48 वर्ष की आयु तक 25632 पक्षियों तथा 48000 जानवरों का शिकार किया, ऐसा लिखित उल्लेख मिलता है| पक्षी वैज्ञानिक डॉक्टर सालिम अली ने भी इसका उल्लेख किया है अपनी पुस्तकों में.. आपको आश्चर्य होगा जीव जंतुओं का यह संहार हमारे देश में वर्ष 1972 तक चलता रहा.. जब तक वन्य जीव संरक्षण अधिनियम लागू नहीं हुआ.. अंग्रेजों, मुगलो, देशी मूर्ख राजाओं के कारण आज चीता तो भारत भूमि के सदा सदा के विलुप्त हो गया है |एशियाई शेरों पर हाथियों पर भी संकट मंडरा रहा है ,गेंडे विलुप्त श्रेणी में आ गए हैं…| प्राचीन भारतीय संस्कृति में वेदों और मनुस्मृति आदि ग्रंथों में शिकार को वर्जित माना गया है ,निंदनीय कर्म माना गया है ,विशेष परिस्थितियों में क्षत्रिय धर्म में हिंसक नरभक्षी जानवरों के शिकार की केवल आज्ञा है.. |
भारत के प्राचीन ऐतिहासिक महाकाव्य रामायण व महाभारत में कहीं भी निरपराध वन्यजीवों के शिकार का उल्लेख नहीं मिलता.. लेकिन 700 वर्ष की गुलामी के कालखंड में भारत वासियों ने ही नहीं भारत भूमि में विचरण करने वाले जीव जंतुओं चौपाई परिंदों ने भी अपना बलिदान दिया है..!

आर्य सागर खारी ✒️✒️✒️

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