चुनावी बिगुल और उत्तर प्रदेश

पांच राज्यों के लिए विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर हंै। इन सबमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रदेश उत्तर प्रदेश ही है। यहां पिछले पांच वर्ष से समाजवादी पार्टी का शासन है। यह प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रांत है। इसी भूमि पर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ की कथा लिखी गयी थी। इसी भूमि पर 10 मई 1857 को धनसिंह कोतवाल ने मेरठ से क्रांति का बिगुल फूंका था।
1901 तक अवध और आगरा नामक दो प्रांतों में विभक्त इस प्रांत को मिलाकर अंग्रेजों ने संयुक्त प्रांत का गठन किया था। जिसे अंग्रेजी में ‘यूनाइटेड प्रॉविन्स’ कहा जाता था। स्वतंत्रता के पश्चात 1950 में इस प्रांत का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया। 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से कट कर उत्तराखण्ड अलग हो गया। आजकल उत्तर प्रदेश की विधानसभा की कुल 403 सीटे हैं। यह देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जिसकी सीमाएं सर्वाधिक राज्यों (उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली व छत्तीसगढ़) को छूती हैं। जब कि इस प्रांत से नेपाल देश की सीमाएं भी लगी हैं। इसका क्षेत्रफल 2,40,928 वर्ग किलोमीटर है। यहां की जनसंख्या 2011 में लगभग 20 करोड़ थी, जो कि भारत की कुल जनसंख्या का 16.49 प्रतिशत है। यहां की जनसंख्या का प्रति किमी. घनत्व 828 है। जबकि लिंगानुपात 908 महिलाएं प्रति हजार पुरूषों पर है। यहां की साक्षरता 69.25 प्रतिशत (2011 में) है। उत्तर प्रदेश की विधान परिषद की कुल 100 सीटें हैं। यहां से लोकसभा की 80 और राज्यसभा की 31 सीटें हैं। यहां सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस चार प्रमुख दल आगामी चुनावों में अपना विशेष प्रभाव दिखाने जा रहे हैं।
इस प्रांत ने पंडित जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक कुल 9 प्रधानमंत्री देश को दिये हैं। यहां की पहली राज्यपाल सरोजनी नायडू थीं, जबकि वर्तमान राज्यपाल रामनाईक हैं। इसी प्रकार यहां के प्रथम मुख्यमंत्री पं. गोविन्द वल्लभ पंत बने जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं। यहां पहली बार 25.2.1968 को राष्ट्रपति शासन लगा जो कि अगले वर्ष 26.2.1969 को हटाया गया। तब चंद्रभानु गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया था। 25 फरवरी 1968 को चौधरी चरणसिंह की सरकार गिरी तो प्रदेश में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा। चौधरी साहब पहली बार लगभग 10 माह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। चंद्रभानु गुप्ता के पश्चात 18.2.70 से 1.10.70 तक चौधरी साहब लगभग 8 माह के लिए फिर मुख्यमंत्री रहे। इस बार फिर संयोग रहा कि चौधरी साहब की सरकार गिरी तो 1.10.1970 को प्रदेश में फिर राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। यह राष्ट्रपति शासन प्रदेश में मात्र 18 दिन ही रहा। 18 अक्टूबर को त्रिभुवन नारायण सिंह प्रदेश के 9वें मुख्यमंत्री बन गये। इस प्रदेश में पहली बार महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी बनी थीं। जिन्होंने 2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967 तक शासन किया था। उनके बाद पहली बार चंद्रभानु गुप्ता को प्रदेश की कमान (14 मार्च 1967 से 23 अप्रैल 1967) सौंपी गयी। श्रीमती सुचेता कृपलानी ऐसी पहली महिला थीं जिन्हें भारत में पहली बार किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला था। उनके पश्चात महिला के रूप में सुश्री मायावती रहीं, जिन्हें इस प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सुअवसर उपलब्ध हुआ। वे 2011 तक चार बार (1995 में, 1997 में, 2001 में तथा 2007 में) मुख्यमंत्री रहीं।
चौधरी चरणसिंह इस प्रदेश के पहले व्यक्ति थे-जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने के पश्चात देश के प्रधानमंत्री का दायित्व भी संभाला। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री की तरह ही देश के प्रधानमंत्री के दायित्व को भी वह अधिक देर तक नही संभाल पाये। वह देश के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने संसद का सामना किये बिना ही अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। चौधरी साहब के पश्चात विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के दूसरे ऐसे नेता रहे जिन्होंने प्रदेश में पहले मुख्यमंत्री का (9 जून 1980 से 25 जुलाई 1982 तक)  तो फिर देश के प्रधानमंत्री का दायित्व संभाला। उनके लिए भी दुर्भाग्य की बात रही कि वह भी अधिक देर तक प्रधानमंत्री नही रह पाये थे।
इस प्रदेश में 1989 तक कांग्रेस का निष्कंटक राज रहा, जिसे कहीं से कोई खतरा नही रहा। प्रदेश में अंतिम बार 3 मार्च 2002 से 3 मई 2002 तक राष्ट्रपति शासन रहा है।
1989 में प्रदेश के कांग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी रहे थे। ये ऐसे नेता हैं जो इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ उत्तराखण्ड अलग बन जाने पर वहां के भी मुख्यमंत्री रहे हैं। कांग्रेस 1989 से अब तक अर्थात बीते 28 वर्ष से सत्ता में आने के लिए जोर लगा रही है। परंतु वह जितना जोर लगाती है उसके लिए ‘लखनऊ सिंहासन’ उतना ही दूर होता जाता है। नारायणदत्त तिवारी से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनने वाले पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव बने, जिन्होंने पहली बार 5 दिसंबर 1989 को प्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व संभाला था। इससे पूर्व चौधरी चरणसिंह के लिए भी कहा जा सकता है कि वे भी गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे पर यह गलत है-चौधरी साहब कांग्रेसी थे और 1970 में विभाजित कांग्रेस (ओ) के नेता के रूप में मुख्यमंत्री बने थे, जिनके पास विधायकों की संख्या पर्याप्त थी, परंतु इंदिरा गांधी को उनका मुख्यमंत्री बनना पसंद नही आया था, इसलिए उन्हें हटाकर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।
प्रदेश में भाजपा की पहली सरकार 24 जून 1991 को कल्याण सिंह के नेतृत्व में बनी थी, भाजपा के इस मुख्यमंत्री के शासनकाल में बाबरी मस्जिद गिराई गयी तो उसी दिन (6.12.1992) उन्हें त्यागपत्र देना पड़ गया था। उसके पश्चात 7 मार्च 2002 को भाजपा के अंतिम मुख्यमंत्री राजनाथसिंह रहे। अब भाजपा कह रही है कि मुझे वनवास में गये 14 वर्ष हो गये हैं। इसलिए प्रदेश की जनता मुझे वापस बुलाये और सत्ता स्वाद चखने दे, तो कांग्रेस कह रही है कि भाजपा को तो 14 वर्ष ही हुए हैं मुझे तो 28 वर्ष वनवास में हो गये-अब तो प्रदेश की जनता माफ कर दे। इसी प्रकार बसपा का कहना है कि मुझे पांच वर्ष सत्ता से दूर हुए हो लिए-अब मुझे ही अवसर दिया जाए, जबकि अखिलेश कह रहे हैं कि इन सबसे उत्तम तो मैं ही हूं-मैंने गलती ही क्या की है ? जो मुझे वनवास दिया जाए।
अब देखना ये है कि प्रदेश की जनता किसे पसंद करती है? आगामी चुनावों में सब कुछ साफ हो जाएगा।

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