विधि व्यवसाय अथवा वकालत में प्रगति के कुछ पहलू

ऋषिराज नागर (एडवोकेट)

हमारे देश में विधि-व्यवसाय या वकालत एक सम्मानजनक व्यवसाय या कार्य है। इसलिए वकील को इस पेशे की मर्यादा का ध्यान रखकर मेहनत - ईमानदारी,लगन के साथ अपना कार्य करना पड़ता है। 

शुरुआत –

“सर्वप्रथम वकील को समय पर अपने आफिस जाना चाहिए, जो भी वादकारी वकील के आफिस पर अपना कार्य करवाने के लिए उपस्थित मिलते हैं, उनसे शांति एवं शालीनता से उनकी समस्या एवं उसका निराकरण हेतु शांत मन से चिंतन करके उन लोगों को समझाना व बताना चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो आवश्यक तथ्य कागज पर नोट करने चाहिए । सही या गलत के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल कर अर्थात जुडिशल माइंड अप्लाई करके वादकारी का कार्य करना उचित रहता है।
यदि वकील के आफिस पहुँचने पर अपने आफिस अथवा चैम्बर पर कोई वादकारी उपस्थित नही मिलता है, तो वकील को आवश्यक कागजात / फाईल अथवा नोट बुक/ केस डायरी लेकर न्यायालय में जाना चाहिए और- यदि कोई मुकदमा / वाद न्यायालय में लगा है, तो पेशकार / क्लर्क अथवा बाबू से, अपनी उपस्थिति बताकर या कोर्ट को बताकर ही अदालत से वापस अपने आफिस आना चाहिए।

वाद अथवा मुकदमा (केस) से सम्बन्धित कुछ आवश्यक जानकारी –

माल (रेवेन्यू ) के मुकदमा / वाद में मुख्यतः दो पक्ष होते हैं। वादी (वादीगण) और दूसरा प्रतिवादी (प्रतिवादी गण) यदि अन्य कोई वाद से ताल्लुक(रेलेवेन्सी) रखता है तो वह साक्ष्य कागजात देकर वाद में पक्षकार भी बन सकता है।
वादी वह होता है जो न्यायालय में वाद (case) डालता है।वादी को अपने वाद के समर्थन में आवश्यक तथ्य वाद पत्र में क्रम से लिखने होते है और वाद के अन्त के पैरा मे (रेमेडी) भी स्पष्ट रूप से लिखनी होती है। वादी वाद पत्र के समर्थन में आवश्यक कागजात , शपथ पत्र अपने वाद के साथ संलग्न करता है। वादी को अपने वाद पत्र, में प्रतिवादी भी बनाने होते हैं। प्रतिवादी उन सभी लोगो को बनाना होता है जो विवादित भूमि में सहखातेदार हैं। मेडबन्दी के वाद में मेडमिलान खसरा स्वामी (मेड मिलान पडोसी काश्तकार) L.M.C व ग्राम सभा को भी वाद में पक्षकार बनाना होता है। आवश्यक पक्षकार न बनाने पर वादी के वाद में आवश्यक पक्षकार न बनाने का दोष (Non joinder of Party) का दोष हो जाता है। इसलिए वादी को वाद में आवश्यक पक्षकार प्रतिवादीगण के रूप में अवश्य बनाने, होते है। स्वत्व/ एक (डिक्लेरेशन) के वाद में ग्राम सभा तथा उ० प्र० सरकार को भी पक्षकार बनाना होता है। वाद चलाने से पूर्व 60 दिन पहले नोटिस भी देना होता है। यह नोटिस 80 सीपीसी व 106 यूपी पंचायत राज एक्ट के अंतर्गत देना होता है।
वादी द्वारा वाद पत्र न्यायालय में शुरू करते या समय मुकदमा डालते समय सभी प्रतिवादी गणो का नाम क्रम से लिखकर उनके पिता का नाम व पता भी लिखना होता है। वाद पत्र के साथ सभी प्रतिवादी गण को नोटिस ,समन ,सूचना प्रपत्र ,राजपत्र के साथ ही वादी को देनी पड़ती है। वादी को आवश्यक कोर्ट फीस, समन, सूचना फीस, रेवेन्यू टिकट के रूप में वाद पत्र में चस्पा करनी होती है।वाद न्यायालय में दायर करने के तारीख वकील साहब जी को लेनी है ,तब वादी का वाद शुरू होता है।
प्रतिवादी वह होता है जिनसे वादी मुकदमे के द्वारा अपेक्षित उपचार/हक चाहता है। यदि आप प्रतिवादी अथवा प्रतिवादी गण के वकील हैं तो सूचना/ सम्मन वाद आपका वादपत्र की प्रतिलिपी प्राप्त कर के तथ्यों के अनुसार अपने मुवक्किल /क्लाइंट से समझ कर नियमानुसार या विधि अनुसार प्रतिवाद पत्र (डब्लू0 एस0) दाखिल करना है। वाद पत्र में आप यदि वादी के वकील हैं तो आप प्रतिवादी / प्रतिवादी गण के वकील नहीं बन सकते हैं।इसी प्रकार यदि आप ‘प्रतिवादी के वकील नियुक्त हो गये हैं तो आप वादी के वकील नही बन सकते हैं। यदि आप दोनों पक्षों की ओर से वकालतनामा लगाकर वकालत करते हैं तो आप (वकील) मिस-कन्डेक्ट के दोषी होगें।

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