छद्म धर्मनिरपेक्षता के साये में चलते इतिहास के कुछ झूठ, भाग-3

आत्मदाह की प्रवृत्ति
यह आत्मदाह की ही प्रवृत्ति का एक स्वरूप है कि यहां का युवा वर्ग अपने गौरवपूर्ण अतीत से काट दिया गया है, या कट रहा है। इस भटकते हुए युवा मानस को यह बताना आज नितांत आवश्यक हो गया है कि उस भारत के वे महान जुझारू संघर्षशील राजा कौन थे जो कभी अंशत: तो कभी अधिकांशत: भारत को विदेशियों से स्वतंत्र बनाये रहे?
इन्हें यह भी बताना होगा कि ‘मोहम्मद बिन कासिम’ के हमले से जनित अपमान की आग को शांत करने के लिए मेवाड़ नरेश ‘बप्पा रावल’ के तीरों ने शत्रु को उसकी मांद में ही जाकर मारा था। इस वीर ने अपने साम्राज्य की पताका को फहराकर अफगानिस्तान से ईरान तक के क्षेत्र पर शासन किया था।
विदेशी इतिहासकारों के झूठों के तले दबे सत्यों को उद्घाटित करने के लिए आज महान अनुसंधान की आवश्यकता है, तभी आत्मदाह की प्रवृत्ति आत्मविकास में परिवर्तित हो सकेगी। हमारे भीतर यह इच्छाशक्ति राजनीतिक रूप से  दम तोड़ चुकी है कि हम इतिहास के झूठों का पुनर्मूल्यांकन कर सच को सच के रूप में स्थापित कर सकें। यह प्रवृत्ति छद्मधर्मनिरपेक्षता के मृत बच्चे को गले लगाकर अपने को बंदरिया बनाकर हमारे राजनीतिज्ञों ने उपहासास्पद बना दी है।
इतिहास के सच के साथ इतना बड़ा क्रूर उपहास संभवत: संसार के किसी अन्य देश में न होता हो, जितना कि अपने इस पावन और प्राचीन राष्ट्र में हो रहा है।
राम रखवाले
सचमुच इस राष्ट्र के मूल्यों के राम ही रखवाले हैं। राम जिस प्रकार इसके रोम-रोम में बस गये हैं उससे उसकी चेतना-प्रेरणा शक्ति इस राष्ट्र के वासियों में आज भी राष्ट्रप्रेम देश, धर्म व जाति पर मर मिटने को तत्पर रहती है। जिसके कारण विदेशों में भारत को आज भी एक जीवित राष्ट्र के रूप में ख्याति प्राप्त है अन्यथा तो यहां के राजनीतिज्ञों ने तो इस देश को विनष्ट करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी।
वास्तव में किसी भी जाति के महान पूर्वज जब उसके आराध्य बन जाते हैं तो वह एक ऐसी प्रेरक शक्ति का पर्याय बन जाते हैं जो उन्हें निरंतर अपने कत्र्तव्य कर्म और पावन धर्म को करने और निभाने के लिए प्रेरित करती रहती है।
उनकी प्रेरणा शक्ति का यह मौन आवाह्न राष्ट्र को दिशा देता रहता है और निरंतर उसे प्रगति का पथ दिखाता रहता है। ‘श्रीराम’ के द्वारा और हमारे अन्य महान पूर्वजों के द्वारा अपने सुकर्मों के आलोक से जो प्रकाश आज भी उत्कीर्ण किया जा रहा है वह हमारे लिए निस्संदेह गर्व और गौरव का विषय है।
यह मुहावरा ऐसे ही नहीं बन गया है कि-
‘हमारे राम रखवाले हैं’ यह सत्य है कि इस महापुरूष की प्रेरणा-चेतना शक्ति जब तक हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी तब तक हमारी रखवाली होती रहेगी चाहे आज के ‘शिखण्डी नेतृत्व’ से भी गया गुजरा नेतृत्व हमें क्यों न झेलना पड़ जाए।
जो राम हमारी रखवाली सैकड़ों वर्ष परतंत्रता के काल में कर सकते हैं, वह कुछ समय और भी कर सकते हैं। एक दिन आएगा जब प्रत्यक्ष उन्हीं का राज्य होगा। हमारे राष्ट्र कवि ‘श्री त्रिपाठी कैलाश आजाद’ जी की ये पंक्तियां शब्द आज की राजनीति पर अक्षरश: खरी उतर रही हैं- 
शिखण्डी को भी पति कहना पड़ रहा है।
पाखण्डी को भी यति कहना पड़ रहा है।।
बहुमत के इस वोटीया बाजार में अब।
वेश्या को भी सती कहना पड़ रहा है।।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

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